लखनऊ शहर में जन्में, लखनऊ विश्वविद्यालय से बीएससी, एचबीटीआई कानपुर से बीटेक और एमटेक करने के पश्चात मुम्बई स्थित भाभा परमाणु अनुसंधान केंद्र, मुंबई में अपनी 35 वर्षों की सेवा देने के पश्चात सेवानिवृत्त होकर अपने जीवन का एकमात्र लक्ष्य प्राचीन भारतीय गौरव को ज्ञान और विज्ञान को अपने ब्लॉग और वेब चैनल के माध्यम से पूरे विश्व में पहुंचाने का संकल्प लिए हुए नवी मुंबई निवासी प्रसिद्ध कवि लेखक और वैज्ञानिक विपुल सेन उर्फ विपुल लखनवी आजकल सनातनपुत्र देवीदास विपुल के नाम से जाने जाते हैं। कुछ लोग प्यार से जिनको अन्वेषक बाबा भी कहते हैं।
विपुल लखनवी द्वारा राम मंदिर को इस युग की सबसे बड़ी घटना बताने पर पत्रकार डा. अजय शुक्ला ने एक बेबाक साक्षात्कार लिया था। उसी क्रम में भगवान राम का योग से क्या संबंध है? इस विषय पर प्रस्तुत साक्षात्कार के कुछ प्रश्न!
डॉ.अजय शुक्ला : योग क्या है?
विपुल जी : आत्मा में परमात्मा की एकात्मकता की अनुभव घटना ही योग है! अथवा यूं कह सकते हैं द्वैत से अद्वैत का अनुभव ही योग है! यदि महाविद्या के रूप में अथवा बौद्ध दर्शन के रूप में कहें तो मां दुर्गा का मां काली के द्वारा तिलक योग है! कुल मिलाकर कहे तो तो वेद महावाक्य का अनुभव ही योग है!
डॉ अजय शुक्ला: लेकिन आजकल तो कपालभाति अनुलोम विलोम को भी योग के नाम से प्रचारित किया जाता है?
विपुल जी : प्रायः लोग योग का अर्थ पेट को पिचकाना या कलाबाजी खाना या सर्कस के नट की तरह छलांगे मारना ही समझते है। यदि यह योग है तो किसी सर्कस के जोकर को आप महान योगी बोलिए। सत्य यह है कि इसमें योग की कोई गलती नही है जिनको नही पता उनको यही सब योग के नाम पर बताया जा रहा है इसमें उनकी क्या गलती है। कारण स्पष्ट है जो बोल रहे है उनको खुद नही पता योग क्या है बस सुना है तो कह रहे है और सिखा रहे हैं।
योग तो बिना इन सबके भी हो घटित हो सकता है। भक्तियोग के मार्ग पर चलो। जब भक्तियोग परिपक्व हो जाएगा तो तुम्हारा इष्ट तुमको दर्शन देगा और यदि उसकी इच्छा हुई तो वह तुमको द्वैत से अद्वैत का अनुभव कराकर वेद महावाक्य का अनुभव करा देगा। तब तुम ज्ञान योग प्राप्त कर लोगे।
डॉ. अजय शुक्ला: कृपया कुछ और स्पष्ट करें मैं कंफ्यूज हो रहा हूं।
विपुल जी : देखिए योग के दो मार्ग होते हैं पहले हठयोग जिसमें अष्टांग, सप्तांग, और षष्टांग मार्ग है। यह तीनों अद्वैत निराकार के मार्ग भी हो सकते हैं द्वैत के भी हो सकते हैं।
दूसरा मार्ग भक्ति या आराधना मार्ग है। जिसमें सगुन, साकार, दैत, नवधा भक्ति के द्वारा पहले भक्ति योग का अनुभव होता है उसके पश्चात ज्ञानयोग में द्वैत से अद्वैत का अनुभव होता है।
अब अष्टांगयोग मार्ग में पंचवाहिक अंग दिए हुए हैं जिनमें यम, नियम, प्रत्याहार आसान और प्राणायाम होते हैं। प्राणायाम के अंतर्गत कपालभाति अनुलोम विलोम इत्यादि होते हैं। शरीर को स्वस्थ रखने के लिए आसन और उछल कूद की जाती है। यह योग नहीं है। हां यह योग मार्ग कहा जा सकता है अथवा योगाभ्यास भी कहा जा सकता है। तीन आंतरिक धारणा, ध्यान, समाधि के पश्चात योग घटित हो सकता है! आवश्यक नहीं है कि योग हो जाए।
डॉ.अजय शुक्ला: तो फिर योग कैसे प्राप्त करें?
विपुल जी: ऊपर बताए गए मार्गों पर चलकर, पहले अंतर्मुखी होकर। उसमें भी भक्ति योग में पांच उप मार्ग बताए गए हैं या साधनाएं बताई गई है। यह उप मार्ग हैं शैव, वैष्णव, शाक्त, स्मार्त चारो सगुन साकार द्वैत का मार्ग हैं। पांचवा वैदिक मार्ग है जो निराकार अद्वैत का मार्ग है! बाकी यदि विवरण दूंगा तो बहुत लंबा हो जाएगा।
डॉ. अजय शुक्ला: आजकल राम मंदिर के कारण राम की चर्चा हो रही है। भगवान राम का योग से क्या संबंध है?
विपुल जी: राम वैष्णव हैं। आप वैष्णव उपमार्ग के द्वारा नवधा भक्ति को प्राप्त कर अष्टांग योग का ईश प्रणिधान ग्रहण कर भक्ति योग प्राप्त कर सकते हैं। और फिर राम जी की इच्छा से आप ज्ञान योग प्राप्त कर वेद महावाक्य का अनुभव प्राप्त कर सकते हैं।
वैसे राम एक मर्यादा पुरुषोत्तम है और उनके मंदिर की स्थापना अर्थात इस घोर पापी कलयुग में जगत में मर्यादा और सामाजिक कर्तव्य एवं निष्ठा की स्थापना यह सिद्ध करती है कि बदलाव आ रहा है। आज पूरा विश्व राम मंदिर में राम लला की स्थापना को लेकर भारत की ओर देख रहा है। पूरी दुनिया के हिंदू एक अलग तरीके से देखे जा रहे हैं और लोगों की निगाहों में उनका सम्मान बढ़ चुका है।
डॉ. अजय शुक्ला: क्या आप इस दिशा में सहायता कर सकते हैं?
विपुल जी: जी बिल्कुल कर सकता हूं और वास्तव में कर भी रहा हूं। लेकिन बिना गुरु बने हुए केवल ईश्वर के चपरासी के रूप में सहायता कर रहा हूं। मेरे इस शरीर द्वारा निर्मित सचल मन वैज्ञानिक ध्यान विधि द्वारा लोगों को प्राणिक योग मार्ग से योग का अनुभव होता है। जिसमें अपनी किसी भी परंपरा पर चलने वाले व्यक्ति को उसी की परंपरा द्वारा उनके इष्ट के दर्शन की अनुभूति और अनुभव होते हैं। मेरे पास एक लंबी सूची है ऐसे लोगों की जिनको अनुभूति और अनुभव हुए हैं।
इस विधि में ईश्वर को न मानने वाले लोगों को भी अनुभव हुए हैं और मैंनें तो श्याम मानव जैसे महान नास्तिक को विनम्रता पूर्वक चुनौती भी दी। साथ ही आपके पाठकों में यदि कोई नास्तिक है उसको भी यह चुनौती दी जाती है। इस विधि के द्वारा यदि कोई भी ईमानदारी पूर्वक ध्यान करता है तो उसको ईश्वरिय शक्ति का अनुभव आवश्यक होगा।
डॉ. अजय शुक्ला: तो आप फिर समाज से क्या कहना चाहेंगे?
विपुल जी: मैं क्या कहूं। वेद ने कहा है हे मनुष्य तुम्हारा जन्म इसीलिए हुआ है कि तुम जान सको तुम क्या हो ब्रह्म क्या है और तुम ही ब्रह्म का रूप हो। भगवान श्री कृष्ण ने कहा है हे अर्जुन तू योगी बन। यह सब तो दूर की बातें हैं। भगवान बुद्ध ने कहा है मनुर्भव। पहले मानव बनने का प्रयास तो करो।
मैं आपके पाठकों से अनुरोध करूंगा आपको योग अथवा वेद महावाक्य या किसी अन्य अनुभव जो आपको हुआ हो, के विषय में कोई भी जिज्ञासा हो। कोई भी प्रश्न हो जिसका उत्तर कहीं न मिल रहा हो तो आप मुझे मेरे मोबाइल नंबर 99696 80093 पर नि:संकोच संदेश भेज कर उत्तर प्राप्त कर सकते हैं।
डॉ.अजय शुक्ला : बहुत-बहुत आभार मेरे साक्षात्कार के समय निकालने के लिए मैं आपके साथ हर तरीके से जुड़ा रहूंगा यह मैं आपको आश्वासन देता हूं। धन्यवाद
विपुल जी: धन्यवाद आपको भी जो आपने समय निकाला।