कोई जरूरी नहीं हर प्रयोग सफल हो, अगर सफल हुआ तो सबसे पहले विरोधी लाइन में होंगे

Lucknow UP
Suyash Mishra

आर्य मीडिया नेटवर्क। ”बुरा जो देखन मैं चला, बुरा न मिलिया कोय, जो दिल खोजा आपना, मुझसे बुरा न कोय।” कबीरदास(Sant Kabirdas) जी की ये पंक्तियां आज के परिपेक्ष्य में बिल्कुल सटीक बैठती हैं। बाबा रामदेव (baba Ramdev)ने कोरोना(Corona) से निजात दिलाने के लिए ‘कोरोनिल’ (Coronil) दवाई क्या लॉन्च कर दी। तमाम लोगों हांथ पांव को जैसे लकवा मार गया।

कुछ लोग कह रहे हैं कि बाबा कोरोना की दवाई के नाम पर देश विदेशों में व्यापार करेंगे। बाबा सेवा नहीं व्यापार कर रहे हैं। कोई कह रहा है कि इसकी प्रमाणिकता क्या है? यह दवाई फायदा करती भी है यह नहीं? सवाल लाजमी है पर ऐसे सवाल खड़े करने वाले जरा बताएं कि एलोपैथी के नाम पर महज 10 पैसे की लागत से बनी विदेशी टैग लगी दवाई 50 रुपए में धड़ल्ले से जब मार्केट में बिकती है और वो खुद खरीदते रहे हैं। क्या कभी इसका विरोध किया। एक स्वदेशी व्यक्ति आयुर्वेद से स्वदेशी उत्पाद बनाकर देश को, युवाओं को स्वावलंबी बनने का पाठ पढ़ा रहा हो तो उनको चिढ़ हो रही है। ये वही लोग हैं जो कोरोना को फैलाने वाले छिपकर बैठे मौलाना साद के लिए दो शब्द तक नहीं बोल सके।

बाबा रामदेव जो निस्वार्थ भाव से लोगों को योग के माध्यम से निरोगी बनाने का कार्य कर रहे हैं। आॅर्गेनिक के नाम पर अगर वह लोगों को स्वच्छ सामग्री मुहैया करा रहे हैं तो इसमें बुराई क्या है। बाबा रामदेव ने ऐलोपैथी को सीधे चुनौती दी है। जो काम आज ऐलोपै​थी के वैज्ञानिक नहीं कर सके वह आयुर्वेद ने कर के दिखा दिया। विरोध करने वाले विदेशी मैगी को स्वाभिमान से खा रहे हैं, लेकिन रामदेव की नूडल्स पर सवाल खड़े कर रहे हैं। क्या सिर्फ भगवा धारण करने की वजह से रामदेव हमेशा एक ग्रुप के निशाने पर रहते हैं। रामदेव के योगा का लाभ तो हर कोई उठा सकता है फिर चाहे वो किसी भी धर्म या जाति का क्यों न हो फिर रामदेव को भगवा धारण करने की सजा क्यों मिल रही है।

रामदेव ने दवाई लॉन्च कर दी तो आयुष मंत्रालय ने भी उसके प्रचार पर यह कहते हुए रोक लगा दी कि पहले वह सभी रिसर्च पेपर की जांच करवाएं। वहीं रामदेव का कहना है कि जो भी रिसर्च के पैरामीटर्स हैं हमने सभी का ध्यान रखा है। सभी नियनों को पूरा करते हुए हमने ये दवाई मार्केट में लॉन्च की। मंत्रालय ने दवाई के प्रचार पर रोक क्या लगाई एक पक्ष खुशी से झूम उठा कि ये जरूरी कदम था। मेरा सवाल है इन लोगों से कि क्या रामदेव को भी अब मार्केटिंग करने की जरूरत है। जो व्​यक्ति लोगों के घरों में किचन तक पहुंच गया है क्या वह अब किसी विज्ञापन का मोहताज है। मुझे पूरी उम्मीद है कि जिस दिन ये दवाई पतंजलि स्टोर पर आई जियो सिम की तरह लाइन लगाकर बिकेगी। और मैं दावे के साथ कह रहा हूं रामदेव का विरोध करने वाले लोग सबसे आगे कतार में खड़े होंगे।

बहरहाल भगवाधारी रामदेव ने एक अच्छी पहल की है। मौलाना साद की तरह देशभर में कोरोना फैलाने की बजाए उससे निजात दिलाने का काम किया है। कोई जरूरी नहीं है कि हर प्रयोग सफल ही हो जाए। मुझसे पूछा जाए तो अगर कोरोनिल 10 प्रतिशत भी कोरोना से लड़ने में सार्थक सिद्ध हुई तो यह अच्छी कोशिश है और इसकी तारीफ होनी चाहिए।