पाकिस्तानी राष्ट्रपति और केयरटेकर सरकार आमने-सामने, संसद द्वारा पारित दो विधेयकों को राष्ट्रपति ने पास करने से मना किया

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(www.arya-tv.com) पाकिस्तान में राष्ट्रपति और केयरटेकर सरकार के बीच आमने-सामने की लड़ाई शुरू हो गई है। पूरा विवाद दो कानूनों को लेकर शुरू हुआ है। संसद ने दो विधेयक पारित किए और इसे राष्ट्रपति के पास भेजा था। राष्ट्रपति ने इसे अप्रूव करने से मना कर दिया। अब संवैधानिक नियमों के हिसाब से विधेयक खुद-बखुद कानून बन गए। चूंकि, राष्ट्रपति इमरान खान की पार्टी पीटीआई के नेता रहे हैं, सत्ता पक्ष से विवाद होता रहा है।

राष्ट्रपति राशिद अल्वी ने संसद द्वारा पारित दो विधेयकों को पास करने से मना कर दिया। केयरटेकर सरकार ने दो कानूनों में संशोधन कर देश और सेना के खिलाफ काम करने वाले लोगों पर कड़ी सजा का प्रावधान किया है। राष्ट्रपति के कदम को पाकिस्तान के कानून मंत्रालय ने असंवैधानिक करार दिया। दोनों सदनों से पारित होने के बाद विधेयकों को राष्ट्रपति के पास भेजा गया था, लेकिन इमरान के समर्थक राष्ट्रपति ने अप्रूव करने से इनकार कर दिया।

राशिद अल्वी ने इस बात की जानकारी खुद सोशल मीडिया साइट एक्स (ट्विटर) पर दी। उन्होंने बताया कि अल्लाह मुझे देख रहा है। मैंने ऑफिशियल सीक्रेट संशोधन विधेयक-2023 और पाकिस्तान आर्मी संशोधन विधेयक-2023 पर हस्ताक्षर नहीं किए।

पाकिस्तान के राष्ट्रपति ने कहा कि मैं इन कानूनों से इत्तेफाक नहीं रखता। मैंने अपने स्टाफ से कहा था कि वे इन्हें वापस कर दें। राष्ट्रपति ने बताया कि उन्होंने अपने स्टाफ से इस बारे में पुष्टि के लिए पूछा भी था कि क्या वे विधेयक वापस किए गए, तो उसने हामी भरी, लेकिन आज मुझे पता चला कि मेरे स्टाफ ने मेरे आदेश और आज्ञा का पालन नहीं किया।

पाकिस्तान के कानून मंत्रालय का कहना है कि राष्ट्रपति के पास दो ऑप्शन होते हैं। या तो वे विधेयकों को एक ऑब्जर्वेशन या सुझाव के साथ संसद को वापस भेज दें, और या नहीं तो अप्रूव करें। राष्ट्रपति ने इन दोनों ही नियमों को दरकिनार कर दिया, जो कि असंवैधानिक है। पाकिस्तान के संविधान में प्रावधान है कि अगर राष्ट्रपति किसी भी विधेयक पर दस दिनों के भीतर हस्ताक्षर नहीं करता है या संसद को ऑब्जर्वेशन या सुझाव के साथ वापस नहीं भेजता है और विधेयक राष्ट्रपति के पास ही पड़ा रहता है, तो यह खुद-बखुद कानून बन जाता है।

यही वजह है कि राष्ट्रपति ने अपने स्टाफ से इन विधेयकों को वापस भेजने कहा था लेकिन स्टाफ ने ऐसा नहीं किया। इससे समझा जा सकता है कि राजनीतिक रूप से मजबूत सेना का राष्ट्रपति ऑफिस तक पर पहरा है। केयरटेकर प्रधानमंत्री अनवार-उल-हक का भी सेना से पुराना सांठगांठ रहा है। संविधान में तो यह भी नियम हैं कि केयरटेकर सरकार कोई भी ऐसा कदम नहीं उठाएगी, जो चुनी गई सरकार बाद में बदल ना सके।