ग्लोबल वार्मिंग कम रखने की ओर बढ़ा भारत तो जीवाश्म ईंधन से होने वाली आय में होगा बड़ा घाटा

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(www.arya-tv.com) ग्लोबल वार्मिंग को 1.5 डिग्री सेल्सियस तक सीमित करने के अपने प्रयासों में भारत को जीवाश्म ईंधन से प्राप्त होने वाले राजस्व में कटौती का सामना करना पड़ेगा। पर, अगर समय रहते इस मामले में योजनाबद्ध तरीके से काम किया जाएगा तो राजस्व में कमी को बहुत हद तक कम किया जा सकता है। आईआईएसडी (International Institute for Sustainable Development) की ताजा रिपोर्ट में यह बात कही गई है।

आईआईएसडी की रिपोर्ट में कहा गया है कि 2019 में भारत ने जीवाश्म ईंधन उत्पादन और खपत से 92.9 बिलियन अमरीकी डालर का राजस्व अर्जित किया था, जो कि देश के कुल सरकारी राजस्व का 18 प्रतिशत था। स्वतंत्र थिंक टैंक आईआईएसडी ने अपनी रिपोर्ट में कहा है कि अगर भारत ग्लोबल वार्मिंग को 1.5 डिग्री सेल्सियस तक सीमित करने के अपने लक्ष्य की ओर बढ़ता है तो 2050 तक 2019 की तुलना में जीवाश्न ईंधन से होने वाली राजस्व प्राप्ति में लगभग 65 प्रतिशत तक की गिरावट आ जाएगी।

आपको बता दें कि साल 2015 के पेरिस समझौते के तहत दुनिया के कई देशों ने वैश्विक औसत तापमान को 2 डिग्री सेल्सियस से नीचे रखने और बढ़ते हुए ग्लोबल वार्मिंग को 1.5 डिग्री सेल्सियस तक नियंत्रित रखने का लक्ष्य हासिल करने के लिए जीवाश्म ईंधनों के इस्तेमाल में कटौती करने की बात कही थी। समझौता करने वाले देशों में भारत भी शामिल था। गौरतलब है कि दुनिया के सिर्फ छह देशों भारत, रूस, ब्राजील, इंडोनेशिया, चीन और दक्षिण अफ्रीका की आबादी और इन देशों का कार्बन उत्सर्जन पूरी दुनिया की आबादी और कार्बन डाई ऑक्साइड उत्सर्जन का 45 प्रतिशत है। इन देशों का ग्लोबल जीडीपी में 25 प्रतिशत शेयर है। पूरी दुनिया में गरीबी में जीवन गुजार रहे लोगों का एक बड़ा हिस्सा भी इन्हीं देशों में है। रिपोर्ट में कहा गया है कि ये देश जीवाश्म ईंधन राजस्व पर अत्यधिक निर्भरता के कारण उससे हो रही आमदनी कम होने से सबसे ज्यादा प्रभावित होंगे।