बॉर्डर पर तनाव का असर:गोरखपुर में स्वदेशी खिलौनों ने 80% बाजार पर किया कब्जा

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(www.arya-tv.com)लेह-लद्दाख में बॉर्डर पर भारत-चीन के बीच तनाव जारी है। इसका असर अब मैदानी इलाकों में भी देखने को मिलने लगा है। उत्तर प्रदेश के गोरखपुर जिले में आम आदमी ने चाइनीज खिलौनों को नकार दिया है। एक समय था जब चाइनीज खिलौनों का गोरखपुर के बाजार में 80 फीसदी कब्जा था, लेकिन अब स्वदेशी खिलौने बाजार में काबिज होते जा रहे हैं। इसकी सबसे बड़ी वजह ग्राहकों में स्वदेशी उत्पादों को लेकर आई जागरुकता मानी जा रही है।

गुणवत्ता में भी भारतीय खिलाैने चाइनीज उत्पाद से कम नहीं
गोरखपुर के पांडेयहाता मोहल्ले में खिलाैनों की सबसे बड़ी होलसेल की दुकान है। दुकानदार बाबूलाल से कारोबार के संबंध में सवाल पूछा गया तो वे कहने लगे कि कोरोना महामारी के चलते व्यापार काफी प्रभावित है। पहले लॉकडाउन से सबकुछ चौपट हुआ, फिर चीन से तनातनी ने उस पर आग में घी डालने जैसा काम किया। बाजार से चाइनीज खिलौने गायब हैं। लेकिन इस बीच एक अच्छी चीज देखने को मिल रही है कि लोग चाइना के खिलौने नहीं खरीदना चाहते। ग्राहक जब बच्चों के लिए खिलौने खरीदने आ रहा है तो वह स्वदेशी की मांग कर रहा है। बाजार की डिमांड को देखते हुए अब भारत में बने खिलौने ही मंगाए जा रहे हैं। गुणवत्ता में भी वह चीन निर्मित उत्पाद से कम नहीं हैं। खिलौना खरीदने आए असदुद्दीन कहते हैं कि बाजार में भारतीय खिलौने ही दिख रहे हैं। चाइनीज आइटम नहीं मिल रहे हैं।

75-80 करोड़ का सालाना कारोबार

पांडेयहाता और शाहमारुफ में खिलौने की 100 से ज्यादा थोक की दुकानें हैं। आसपास के जिलों के अलावा नेपाल और बिहार के सिवान, छपरा, बेतिया और नरकटियागंज तक खिलाने की आपूर्ति गोरखपुर से होती है। एक अनुमान के मुताबिक खिलौने का सालाना कोरोबार करीब 75 से 80 करोड़ रुपए का है। यहां कई ऐसे थोक विक्रेता हैं, जो महीने में 50 लाख रूपए खिलौना बेच लेते थे। लेकिन लॉकडाउन के बाद से खिलौना की मांग करीब 50 फीसद तक कम हो गई है।