चाहता हूं कि मैं अपनी आखिरी सांस लखनऊ की सरजमीं पर लूं: मुनव्वर राना

Lucknow

(www.arya-tv.com)  देश व विदेश के जाने-माने शायर जनाब मुनव्वर राना ने आज आर्य-टीवी मीडिया की टीम को दिए गए एक साक्षात्कार में यह बात कहीं कि वे अपनी सरजमीं लखनऊ से अपनी अंतिम सांसों तक अपना रिश्ता कायम रखना चाहते हैं। उनसे यह पूछे जाने पर कि यूपी ​चुनाव के पहले आपका एक बयान सुर्खियों में आया था कि यदि प्रदेश में दोबारा योगी सरकार सत्ता में आती है तो वे यूपी छोड़ देंगे। इस पर मुनव्वर राना ने कहा कि मैंने अपना सारा बचपन रायबरेली और लखनऊ में गुजारा है मेरे बेटे की एक छोटी-सी गलती के लिए जब प्रशासन ने रात 2 बजे किसी अपराधी की तरह मेरे घर पर छापा मारा और घर की महिलाओं से बदसलूकी की तो इसी से आहत होकर मैंने प्रदेश छोड़ देने की बात कही थी। लेकिन हकीकत में मेरा न तो तब कोई ऐसा इरादा था और न ही अब है।

मीडिया ने मेरे आवेश में दिये गए बयान को तोड़—मरोड़ कर प्रस्तुत किया। इन दिनों मेरा इलाज पीजीआई से चल रहा है ऐसे समय में, मैं किसी नई जगह जाने का जोखिम नहीं उठा सकता। मेरी यह इच्छा है कि मैं यहीं से रुखसत हूं। एक अन्य सवाल के जवाब में मुनव्वर राना ने कहा कि जब भारत व पाकिस्तान का बंटवारा हुआ था तो मेरे खानदान के कई लोग सरहद पार चले गए थे। किंतु न जाने क्यों मेरे पिता ने भारत में रहने का फैसला लिया। इसके पीछे शायद यह वजह रही होगी की मेरी पांच पुस्ते रायबरेली से जुड़ी रही।

यह पूछे जाने पर की क्या कभी आपने अपनी मां को भी अपनी गजले सुनाई है तो उन्होंने जवाब दिया की ऐसे मौके बहुत बार मिले है। अपना एक संस्मरण साझा करते हुए उन्होंने कहा की एक बार जिस मुशायरे में मैंने पढ़ा उसकी सदारत मेरी मां ने की। 2015 में मां के गुजर जाने के बाद जब उन्होंने प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को उनकी मां का आशीर्वाद लेते देखा तो उन्हें बेहद अच्छा लगा। उन्होंने कहा कि अगर कोई अनजान लड़की मेरी महबूबा हो सकती है तो मेरी मां क्यों नही।

2015 में उर्दू अकादमी द्वारा मिले अपने सम्मान की वापसी को लेकर संजीदा होकर मुनव्वर राना ने कहा कि कोई शायर, लेखक, संगीतकार सम्मान का भूखा नहीं होता। मुझे लगा की मुझे यह सम्मान वापस कर देना चाहिए तो मैंने बिना देर किए अपना सम्मान वापस कर दिया।

फिल्मों से लब्जों का रिश्ता खत्म हो गया

फिल्मों के बिना सिर-पैर के गानों पर अपनी प्रतिक्रिया देते हुए उन्होंने कहा कि फिल्मों से लब्जों का रिश्ता खत्म हो गया है और गीत—संगीत के नाम पर सिर्फ डी.जे. बाकि बचा है। एक अंतिम सवाल के जवाब में उन्होंने युवाओं का आह्वान करते हुए कहा कि उनके ही कंधों पर आगे आने वाली सांस्कृतिक विरासत को संजोने की जिम्मेदारी है। आगे उन्होंने कहा कि इसलिए मैं युवाओं को खास अहमियत देता हूं। लगभग डेढ़ घंटे तक चली बातचीत में अपने जीवन और लेखन से जुड़े कई किस्से साझा किये।

आर्य-टीवी की ओर से इस अवसर पर राजेश सिंह, अजय गौतम, विवेक सिंह, हर्षित कौर सैनी, सोनी श्रीवस्ताव, मनीषा सिंह, विवेक शाहू आदि उपस्थित रहे। आर्यकुल कॉलेज के निदेशक डॉ. सशक्त सिंह ने जनाब मुनव्वर राना का आभार व्यक्त करते हुए कहा कि उन्होंने  अपने व्यस्त समय में से आर्य-टीवी मीडिया टीम के लिए जो समय निकाला मैं उनके लिए उनका आभार व्यक्त करता हूं।