(www.arya-tv.com) आपको बता दें कि बिहार में 82% महिलाएं पीरियड्स के दौरान कपड़े के टुकड़े का इस्तेमाल करती तो उधर छत्तीसगढ़ और यूपी में कपड़ा इस्तेमाल करने वाली युवतियों की तादाद 81% है। जागरूकता की कमी के चलते महिलाओं को इन्फेक्शन के अलावा कई गंभीर बीमारियों का भी खतरा रहता है। वॉटर एड की एक रिपोर्ट के मुताबिक हर साल दुनियाभर में 8 लाख के करीब महिलाओं की मृत्यु पीरियड्स के दौरान होने वाले संक्रमण से होती है। वहीं, देश में करीब 11% महिलाएं ही ऐसी हैं, जो पीरियड्स और मेंस्ट्रुअल हेल्थ को लेकर बात करने में कम्फर्टेबल महसूस करती हैं। ये आंकड़ा बताता है कि समाज में पीरियड्स को लेकर चुप्पी किस कदर महिलाओं की हेल्थ पर हावी है।
पीरियड्स में कपड़ों के इस्तेमाल से सर्वाइकल कैंसर का खतरा
राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण की मानें तो 57.6% भारतीय महिला सैनिटरी पैड का इस्तेमाल करती हैं। 62% अभी भी कपड़ा, राख, घास, जूट व अन्य चीजों पर निर्भर हैं। बिहार में 82% महिलाएं पीरियड्स के दौरान कपड़े के टुकड़े का इस्तेमाल करती हैं। जबकि छत्तीसगढ़ और यूपी में पीरियड्स के दौरान कपड़ा इस्तेमाल करने वाली युवतियों की तादाद 81% है। शायद इसी कारण दुनियाभर में सर्वाइकल कैंसर के एक चौथाई से अधिक मरीज भारत से हैं।
सैनिटरी पैड्स पर स्टडी करते हुए टाटा मेमोरियल सेंटर और राष्ट्रीय प्रजनन स्वास्थ्य अनुसंधान संस्थान ने इस रोग का पता लगाने के लिए महाराष्ट्र में महिलाओं के सैनिटरी पैड को इकट्ठा किया गया था। इसके अनुसार भारत में ज्यादातर महिलाएं पीरियड्स के दौरान सैनिटरी पैड की जगह कपड़े का इस्तेमाल करती हैं। चौंकाने वाली बात ये है कि कपड़े का इस्तेमाल करने से पहले ना तो कपड़े को धोती हैं न ही धूप में सूखाती हैं। इस वजह से कपड़े में जीवाणु पैदा हो जाते हैं। इसी को दोबारा इस्तेमाल करना न जाने कितनी बीमारियों को न्योता देता है। वैज्ञानिकों ने सैनिटरी पैड में लगे खून के धब्बे से एचपीवी इंफेक्शन की जांच की, जिसमें 24 महिलाओं में एचपीवी पॉजिटिव पाया गया था, जोकि सर्वाइकल कैंसर के मुख्य कारकों में एक है।
जागरूकता की कमी जान इतनी भारी पड़ी कि सस्टेनेबल सेनिटेशन एंड वॉटर मैनेजमेंट संस्था की मानें तो दुनिया भर में 52% महिलाएं रिप्रोडक्टिव एज में हैं और लगभग सभी हर महीने पीरियड्स से गुजरती हैं। अधिकांश महिलाओं को पीरियड्स के दौरान हाइजीन मेंटेन करने और अपनी देखभाल करने के बारे में न तो जानकारी है और न ही इससे जुड़े संसाधन उपलब्ध हैं। दूसरी ओर खुद को आधुनिक कहने वाला एक ऐसा तबका भी है, जो विज्ञापन में सैनिटरी पैड दिखाते हुए हमेशा खिला हुआ रहने के नुस्खे देता है। इन विज्ञापनों को देखें तो लगता है कि पैड लेने भर से पीरियड की सारी मुश्किलें छू-मंतर हो जाएंगी, लेकिन शायद एड बनाने वाले भूल जाते हैं कि पैड केवल खून रोकता है, दर्द नहीं। भारत में सबसे ज्यादा बिकने वाले सैनिटरी पैड की एक मशहूर ब्रांड की टैगलाइन खुद ही संदेश देती है कि खुलकर कुछ मत बोलो। इस चुप्पी के कारण लगातार महिलाओं की जान जा रही है।
केस- 1
वर्ष 2019 में अहमदनगर की 28 वर्षीय महिला एक ही कपड़े को बार-बार पीरियड्स में इस्तेमाल कर रही थी। पुणे के रूबी हॉल क्लिनिक में गंभीर भर्ती कराने पर पता चला कि उन्हें टॉक्जिक शॉक सिंड्रोम (टीएसएस) हो गया, जो बैक्टीरिया के इन्फेक्शन से होता है। सेप्सिस और जरूरी अंगों के नाकाम होने से आखिर में मौत हो गई।
केस- 2
तमिलनाडु में 12 साल की लड़की ने खुदकुशी कर ली थी। वजह केवल इतनी थी कि पीरियड्स के चलते यूनिफार्म पर लगे खून के दब्बे को लेकर टीचर ने उसे डांटा था। पूरी क्लास के सामने डांट पड़ने के बाद बच्ची डिप्रेशन में आ गई। स्कूल से निकलने के बाद ही उसने बिल्डिंग से कूदकर जान दे दी।
केस-3
दिल्ली के बुराड़ी इलाके में पांचवीं कक्षा में पढ़ रही मासूम ने खुद को कमरे में बंद कर दिया। इसके बाद चुन्नी का फंदा बनाकर पंखे से लटककर खुदकुशी कर ली। परिवार वाले जब बच्ची को फंदे से उतारकर अस्पताल ले गए, तब तक उसकी मौत हो चुकी थी। इस बारे में बच्ची की बड़ी बहन से जानकारी मिली कि दो दिन पहले उसे पहली बार पीरियड आया था। इससे काफी तनाव में थी। बार-बार समझाने पर भी परेशानी कम नहीं हुई।
केस- 4
नेपाल में पीरियड की वजह से बिना खिड़की वाली झोपड़ी में रह रही 21 साल की महिला की दम घुटने से मौत हो गई थी। जब महिला के देर तक न उठने पर उसकी सास झोपड़ी में गई, तो वह मृत पड़ी मिली। महिला को अछूत मानते हुए अलग थलग रहने की इस प्रथा पर रोक लगा दी गई।
जॉन्सन एंड जॉन्सन के ब्राजील, भारत, दक्षिण अफ्रीका, अर्जेंटीना और फिलिपींस में किए गए सर्वे में सामने आया कि लोगों की धारणाओं के कारण महिलाएं सैनिटरी नैपकिन खरीदने में शर्म महसूस करती हैं। पीरियड के दौरान महिलाएं अपनी सीट से उठने में भी शर्म महसूस करती हैं। वजह केवल इतनी है कि कही खून का दाग उनके कपड़ों पर न दिखाई दें। क्योंकि लोग इस रक्त को गंदा मानते है। पीरियड को लेकर प्रजननशीलता और संतानोत्पत्ति (फर्टिलिटी) से जोड़कर देखा जाता है, इसे शर्म का विषय मानकर इसपर और इससे जुड़े विषयों के बारे में बात भी नहीं की जाती है। इसी वजह से पीरियड में महिलाओं का आत्मविश्वास डगमगाने लगता है, खुद पर से भरोसा कम होने लगता है। यदि खुलकर समाज में इस मुद्दे पर बात होती तो महिलाओं को डरने या घबराने की जरूरत न पड़ती।
देखिए पैड इस्तेमाल करते समय गायनाकोलॉजिस्ट डॉ. मनीषा क्या सावधानी बरतने को कहती हैं, कि भले ही सैनिटरी पैड का इस्तेमाल सुरक्षित है, लेकिन कुछ अध्ययनों के अनुसार पैड के इस्तेमाल से जननांग का कैंसर भी हो सकता है। लंबे समय तक सोखने की क्षमता वाले पैड में डाइऑक्सिन और सुपर-अब्सॉर्बेंट पॉलिमर यूज किया जाता है। डायोक्सिन की प्रकृति शरीर में जमा होने से सर्वाइकल कैंसर का खतरा हो सकता है। इसलिए हैवी पीरियड्स हो या न हों, सैनिटरी पैड को बदलना जरूरी है।