रश्मिका ने पांच महीने तक ‘छावा’ के लिए भाषा सीखी:बोलीं- महारानी का किरदार निभाने का सपना हुआ पूरा

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(www.arya-tv.com) फिल्म ‘छावा’ में एक्ट्रेस रश्मिका मंदाना छत्रपति संभाजी महाराज की पत्नी, महारानी येसूबाई भोसले का किरदार निभा रही हैं। एक मराठी महारानी का किरदार निभाना रश्मिका के लिए सिर्फ एक मौका नहीं, बल्कि एक सपना था। हाल ही में दैनिक भास्कर से बातचीत के दौरान, रश्मिका ने बताया कि उनका सपना खुद को महारानी के रोल में देखना था, जो ‘छावा’ से पूरा हुआ। बता दें, इस किरदार के लिए रश्मिका ने पांच महीने तक रोजाना 3-4 घंटे भाषा सीखने में बिताए।

महारानी का किरदार निभाना सपना था

रश्मिका ने कहा, ‘इस फिल्म के लिए मैंने बहुत ज्यादा मेहनत की है। लेकिन यह वही है जो मैंने हमेशा चाहा था। जब मैंने एक्टर बनने का सपना देखा, तब से ऐसी ऐतिहासिक फिल्म में काम करने की इच्छा थी। हमारे इतिहास, परंपराओं और संस्कृति की भव्यता मुझे हमेशा आकर्षित करती है। ‘छावा’ जैसी फिल्म में काम करना मेरे लिए एक सपना पूरा होने जैसा है। मैं हमेशा से खुद को एक राजसी दुनिया में, किसी महारानी के रूप में, शाही महल, शानदार डांस और इतिहास के बीच देखने का सपना देखती थी। जब यह फिल्म मेरे पास आई तो मैं बहुत उत्साहित थी।

यह लक्ष्मण उतेकर सर की दूरदृष्टि थी जिसने इसे खास बनाया। उन्होंने मुझे पहली बार कहानी सुनाते समय कहा था कि वह मुझे एक महाराष्ट्रीयन क्वीन के रूप में देखना चाहते हैं। मेरी शक्ल-सूरत, मेरे चेहरे के फीचर्स – सब कुछ इस किरदार के लिए परफेक्ट थे। यह एक ऐसी फिल्म है जो आपको गर्व महसूस कराएगी। यह न केवल भव्य है बल्कि दिल को छूने वाली भी है।’

पांच महीने तक सीखी भाषा; लक्ष्मण सर कहते थे- दक्षिण या उत्तर नहीं, किरदार मुख्य है

किरदार की तैयारी को लेकर एक्ट्रेस ने आगे कहा, ‘सबसे बड़ी तैयारी लैंग्वेज को लेकर रही। हिंदी मेरी मातृभाषा नहीं है। यह भाषा मेरे लिए स्वाभाविक नहीं है लेकिन मेरी ऑडियंस के लिए इसे सीखना मेरा फर्ज था। फिर जब आपको एक क्वीन का किरदार निभाना हो, तो आपको हर चीज पर पकड़ बनानी होती है- चाल, बोलचाल, अंदाज- सबकुछ। डायलॉग के लिए मैंने हर दिन तीन से चार घंटे मेहनत की। यह सिलसिला पांच महीनों तक चला। हर शब्द, हर वाक्य को मैं इस तरह सीखती थी जैसे यह मेरी अपनी जुबान हो।

मेरे लिए यह सिर्फ किरदार निभाने की बात नहीं थी, बल्कि उस किरदार की आत्मा को जीने की कोशिश थी। इस दौरान मैंने यह भी सीखा कि भाषा केवल शब्दों से नहीं, बल्कि भावनाओं से भी बनती है।

लक्ष्मण सर कहते थे, ‘जब लोग तुम्हें सुनेंगे, तो वे भूल जाएंगे कि तुम दक्षिण से आई हो या उत्तर से। उन्हें केवल तुम्हारा किरदार दिखेगा। मैं खुश हूं कि हमने यह हासिल किया। ‘छावा’ मेरी अब तक की सबसे मेहनती जर्नी रही है। यह सिर्फ एक फिल्म नहीं, बल्कि मेरे लिए एक सपना पूरा होने जैसा है।’