- क्या होगा प्राइवेट नौकरी वालों का!वित्तयी संकट गहराया कैसे मिले सैलरी? आर्य प्रवाह टीवी की स्पेशल स्टोरी…
(www.arya-tv.com)दराअसल मामला कोविड.19 के दौरान प्राइवेट मालिक और कर्मचारी के बीच सैलरी का है,कुछ बातें मुख्य है जिनको जानलेना हम लोगों के बहुत ही जरूरी है,इन मुख्य बातों से हम मोदी जी के बताये गये आत्मनिर्भर फार्मूले पर कुछ करके इस मुश्किल दौर से शायद निकल सके।
- केन्द्र सरकार द्वारा कोविड.19 को देखते हुए प्राइवेट कर्मचारियों को वेतन देने के मामले में जो आदेश दिया था वो प्राइवेट मालिकों द्वारा संभव नहीं हो पा रहा है
- इसी को लेकर कोर्ट कुछ प्राइवेट संगठनों द्वारा सुर्पीम कोर्ट में अर्जी दी गयी और इस आदेश को चुनौती दी गयी
- मालिको द्वारा आपदा का हवाला देते हुए आधी सैलरी का वादा किया जा रहा है क्योंकि सरकार ने आपदा की स्थिति में 50 प्रतिशत का नियम बना रखा है
- पर वित्त मामलों के जानकार बताते हैं कि केन्द्र सरकार ने आदेश तो दिया पर कोवडि.19 के दौर में चाहे सरकार हो या प्राइवेट संस्थान सब के सामने सिर्फ वित्तीय संकट ही नजर आ रहा है
- सुप्रीम कोर्ट ने इन तमाम प्राइवेट मालिकों की समस्या को समझते हुए केन्द्र सरकार से इस मामले में दो सप्ताह में जवाब दाखिल करने को कहा है
- क्योंकि बिना कमाई के प्राइवेट बाडी भी क्या कर सकती है
- बड़े—बड़े प्राइवेट संस्थानों की माली हालत बहुत खराब है,
- हमारी मीडिया की मंडी की बात करें तो इसमें भी तमाम छोटे—बड़े ग्रुर्पों द्वारा गुप—चुप तरीके से बहुत से कर्मचारियों को घर पर ही रहने की सलाह के साथ वेतन और नौकरी दोनों से छुट्टी कर दी गयी है
- पर प्राइवेट संस्थान के सामने भी बहुत ही बड़ी मजबूरी आ गयी है वित्तीय संकट लगातार गहराता ही चला जा रहा है
आखिर ऐसी विषम परिस्थितियों में वह भी क्या करें - यह समस्या तो पूरे विश्व के सामने आ कर खड़ी हो गयी है
- जिसमें बड़े ही धैर्य और साहस का परिचय देते हुए हम सब को मोदी जी के बताये गये फार्मूले सिर्फ अपनी जान है तो जहान है पर विशेष जोर देते हुए काम चलाना होगा
- कम पैसे खर्च करके और सादा भोजन खाकर ही काम चलाना है
- जबतक कि इस कोरोना को खत्म करने वाली वैक्सीन विकसित न हो जाए और लॉकडॉउन खुल न जाये
देश के छोटे बड़े चैनलों,समाचारों,न्यूज साइटों से कुछ बातें निकलकर आयी है जिनपर ध्यान देना आवश्यक है
- जब कोविड.19 की मार पड़ी तो लॉकडॉउन हो गया,जो जहां जैसा था वैसा ही रह गया समझो किसी भी काम का न रहा
- मालिक और कर्मचारी दोनों ने धैर्य बनाकर रखा,मालिक सोचते रहे कि शायद संक्रमण कम हो तो वित्तीय स्थितियां सही हो,पर ऐसा नहीं हुआ,ऐसे में जो मालिकों के पास था भी वह भी थोड़ा—थोड़ा करके खर्च हो गया
- अब आनलाइन पढ़ाई की बारी आयी उसमें भी बहुत मुश्किल हो गयी,लोग कोर्ट भी गये कोर्ट ने आदेश दिया आनलाइन पढ़ाई बच्चों का खेल नहीं तमाम प्रकार की व्यवस्था करनी होती है बहुत सारा डेटा खर्च होता है आसान नहीं होता यह काम
सरकारी पैकेज का लाभ
- सरकारी पैकेज का लाभ गरीबों को मिला,मध्यमवर्गीय क्या करें जबकि वास्तव में खाने के लाले पड़े हुए हैं कह भी नहीं सकता,राशन भी मिल नहीं सकता,भूखा भी सो नहीं सकता,करे तो क्या करे।
- अब तो यही सोचते हैं कि गरीब ही होते तो फायदा ही होता खाने के लाले न पड़ते
- सरकार करेगी मध्यम वर्ग के लिए कुछ पैकेज का ऐलान सबको है इंतजार
- सरकार द्वारा गरीबों को राशन,खाते मेें रूपये,नौकरी का आश्वासन सब मिल रहा है मध्यवर्गीय सिर्फ तड़प ही रहा है