आयुष्मान भारत योजना में कहां हुई गड़बड़ी, CAG की रिपोर्ट में हुआ खुलासा

Health /Sanitation

(www.arya-tv.com) प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सबसे महत्वपूर्ण योजनाओं में से एक है आयुष्मान भारत- प्रधानमंत्री जन आरोग्य योजना। इसके तहत रजिस्टर्ड लोगों को पांच लाख रुपये तक के हेल्थ इंश्योरेंस की सुविधा मिलती है। हाल में इस पर CAG की एक रिपोर्ट चर्चा में आ गई।

कहा गया कि जिन रोगियों को पहले मृत दिखाया, वे अभी भी इलाज करा रहे हैं। इस पर स्वास्थ्य मंत्रालय ने कहा कि मीडिया में जो दावे किए जा रहे हैं, वे भ्रामक हैं। फिर भी कांग्रेस और दूसरे विपक्षी दलों को इस मुद्दे पर BJP को निशाने पर लेने का मौका मिल गया।

राजस्थान का मॉडल

आयुष्मान योजना के मुकाबले कांग्रेस अपनी बीमा योजना के जरिए सत्ता में वापसी की तैयारी कर रही है। इसे पार्टी अपना बड़ा सियासी शस्त्र मान रही है। यह राजस्थान सरकार की ओर से शुरू की गई चिरंजीवी योजना है। इसमें स्वास्थ्य सुरक्षा के तौर पर 25 लाख रुपये का मुफ्त इलाज किया जा रहा है।

जहां आयुष्मान योजना को गरीबों और वंचितों तक सीमित रखा गया है, चिरंजीवी योजना प्रदेश के सभी लोगों के लिए है। कांग्रेस के नेताओं का कहना है कि राजस्थान की इस योजना को आने वाले चुनावों में जन सरोकार का बड़ा मुद्दा बनाकर जनता के सामने रखा जाएगा।

चुनावी सवाल बना

अब सवाल ये है कि क्या 2024 के आम चुनाव में स्वास्थ्य बीमा एक बड़ा मुद्दा होगा? निश्चित रूप से भारतीय राजनीति में मुद्दों की प्रकृति तेजी से बदल रही है। खोखले दावों के मुकाबले जनता उन स्कीमों पर भरोसा कर रही हैं, जो सीधे उनकी जेब पर असर डालते हैं। हिमाचल प्रदेश के विधानसभा चुनाव में किसी ने सोचा भी नहीं था।

कि पेंशन की डिमांड भी सरकार बदलने में भूमिका निभा सकती है। इसी तरह अब ये परखा जाने लगा है कि आयुष्मान तो ठीक है, इसके बाद का क्या प्लान है। मुफ्त न सही, क्या कुछ रकम लेकर हेल्थ इंश्योरेंस की स्कीम सभी को मुहैया कराई जा सकती है, क्या राजस्थान जैसी चिरंजीव योजना हर जगह लागू की जा सकती है?

आयुष्मान का इंतजार

मोदी सरकार ने आयुष्मान योजना को 2018 में लॉन्च किया था। स्कीम को पांच साल हो चुके, तो इसकी उपलब्धियों पर गौर लाजिमी है। ये दुनिया की सबसे बड़ी हेल्थ इंश्योरेंस स्कीम कही जाती है। दावा किया जाता है कि इस स्कीम से देश की 40 फीसदी आबादी कवर हो जाती है। कई बार ये माहौल बना कि इस स्कीम का विस्तार होगा। मध्यम वर्ग के लोगों को भी इससे जोड़ा जाएगा। एक के बाद एक बजट इस ऐलान के इंतजार में बीत गए। लेकिन चुनाव करीब होने के बावजूद अभी तक ये हो नहीं पाया है।

कहीं-कहीं विस्तार

कुछ राज्य सरकारें इसे विस्तार दे रही हैं। मिसाल के तौर पर हरियाणा सरकार ने आयुष्मान को थोड़ा आगे ले जाने का फैसला किया है। अब तीन लाख तक सालाना आय वाले परिवारों को भी इसका लाभ देने की बात कही गई है। इसके लिए 1500 रुपये का भुगतान करना होगा। महाराष्ट्र सरकार भी आयुष्मान भारत के साथ राज्य की जन आरोग्य योजना को जोड़कर सभी को हेल्थ इंश्योरेंस के दायरे में लाने का लक्ष्य रखा है।

दिल्ली, पश्चिम बंगाल और उड़ीसा की सरकारें स्वास्थ्य सुरक्षा के लिए अपनी अपनी स्कीमें चला रही हैं। कहा जा रहा है कि इसके पीछे राजनीतिक कारण हैं। केंद्र ने हाल में आरोप लगाया कि पंजाब सरकार आयुष्मान भारत के केंद्रों को मोहल्ला क्लिनिक बताकर प्रचार कर रही है। कुल मिलाकर क्रेडिट लेने की लड़ाई तेज हो गई है।

पेमेंट को तैयार

युष्मान भारत पर प्रति व्यक्ति प्रीमियम का खर्च 1500 रुपये से भी कम समझा जाता है। अभी सरकारें इसका खर्च उठाती हैं। अगर मध्यम वर्ग के लोगों को भी इस योजना का लाभ मिले तो वो इस प्रीमियम का भुगतान करने के लिए भी तैयार दिखते हैं। इसकी वजह है। महंगाई के रुझानों ने स्वास्थ्य सेवाओं पर भी असर डाला है। कोविड महामारी के बाद बीमा प्रीमियम काफी बढ़ गया है।

आम तौर पर एक छोटा परिवार प्राइवेट कंपनियों के हेल्थ इंश्योरेंस पर 20 से 30 हजार रुपये सालाना खर्च करता है। यह आयुष्मान के खर्च के मुकाबले काफी ज्यादा है। सबसे बड़ी समस्या बुजुर्गों के साथ है, जिन्हें बीमा कंपनियां अपने साथ जोड़ने से अक्सर परहेज करती हैं। उनके लिए प्रीमियम 75 हजार रुपये सालाना भी हो सकता है। एक सर्वे के मुताबिक, भारत में सिर्फ दो फीसदी बुजुर्गों के पास स्वास्थ्य बीमा है।

मेडिकल महंगाई बढ़ी

आंकड़े बताते हैं कि आम बीमारियों में पिछले पांच साल में अस्पताल में भर्ती होने का खर्च दोगुने से ज्यादा हो गया है। इस वक्त आम चीजों की महंगाई दर सात पर्सेंट से ज्यादा है तो रिजर्व बैंक और वित्त मंत्रालय को इसे काबू में करने के लिए दिमाग खपाना पड़ रहा है। मेडिकल कम्युनिटी के लोग बता रहे हैं कि उनके क्षेत्र में महंगाई दर 14 पर्सेंट के करीब है। लोग बीमारियों के प्रति जागरूक भी हो रहे हैं। हेल्थ टेस्ट बढ़ गए हैं।

इससे अस्पतालों में भीड़ बढ़ रही है। नतीजा है स्वस्थ रहने की बहुत ऊंची कीमत चुकानी पड़ रही है। ये स्थिति मध्यम वर्ग के परिवारों को भी गरीबी में धकेल सकती है। इस माहौल में ये माना जा रहा है कि लोग 2024 में वोट देने से पहले इस बात का खयाल जरूर करेंगे कि उन्हें हेल्थ इंश्योरेंस किसके जरिये मिला, या फिर नहीं मिला तो कौन जिम्मेदार है।