सुप्रीम कोर्ट का अहम फैसला: केंद्र सरकार से माँगा जबाब, दो हफ़्तों की समय सीमा निर्धारित

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आर्य प्रवाह टीवी के विशेष संवाददाता विशाल सक्सेना की स्पेशल स्टोरी…

  • सुप्रीम कोर्ट का अहम फैसला: केंद्र सरकार से माँगा जबाब, दो हफ़्तों की समय सीमा निर्धारित।
Vishal Saxena

(www.arya-tv.com)आज की कवर स्टोरी में होगी बात केंद्र सरकार का Covid-19 लॉकडाउन के दौरान कर्मचारियों को अप्रैल माह का पूरा वेतन देने का आदेश, इस आदेश को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती। इसी पर होगी चर्चा, स्पेशल कवर स्टोरी विस्तृत जानकारी के साथ..

लॉकडाउन के दौरान निजी कंपनियों के कर्मचारियों को पूरा वेतन देने के केंद्र सरकार के आदेश को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी गयी है। देश की शीर्ष अदालत में दाखिल याचिका में कहा गया है कि लॉकडाउन के कारण कमाई नहीं हो रही ऐसे में हम वेतन और मेहनताना कहां से दें, यह संभव नहीं है। लुधियाना के हैंड टूल्स एसोसिएशन ने यह याचिका गुरुवार को दाखिल की है।

हैंड टूल्स एसोसिएशन के अध्यक्ष सुभाष चंद्र रल्हान ने कहा कि लॉकडाउन के कारण 25 मार्च से उद्योग पूरी तरह से बंद हैं और कोई काम नहीं हो रहा है। उन्होंने कहा, पाबंदियों के कारण हम न तो निर्यात कर पा रहे हैं और न ही घरेलू बाजार में कुछ बेच पा रहे हैं। ऐसे में कोई कमाई नहीं हो रही, हम वेतन और मेहनताना कहां से दें, यह संभव नहीं है। उन्होंने कहा कि संगठन ने संविधान के अनुच्छेद 32 के तहत उच्चतम न्यायालय का दरवाजा खटखटाया है और गृह मंत्रालय द्वारा 29 मार्च को जारी आदेश को रद्द करने, तथा आपदा प्रबंधन अधिनियम 2005 की धारा 10(2) की वैधता को चुनौती दी है।

  • याचिका में क्या कहा गया?

याचिका में कहा गया है कि आपदा प्रबंधन अधिनियम 2005 केंद्र सरकार को लॉकडाउन के दौरान निजी प्रतिष्ठानों को कर्मचारियों को पूरा वेतन देने का निर्देश देने का अधिकार नहीं देता है। 29 मार्च 2020 को जारी सरकारी आदेश औद्योगिक विवाद अधिनियम 1948 का उल्लंघन करता है। औद्योगिक विवाद अधिनियम 1948 प्राकृतिक आपदा के दौरान 50 प्रतिशत वेतन देने की व्यवस्था करता है।

  • एसोसिएशन ने सरकार पर आरोप लगाते हुए कहा कि सरकार ने निजी प्रतिष्ठानों की वित्तीय क्षमता पर विचार किये बिना हड़बड़ी में यह आदेश जारी कर दिया है।
  • आपको अवगत करा दें कि 11 लघु, कुटीर एवं मध्यम उद्योग (एमएसएमई) कंपनियों की तरफ से सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की गई है। याचिका में कहा गया है कि ये आदेश संविधान के अनुच्छेद 14 और 19(1) का उल्लंघन करता है और ये भी कहा गया है कि प्राइवेट कंपनियों को अपने कर्मचारियों को 70 फीसदी वेतन देने की छूट दी जाए।
  • याचिकाकर्ता के मुताबिक यह पैसा सरकार कर्मचारी राज्य बीमा निगम या पीएम केयर्स फंड से दिया जाना चाहिए। इसके अलावा याचिका में यह भी कहा गया है कि सरकार को प्राइवेट कंपनियों पर किसी भी तरह का वित्तीय भार लादने का अधिकार नहीं है और इसके लिए वह आपदा प्रबंधन अधिनियम, 2005 का सहारा नहीं ले सकती है।

दाखिल याचिका में कहा गया है, आवश्यक सेवा से जुड़े उद्योगों को लॉकडाउन में काम करने की इज़ाज़त दी गयी है, लकिन सभी कर्मचारियों को पूरा वेतन देने के केंद्र सरकार के आदेश का फायदा उठाकर ज्यादातर कर्मचारी काम पर नहीं आ रहे है, ऐसे में कोरोना के दौरान पहले से संकट का सामना कर रहे उद्योगों को उन्हें पूरा वेतन देने के लिए बाध्य नहीं किया जाना चाहिए। जो मज़दूर ड्यूटी कर रहे है और जो मज़दूर काम पर नहीं आ रहे है उन्हें एक बराबर का दर्ज़ा कैसे दिया जा सकता है ? और ऐसा करना काम करने वाले मज़दूरों के साथ भेदभाव होगा।

  • ऐसे में, निजी प्रतिष्ठानों को पूरा वेतन भुगतान करने का निर्देश दिया जाना पूरी तरह से अतार्किक और मनमाना फैसला है।

सुप्रीम कोर्ट बेन्च, न्यायमूर्ति एन.वी. रमना की अध्यक्षता में न्यायमूर्ति संजय किशन कौल, न्यायमूर्ति बी.आर.गावाइ ने लॉकडाउन के दौरान कर्मचारियों को पूरा वेतन देने के सरकारी निर्देश पर, सरकार को औपचारिक नोटिस जारी किये बगैर दो सप्ताह में केंद्र सरकार से जबाब देने को कहा है और इस मामले पर दो सप्ताह बाद फिर से सुनवाई करने का फैसला किया है।

जल्द ही फिर से मुलाकात होगी एक नयी कवर स्टोरी के साथ।आपका दोस्त, विशाल सक्सेना aryatvup@gmail.com