कालीकट विश्‍वविद्यालय केरल के प्रोफेसर बोले- समकालीन कविता आदमी को ढूंढ़ने, पहचानने और मनुष्य की संवेदनशीलता की कविता है।

Prayagraj Zone

प्रयागराज (www.arya-tv.com) इलाहाबाद विश्वविद्यालय के हिंदी विभाग की ओर से व्याख्यानमाला का आयोजन किया गया। प्रथम सत्र में बोलते हुए कालीकट विश्वविद्यालय केरल के प्रो. प्रमोद कोवप्रत ने कहा कि समकालीन कविता आदमी को ढूंढ़ने, पहचानने और मनुष्य की संवेदनशीलता की कविता है। यह कालयात्री कविता है, जो भूमंडलीकरण से प्रभाव ग्रहण करती चलती है। साहित्य का दायित्व है कालखंड को समझना।

प्रो. प्रमोद कोवप्रत ने विरासत के रक्षण पर उठाया सवाल

प्रो. प्रमोद कोवप्रत ने कवि भगवत रावत की बैलगाड़ी कविता का उदाहरण देते हुए विरासत के रक्षण का सवाल उठाया। उन्होंने कहा कि समकालीन कविता अंधेरे को चीरकर उजाले की ओर जाने की कविता है। वह अंधेरे को कोसने में यकीन नहीं करती बल्कि उजाला फैलाने की वकालत करती है। कवि जितेंद्र श्रीवास्तव की कविता का उदाहरण देते हुए उन्होंने आदमियत के संकट के सवाल पर चर्चा की। कवयित्री निर्मला पुतुल की कविता के बहाने उन्होंने विश्वास के संकट और विकास के संदर्भों पर भी विचार किया। राजेश जोशी की कविता विकल्प के सहारे उन्होंने आम आदमी की विकल्प हीनता पर भी विस्तार से प्रकाश डाला।

राजस्‍थान केंद्रीय विश्‍वविद्यालय की प्रोफेसर अय्यर ने यह कहा

व्याख्यानमाला के दूसरे सत्र में बोलते हुए राजस्थान केंद्रीय विश्वविद्यालय की प्रो. एन लक्ष्मी अय्यर ने कहा कि सूर्यकान्त त्रिपाठी निराला और सुब्रमण्यम भारती दोनों ही आत्मपरक, शोषण के प्रति विरोध, प्रकृति का मानवीकरण, देश भक्ति भावना, मानवतावादी भावना, दूरदर्शिता और जागरण गीतों के कवि हैं। दोनों ने भारती मां की स्वतंत्रता कामना का विस्तार से न केवल जिक्र किया बल्कि तदविषयक जागरणगीत भी लिखे। उन्होंने सुब्रमण्यम भारती की नारी चेतना पर भी विस्तार से प्रकाश डाला।

हिंदी के विभागाध्‍यक्ष ने समकालीन कविता की बड़ी चुनौती बताई

हिंदी के विभागाध्यक्ष प्रो. कृपाशंकर पांडेय ने कहा कि आज कविता के प्रतिमान गौड़ हो गए हैं। समकालीन कविता की सबसे बड़ी चुनौती है मूल्यहीनता और दिशाहीनता बोध। व्याख्यानमाला के आयोजक डॉ. राजेश कुमार गर्ग ने कहा कि हमारा समाज बदल रहा है। इस परिवर्तनशील समाज में समाज को जाग्रत करना, समकालीन कविता का प्रधान दायित्व है। यह जागरण मनुष्यता की नवनिर्मिति से होगा। धन्यवाद ज्ञापन हिन्दी विभाग के डा. दीनानाथ मौर्य ने किया।