चंबलः बीहड़ के मिट्टी कटानों को बांसों ने रोका, यह तरीका आया काम

Agra Zone UP

आगरा।(www.arya-tv.com) बीहड़ में ढलान की भूमि बरसात के दौरान दरक जाती थी। घनघोर बारिश से ये दरकन चौड़ी होकर खाई का रूप लेती थी। ग्रामीण हादसे का शिकार होते थे। बरसात में लोग गांव से पलायन कर जाते थे।

भारतीय मृदा एवं जल संरक्षण संस्थान, अनुसंधान केंद्र, छलेसर की टीम ने यहां पर बांस के पौधे रोपे। अब यहां पर जगह-जगह बांस के झुंड हैं। इससे भूमि का कटान रुक गया है। ग्रामीणों को इससे बहुत राहत मिली है।

बरसात के दौरान सबसे ज्यादा मुसीबत बाह क्षेत्र के मानिकपुरा में होती थी। संस्थान की टीम ने वर्ष 2009 में यहां सर्वे कर बांस के पौधे रोपे।

नियमित देखभाल के बाद वर्ष 2014 में ये पौधे बांस के पेड़ का रूप ले चुके थे। इससे मृदा का कटान रुक गया। संस्थान की टीम समय-समय पर गांव जाती है और ग्रामीणों को बांस रोपण के लिए प्रेरित करती है।

बाह के कुछ क्षेत्र में कच्चे नालों के आसपास की भूमि तेजी से कट रही थी। संस्थान ने नालों में खाइयां खोदकर बांस के पौधों का रोपण किया।

रेत के बोरों से चेक डैम बनाकर उनके ऊपर की ओर और नीचे की ओर बांस के पौधों का रोपण किया। बांस के पेड़ों से कटान रुक गया। बांस की पौध 20 रुपये की आती है।

इसकी बहुत लंबी आयु होती है। ये पौधा अपने आसपास भी पौध विकसित कर देता है। एक पौध से 40 से 50 बांस निकलते हैं। वर्तमान में एक बांस 40 रुपये में बिक जाता है। हालांकि इसके लिए उत्पादकों को पहले वर्ष पौध को पानी देना होता है। दो वर्ष तक पशुओं से बचाना होता है।