देश की एकता और अखण्डता के रचनाकार-सरदार वल्लभ भाई पटेल

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(www.arya-tv.com) स्वतंत्रता मिलने के बाद अब भारत की ख्याति दुनिया के एक सबसे मजबूत और सबसे विशाल लोकतंत्र के रूप में हो गई है । बीसवीं सदी में जब दुनिया के अनेक देश छिन्न-भिन्न होते रहे तब अपनी एकता और अखण्डता को सुदृढ़ बनाने के लिए पूरी दुनिया में भारत एक उदाहरण बन गया है ।

जब हम अपने इतिहास पर नजर डालते हैं, तो पाते हैं कि भारतीय स्वतंत्रता संग्राम की सबसे अग्रिम पंक्ति के नेता सरदार वल्लभ भाई पटेल को आजादी के बाद भारत की एकता और अखण्डता को साकार करने वाले महापुरुष के रूप में स्मरण किया जाता है । उनके पथ का अनुगमन करते हुए भारत सुगठित देश के रूप में शक्ति अर्जित कर रहा है ।

भारत की आजादी के समय अंग्रेजों ने दो कूटनीतिक चालें चलीं थीं-पहली तो यह कि भारत का विभाजित हो जाएं; और दूसरी यह कि देश की 565 देशी रियासतों को यह छूट दी कि वे भारत या पाकिस्तान के साथ मिल जाएं या अपने लिए और कोई निर्णय ले लें । अधिकांश देशी रियासतों के राजाओं ने भारत के साथ विलय को स्वीकार किया किंतु कुछ यह सपना देखने लगे कि अंग्रेजों के भारत छोडऩे के बाद वे स्वतंत्र हो जाएंगे । ऐसे स्वार्थी राजाओं का तर्क था कि उन्हें एक स्वतंत्र राज्य के प्रमुख के रूप में स्वीकार किया जाए । कुछ ने तो संयुक्त राष्ट्र संघ में अपने प्रतिनिधि तक भेजने का मन बना लिया था ।

सरदार वल्लभ भाई पटेल ने राज्यों के मामलों के प्रभारी के रूप में इन राजाओं से चर्चा कर उन्हें देशभक्ति का परिचय देने के लिए प्रेरित किया । अधिकांश ने सरदार पटेल की सलाह को स्वीकार कर भारत का अंग बनना स्वीकार कर लिया । ऐसा करते हुए सरदार पटेल ने अद्वितीय राष्ट्रनिष्ठा, महान बुद्धिमत्ता और राजनीतिक दूरदर्शिता का परिचय दिया था । लेकिन हैदराबाद का निजाम और जूनागढ़ का नवाब भारत में विलय के लिए तैयार नहीं था । ऐसे समय में सरदार पटेल ने अपनी अनन्य संकल्प शक्ति, अद्भुत साहस और परिपक्व प्रशासकीय क्षमता का परिचय दिया । उन्होंने राजनय के नए अध्याय की रचना करते हुए, बिना रक्तपात के इन रियासतों को भी भारत में शामिल होने के लिए विवश कर दिया।

सरदार पटेल का यह कार्य इतना अदभुत और दूरगामी राजनीतिक परिणाम वाला सिद्ध हुआ कि सरदार पटेल को भारत की जनता ने ‘लौहपुरुष’ की पदवी दी । विश्व के अनेक राजनीतिक विश्लेषकों ने सरदार पटेल की तुलना यूरोपीय नायक बिस्मार्क से की ।

इसी दौरान उत्तर में जम्मू और कश्मीर रियासत को भारत में शामिल करने का मामला लंबित था । वहां राजा ने भारत में शामिल होना तो स्वीकार किया किंतु बहुत देरी से । इस वजह से पाकिस्तान की ओर से धूर्ततापूर्वक घुसपैठियों के रूप में सैन्य कार्यवाही की गई और वे रियासत के एक हिस्से में काबिज हो गए।

भारत ने सेना भेजकर पाकिस्तानी घुसपैठियों को बाहर किया किंतु तब तक कश्मीर का एक हिस्सा पाकिस्तान के कब्जे में आ गया था । संयुक्त राष्ट्र संघ में इस मामले में बहस के दौरान भारत में कश्मीर में जनमत कराना स्वीकार कर लिया । सरदार पटेल इस कार्यवाही के पक्ष में नहीं थे । वे कश्मीर को पूरी तौर पर मुक्त कराकर उसका भारत में विलय चाहते थे । अगर उनकी सलाह मानी गई होती तो कश्मीर की समस्या तभी निपट गई होती ।

इसी तरफ गोवा के मामले में भी सरदार पटेल सैन्य कार्रवाई कर उसे भारत में शामिल कराने के पक्ष में थे । तब अगर उनकी बात मानी गई होती तो 1961 में हुए जन संग्राम के बजाए सीधी कार्रवाई करते हुए बहुत पहले ही गोवा आजाद करा लिया जाता ।

सरदार पटेल चीन के इतिहास और कूटनीतिक रवैये को देखते हुए उसके साथ दोस्ताना व्यवहार के पक्ष में नहीं थे । चीन ने दोस्ती की आड़ में बाद में भारत से छल किया और 1962 में हम पर आक्रमण किया । तब सरदार पटेल की दूरदृष्टि और राजनीतिक सूझबूझ की याद आई थी ।
प्रधान मंत्री नरेन्द्र मोदी ने सरदार पटेल को अपनी श्रद्धांजलि अर्पित करते हुए कहा है कि ‘दुनिया में ऐसे बहुत से लोग थे जो सोचते थे कि भारत जैसा विविधता से भरा देश कभी एकता के सूत्र में बंधा नहीं रह सकता । वह खंड-खंड हो जाएगा । किन्तु सरदार वल्लभ भाई पटेल ने यह कर दिखाया था कि भारत एकता के सूत्र में बंधा रह सकता है।

हमें उनसे यह सीखना है कि हम कैसे देश की शक्ति को लगातार बढ़ाते हुए देश को सदैव एकता के सूत्र में बांधे रखें । सरदार पटेल ने भारत के विभाजन के बाद उसे एक बनाए रखने के महान कार्य को सम्पन्न करने के लिए कौटिल्य के विवेक और शिवाजी महराज के साहस का उपयोग किया था । सरदार पटेल ने जो कुछ किया है देश के इतिहास में उसकी कोई समता नहीं है । सरदार पटेल ने कच्छ से कोहिमा तक और कश्मीर से कन्याकुमारी तक देश को एकता के सूत्र में बांधा था। यह श्रेय वल्लभ भाई पटेल को जाता है कि हम बिना वीसा लिए भारत के अंदर सारे राज्यों में सभी जगह जा सकते हैं और महान लोगों से मिल सकते हैं।’

सरदार वल्लभभाई पटेल ने एकीकृत भारत की पहचान बनाई थी और, भारतीय लोकतंत्र के भविष्य के रूपरेखा उपलब्ध कराई थी । उनकी स्मृति को अक्षुण्ण बनाने के लिए और भारत की एकता तथा अखण्डता को प्रतिबिंबित करने के लिए उनकी एक प्रतिमा सरदार सरोवर बांध के पास स्थापित की गई है जो दुनिया की सबसे ऊंची प्रतिमा है । इस प्रतिमा को एकता की मूर्ति नाम दिया गया है । अब यह मूर्ति देश के गौरवशाली इतिहास का प्रतीक बन गई है ।

डॉ. सुशील त्रिवेदी