- आर्य टीवी के माध्यम से पत्रकार डा. अजय शुक्ला ने विपुल लखनवी जी से वार्तालाप पर एक साक्षात्कार का रूप दे दिया।
ज्ञात हो arya.tv.com राम मंदिर की प्रतिष्ठा के समय से समय-समय पर भारत के प्राचीन ज्ञान और सनातन पर विपुल जी के साक्षात्कार लेती रही है। यह भी जानकारी हो कि विपुल जी एक पोस्ट ग्रेजुएट इंजीनियर है और सेवा निवृत्त परमाणु वैज्ञानिक हैं। एक सफल कवि, लेखक होने के अतिरिक्त वैज्ञानिक हिंदी जरनल का संपादन भी कर चुके हैं। सेवानिवृत्ति के पश्चात अपने ट्रस्ट गर्वित के माध्यम से भारतीय सनातन की गहराई को और दर्शन की ऊंचाई को आधुनिक विज्ञान से जनमानस तक पहुंचाने हेतु समर्पित, विपुल जी ने अपने ब्लॉग और वेब चैनल के माध्यम से लाखों लोगों तक पहुंच बनाई है। अपनी बेबाक और ज्ञानयुक्त वाणी के माध्यम से वे सनातन से संबंधित जटिल से जटिल जिज्ञासाओं का हल चुटकियों में कर देते हैं। सनातन के मार्ग में आने वाली किसी भी प्रकार की कठिनाइयों को हल करने में सहयोग करने का आश्वासन अवश्य देते हैं और हजारों लोगों की समस्याओं को हल भी कर चुके हैं।
प्रस्तुत हैं साक्षात्कार के कुछ अंश:
डा. अजय शुक्ला: चरण स्पर्श सर। बैंगलोर के एक आईआईटी के पास आउट अनुज श्री ने हठयोग के ऊपर आपसे प्रश्न करने के लिए कहा है।
देवीदास विपुल जी: जय श्री राम शुक्ला जी। हठयोग का तात्पर्य जगत में एक अजीब तरह के व्यवहार के साथ जाना जाता है। अधिकतर लोग इसको जिद्द समझते हैं और जिसके अंतर्गत अपने शरीर को सुखाना तपना जलाना पानी में खड़े होकर तप करना यह समझते हैं और यह उनकी अज्ञानता है।
डा. अजय शुक्ला: तो वास्तविक अर्थ क्या है?
देवीदास विपुल जी: देखिए जिस भांति सोहम् का प्रादुर्भाव हंस: से होता है उसी भांति हठयोग का प्रादुर्भाव हमारी श्वास लेने की नाड़ियों से होता है।
डा. अजय शुक्ला: आपने तो एक और शब्द बता दिया पहले उसी के अर्थ बता दीजिए?
देवीदास विपुल जी: संक्षेप में समझे जब हम सांस लेते हैं और छोड़ते हैं। आप आंख बंद करके यह काम कीजिए आपको सांस लेते समय हं और छोड़ते समय स: सुनाई देगा आपने देखा होगा जब बहुत से मजदूर किसी वस्तु को खरीदने हैं तो बोलते हैं हईसा। जब हम इसको जल्दी-जल्दी छोड़ते और लेते हैं तो स: हं हो जाता है और इसकी संधि करने पर यह सोहं बन जाता है।
डा. अजय शुक्ला: धन्यवाद सर। अब हठयोग के बारे में बताइए?
देवीदास विपुल जी: जब इसी सांस को हम लेते हैं यानी हं और इस सांस को हम सुष्मना नाड़ी में प्रवाहित करने का प्रयास करते हैं तो ठं बन जाता है और इन दोनों से शब्द हठ बन जाता है। जब हम प्राणायाम के माध्यम से कुंडलनी शक्ति को जगा कर सुषुम्ना नाड़ी में प्रवेश करने का प्रयास करते हैं तब हम हठ के मार्ग से योग का प्रयास करते हैं।
डा. अजय शुक्ला: कुछ और प्रकाश डालें।
देवीदास विपुल जी: यह मार्ग ऋषियों ने तीन प्रकार के बताएं हैं पहले षष्टांग दूसरा सप्तांग और तीसरा अष्टांग। सप्तांग और अष्टांग योग मार्ग में घेरंड ऋषि के आसनों को सम्मिलित कर बनाया गया है। आजकल पतंजलि महाराज का अष्टांग मार्ग बहुत प्रचलित है जबकि उन्होंने यह आसान घेरंड ऋषि से लिए है। जैसा कि मैं कहता हूं मतलब शोधग्रंथ लिखा है। जिसका नाम योगसूत्र है।
डा. अजय शुक्ला: और आगे क्या होता है?
देवीदास विपुल जी: सुषुम्ना नाड़ी के अंदर भी एक और सूक्ष्म नाड़ी होती है जिसे चित्रा नाड़ी कहते हैं। इस विधि में और कुछ भी बातें होती है जो मैं नहीं बता सकता क्योंकि यदि कोई प्रयास करेगा तो उसका नुकसान भी हो सकता है बस केवल मैं इतना कह सकता हूं की सुषुम्ना नाड़ी यदि चित्रा नाड़ी में गई तो आपके अंदर मानव से देवता के गुण आएंगे और यदि वह किसी और नाड़ी में गई तो आपके अंदर राक्षसी गुणों का समावेश हो सकता है। दूसरी बात आप यदि मृत्यु को प्राप्त करना चाहते हैं तो यह भी नाड़ियों से खेल कर प्राप्त कर सकते हैं। क्यूंकि मृत्यु के समय पिंगला नाड़ी चलती है। जिसको कि हम बोलते हैं उल्टी सांस। यदि इसको आरंभ कर दिया जाए तो कुछ ही समय में आप मृत्यु को वर सकते हैं। जीवित व्यक्तियों की इड़ा नाड़ी चलती है। जब हम इड़ा नाड़ी की प्राणवायु को सुषुम्ना नाड़ी की चित्रा नाड़ी में प्रवेश करने के मार्ग पर चलते हैं तब हम हठयोग करते हैं।
डा. अजय शुक्ला: सर क्या वह गुप्त जानकारी देना उचित नहीं।
देवीदास विपुल जी: शुक्ला जी बहुत सारी ऐसी सिद्धियां है और बातें हैं जो आपने देखा होगा देवों में और राक्षसों में एक सी थी लेकिन कालांतर में वह लुप्त हो गई। अब यदि उनको प्रचारित किया जाएगा तो कलियुग में उसका लोग दुरुपयोग अधिक करेंगे सदुपयोग नहीं। इस कारण उन बातों को बोलना उचित नहीं।
डा. अजय शुक्ला: सिद्धियों का चमत्कार से क्या मतलब है?
देवीदास विपुल जी: देखिए इधर-उधर आपने जो मेलों में देखा होगा कांटों पर लेटना आग में बैठना यह सब करना केवल नाटक गिरी है। इससे कोई फायदा नहीं होता है सिद्धियों के लिए समय को गंवाना एक नंबर की मूर्खता है। आप क्या प्राप्त करना चाहते हैं नाम, दाम, शोहरत इससे आपको क्या फायदा। हालांकि कुछ लोगों का जन्म समय के हिसाब से ईश्वर करता है जो सनातन की रक्षा कर सके और प्रचार कर सकें। वर्तमान में जो धीरेंद्र शास्त्री बागेश्वर धाम के कर रहे हैं। मैंने यह भी जाना वह बीच-बीच में एकांत में जाते हैं और अपनी साधना को भी अपने उत्थान के लिए निरंतर करते रहते हैं। उनका जन्म दुनिया को सनातन की शक्ति का एहसास कराना है जो धर्मांतरण की एजेंसियां है उनके गाल पर तमाचा लगाना है।
होता यह ईश्वर की ओर से अपनेआप यह सिद्धियां जब आप योग के मार्ग पर चलते हैं तो आने लगती हैं। जो आपको भटकाने के लिए होती है यदि आप उसमें फंस गए तो आप आगे नहीं जा पाते हैं। एक बात और जितने भी सिद्धीयुक्त पुरुष संत प्राण त्यागते हैं तो उनको मुक्ति चाह कर भी नहीं मिलती है। क्योंकि वह अपनी आत्मा की अनंत यात्रा में सोने चांदी हीरे मोती का बोझ लिए होते हैं और बोझ तो बोझ होता है। मोक्ष के लिए मुक्ति के लिए तो आपको किसी भी प्रकार के बोझ से मुक्त होना होगा।
डा. अजय शुक्ला: जी आपका बहुत-बहुत धन्यवाद। जैसे-जैसे मुझे प्रश्न प्राप्त होते रहेंगे जिज्ञासाएं मिलती रहेगी मैं आपको परेशान करता रहूंगा!
देवीदास विपुल जी: जी मुझे कभी भी कोई परेशानी नहीं होगी क्योंकि मेरे जीवन का अंतिम लक्ष्य सनातन के ज्ञान को आधुनिक विज्ञान के माध्यम से जनमानस तक पहुंचाना। होता क्या है जो अधिकतर बड़े संत होते हैं वह वैज्ञानिक नहीं होते। जो वैज्ञानिक होते हैं वह आध्यात्मिक नहीं होते। इस कारण मां काली की कृपा से गुरुदेव की अनुकंपा से भगवान श्री कृष्ण की लीला से मुझे खिचड़ी को यह काम सौंप दिया गया। (हंसते हुए)
डा. अजय शुक्ला: आपको और कुछ संदेश देना है!
देवीदास विपुल जी: तमाम संत संदेश देते रहते हैं मैं भी कुछ बोल देता हूं कि मित्रों ईश्वर आपके दरवाजे पर खड़ा होकर कॉलबेल बज रहा है यदि अब भी न जागे तो कभी मौका नहीं मिलेगा। वर्तमान समय प्रभु प्राप्ति के लिए सर्वश्रेष्ठ है। इसको बात को मानो और प्रभु प्राप्ति के मार्ग पर चलना आरंभ कर दो।