आज हर घर में विराजेंगे कान्हा, विशेष बातों पर दें ध्यान

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वाराणसी।(www.arya-tv.com) सनातन धर्म में भाद्र कृष्ण अष्टमी को श्री कृष्ण जन्माष्टमी व्रत करने के रूप में मान्यता है। इस दिन भगवान श्रीकृष्ण का जन्मोत्सव मनाया जाता है। भगवान श्रीकृष्ण का जन्म भाद्र पद कृष्ण अष्टमी बुधवार को रोहिणी नक्षत्र में अर्धरात्रि के समय वृष राशि के उच्चस्थ चंद्रमा में हुआ था।

भगवान के दस अवतारों में से सर्व प्रमुख पूर्णावतार सोलह कलाओं से परिपूर्ण भगवान श्रीकृष्ण को माना जाता है। जो द्वापर के अंत में हुआ था। ज्योतिषाचार्य पं. ऋषि द्विवेदी के अनुसार इस बार कृष्ण जन्माष्टमी व्रत 11 अगस्त को मनाई जाएगी।

वहीं रोहिणी मतावलंबी वैष्णव जन 13 अगस्त को श्रीकृष्ण जन्मोत्सव मनाएंगे। वही अष्टमी तिथि 11 अगस्त को प्रात: 6.15 मिनट से शुरू हो चुकी है। जो 12 अगस्त को प्रात 8.01 मिनट तक रहेगी। वहीं रोहिणी नक्षत्र 12-13 अगस्त को मध्य रात्रि को 1.29 मिनट पर लग रही है।

सब मिलाकर इस बार अष्टमी में रोहिणी नक्षत्र का संयोग नहीं बन रहा है। अत: रोहिणी मतावलंबी उदय व्यापिनी वैष्णव लोग 13 अगस्त को कृष्ण जन्मोत्सव करेंगे। यह सर्वमान्य और पापग्न व्रत बाल कुमार युवा, वृद्ध सभी अवस्था वाले नर नारियों को करना चाहिए।

इससे उनके पापों की निवृति और सुखाग्नि वृद्धि होती है। जो इस व्रत को नहीं करते उनको पाप लगता है। ऐसे करें व्रत और पूजन व्रतियों को चाहिए कि उपवास के पहले दिन रात्रि में अल्पाहार करें। रात्रि में जितेंद्रीय रहें और व्रत के दिन प्रात: स्नाना आदि से निवृत होकर सूर्य, सोम, पवन, दिग्पति, भूमि, आकाश, यम और ब्रम्ह आदि को नमस्कार करके उत्तर मुख बैठें।

हाथ में जल, फल, फूल लेकर माह तिथि पक्ष का उच्चारण कर संकल्प लें। संकल्प में मेरे सभी तरह के पापों का समन व सभी अभीष्ठों की सिद्धि के लिए श्रीकृष्ण जन्माष्टमी का व्रत करेंगे। यह संकल्प करें। मध्यान के समय काले तिलों के जल से स्नान करके देवकी जी के लिए सूतिका गृह नियत करें।

उसे स्वच्छ व सुशोभित करके उसमें सूतिका के उपयोगी सब सामग्री यथा क्रम रखें। फिर एक सुंदर बिछौना के ऊपर अक्षतादि का मंडल बनाकर उसपर कलश स्थापन करें उसी पर सद्य: प्रसूत श्रीकृष्ण को स्तनपान कराती हुई मूर्ति स्थापित करें।

फिर रात्रि में भगवान के जन्म के बाद जागरण व भजन इत्यादि करना चाहिए। इस व्रत को करने से सभी तरह के पापों से मुक्ति मिलती है व पुत्र की इच्छा रखने वाली महिलाओं को पुत्र, धन की कामना वालों को धन यहां तक की इस व्रत को करके कुछ भी पाना असंभव नहीं रहता। अंत में बैकुंठ की प्राप्ति होती है।