अस्थिर सरकार मतलब देश का बंटाधार निश्चित

Lucknow
  • विपुल लखनवी ब्यूरो प्रमुख पश्चिमी भारत

अस्थिर सरकार मतलब देश का बंटाधार निश्चित

मतदाताओं से निवेदन कविता के माध्यम से

मत दान करो। मतदान करो।।
बेचो न इस मत को। खेचो न किस मत को।।
यह हथियार अनूठा है। एकलव्य का अंगूठा है।।
प्रजातन्त्र का यही यन्त्र। तेरी इच्छा तेरा मंत्र।।
पर्व अनूठा यह देश का। ऊँच नीच न परिवेश का।।
बन जाओ सच्चे नागरिक। एक पवित्र काम करो।।
मत दान करो। मतदान करो।।
विपुल लखनवी। नवी मुम्बई।

दुनिया का इतिहास उठाकर अगर देखा जाए तो एक बात यह सामने आती है कि किसी भी देश में यदि अस्थिर सरकार आती है तो उसे देश का सदैव नुकसान करती है। फायदा तो नहीं करती है। क्योंकि मिली जुली सरकार में हर दल की अपनी निजी मांग होती है अपनी निजी फायदे के लिए वे देश का विकास रोकने में हिचक नहीं करते हैं। ऐसा ही कुछ इजरायल के बारे में भी देखने को आता है इजराइल का बाहरी दुनिया में बहुत अधिक सम्मान है। लेकिन कब्र का हाल मुर्दा जानता है और इसराइल से आने वाली इनपुट बता रहे हैं कि वहां पर भी किस प्रकार से अस्थिर सरकार ने इजराइल का नुकसान किया है।

इजराइल के लिए एक भ्रान्ति यह है कि वहां सभी एक स्वर से बोलते है तथा समाज में कोई मतभेद नहीं है। यह सत्य नहीं है। वर्ष 2019 से इजराइल राजनीतिक अस्थिरता के चक्रवात से जूझ रहा है।

अप्रैल 2019 से मार्च 2020 तक इजराइल में तीन आम चुनाव हो गए थे। कारण था कि किसी भी दल को पूर्ण बहुमत का न मिलना। फिर मार्च 2021 तथा नवंबर 2022 में भी संसदीय चुनाव हुए। अर्थात, पांच वर्ष में पांच आम चुनाव।

इन पांच वर्षो में तीन प्रधानमंत्री। बेंजामिन नेतन्याहू, नफ्ताली बेनेट, एवं याईर लापिड। पुनः बेंजामिन नेतन्याहू।

अप्रैल 2019 एवं सितम्बर 2019 के आम चुनावों ने ऐसा परिणाम दिया कि सरकार ही नहीं बन पायी। केयरटेकर सरकार से काम चलाना पड़ा। नवंबर 2022 के चुनाव के बाद नेतन्याहू ने अति दक्षिणपंथियों के साथ मिलकर सरकार चला रहे है।

विपक्ष नेतन्याहू सरकार के पीछे पूरी शक्ति से लगा हुआ है और नेतन्याहू के न्यायिक सुधार एवं अन्य अन्य कार्यो में लगातार रोड़ा लगा रहा था।

यहां तक कि आर्मी एवं गुप्तचर सेवाओं के वरिष्ठ कर्मी तथा सेवानिवृत्त लोग भी सरकार के पक्ष एवं विपक्ष में उतर आए थे। भारत के समकक्ष इजरायली “#अग्निवीर” समूह – जो सेवा में नहीं था – भी सरकार के पक्ष एवं विपक्ष में बट गया था। कई ने तो न लड़ने की चेतावनी भी दे दी थी। परिणाम यह निकला कि राष्ट्र की सरकार एवं सुरक्षा संस्थाओ का ध्यान भटक गया था जिसका लाभ हमास ने उठा लिया। इसका दुष्परिणाम सामने है।

भारत में भी कमजोर सरकार के समय आतंकी क्षेत्र ने दुस्साहस किया था। वी पी सिंह सरकार के समय कश्मीरी हिंदुओ का नरसंहार किया गया, उन्हें अपने घरो से खदेड़ा गया, महिलाओ से बलात्कार किया गया, आतंकी हमलो द्वारा हज़ार घाव लगाकर भारत का खून बहाकर कश्मीर छीनने का प्रयास किया गया था।

फिर अटल सरकार के समय कारगिल हमला छुपकर, धोखे से किया गया। सोनिया सरकार के समय पूरे राष्ट्र में सैकड़ो (सैकड़ो) आतंकी हमले किये गए। हर सप्ताह किसी आतंकी हमले का समाचार मिलता था। अब लगभग शांति है। क्योंकि स्थिर सरकार है नरेंद्र मोदी भी देश के लिए बहुत कुछ कर सके क्योंकि स्थिर सरकार है। छुटपुट घटनाएं कभी-कभी होती रहती है, लेकिन अज्ञात लोग उनसे डील कर रहे है।

स्थित सरकार के नेतृत्व पर विश्वास करना सीखिए। क्योकि विश्वास की कोई काट नहीं है। नोटा की धमकी, किसी की खैर मनाने का चस्का आप ही को कमजोर कर रहा है। राजस्थान, कर्णाटक और राजस्थान की स्थिति देख लीजिए। फिर भी संतोष न हो, तो इजराइल की ओर देख लीजिए।

इसलिए हम सभी मतदाताओं का यह कर्तव्य है की आने वाले चुनाव में भरपूर हिस्सा ले और उन पार्टियों को अपना मतदान दिन जो देश को स्थिर सरकार दे सके क्योंकि तभी देश की हमारी भलाई है यदि देश असुरक्षित है तो हम सुरक्षित नहीं रह सकते। हर मतदाता को इस विषय पर चिंतन अवश्य करना चाहिए।