(www.arya-tv.com) दिल्ली सेवा विधेयक मंगलवार को संसद के निचले सदन यानी लोकसभा में पेश किया गया। इसे आधिकारिक रूप से राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली सरकार (संशोधन)दिल्ली सेवा विधेयक मंगलवार को संसद के निचले सदन यानी लोकसभा में पेश किया गया। इसे आधिकारिक रूप से राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली सरकार विधेयक, 2023 नाम दिया गया है। इस पर चर्चा से पहले आम आदमी पार्टी को बड़ा झटका लगा है। बहुजन समाज पार्टी (बसपा) ने दिल्ली सेवा बिल पर यू टर्न ले लिया है।
पार्टी का कहना है कि वह लोकसभा और राज्यसभा में वोटिंग के दौरान बायकॉट करेगी। इससे पहले बसपा ने दिल्ली सेवा बिल पर केजरीवाल की पार्टी AAP को समर्थन देने की बात कही थी। उधर, ओडिशा की सत्ताधारी बीजेडी और टीडीपी ने इस बिल पर केंद्र सरकार का समर्थन करने का ऐलान किया है। इससे पहले वाईएसआर भी केंद्र को समर्थन देने की बात कह चुकी है। ऐसे में जानते हैं कि दोनों सदनों में अब नंबर गेम क्या होगा?
लोकसभा में क्या है हाल?
-लोकसभा में क्या है हाल?
– लोकसभा में मोदी सरकार बहुमत में है। बीजेपी के पास 301 सांसद हैं. एनडीए के पास 333 सांसद हैं। वहीं पूरे विपक्ष के पास कुल 142 सांसद हैं. सबसे ज्यादा 50 सांसद कांग्रेस के हैं। ऐसे में लोकसभा में दिल्ली अध्यादेश पर बिल मोदी सरकार आसानी से पास करा लेगी। इसके अलावा बीजेडी (12), वाईएसआर (22) और टीडीपी (3) ने समर्थन का ऐलान किया है। तीनों पार्टियों के पास लोकसभा में 37 सांसद हैं. बसपा के 9 सांसद हैं और अगर पार्टी बायकॉट करती है, तो बहुमत के लिए और भी कम सांसदों की जरूरत पड़ेगी।
– राज्यसभा का क्या है गणित?
– राज्यसभा में कुल सांसद 238 हैं। बीएसपी का राज्यसभा में 1 सांसद है. ऐसे में बसपा बायकॉट करती है, तो कुल सांसद 237 होंगे और बहुमत के लिए 119 सांसदों की जरूरत पड़ेगी। विपक्षी दलों के गठबंधन INDIA पर 105 सांसद हैं। – वहीं, बीजेपी के राज्यसभा में 92 सांसद हैं। इनमें 5 मनोनीत सांसद हैं। जबकि सहयोगी दलों को मिलाकर यह 103 हो जाते हैं। बीजेपी को दो निर्दलीय सांसदों काभी समर्थन है। इसके अलावा दिल्ली सेवा बिल पर वाईएसआर, बीजेडी और टीडीपी ने केंद्र का समर्थन करने का ऐलान किया। बीजेपी और वाईएसआर कांग्रेस के राज्यसभा मे 9-9 सांसद हैं जबकि टीडीपी का एक सांसद है। ऐसे में अब बीजेपी के पास 124 सांसदों का समर्थन होगा और राज्यसभा में भी बिल आसानी से पास हो जाएगा।
बिल पर केजरीवाल के विरोध में कौन कौन सी पार्टियां ?
- पार्टी राज्यसभा में सीटें
- बीजेपी 92
- वाईएसआर 9
- बीजेडी 9
- AIADMK 4
- आरपीआई 1
- टीडीपी 1
- असम गण परिषद…
- पट्टाली मक्कल काची 1
- तमिल मनीला कांग्रेस 1
- एनपीपी 1
- एमएनएफ 1
- यूपीपी(लिबरल) 1
बिल पर केजरीवाले के पक्ष में कौन कौन?
- पार्टी राज्यसभा में सीटें
- कांग्रेस 31
- टीएमसी 13
- आप 10
- डीएमके 10
- सीपीआई एम 5
- जेडीयू 5
- शिवसेना (उद्धव गुट)एनसीपी (शरद पवार) 3
- जेएमएम 2
- सीपीआई 2
- आईयूएमएल केरल कांग्रेस 1
- आरएलडी 1
- एमडीएमके 1
- – एनसीपी के 4 राज्यसभा सांसद हैं। लेकिन प्रफुल्ल पटेल खुले तौर पर अजित गुट में शामिल हुए हैं। ऐसे में उनका वोट भी बीजेपी को मिलने की संभावना है।
केंद्र और दिल्ली सरकार के बीच लंबे समय से चला आ रहा विवाद?
दरअसल, दिल्ली में अधिकारों की जंग को लेकर लंबे समय से केंद्र और केजरीवाल सरकार में ठनी है. दिल्ली में विधानसभा और सरकार के कामकाज के लिए एक रूपरेखा प्रदान करने के लिए राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली सरकार (GNCTD) अधिनियम, 1991 लागू है. 2021 में केंद्र सरकार ने इसमें संशोधन किया था।संशोधन के तहत दिल्ली में सरकार के संचालन, कामकाज को लेकर कुछ बदलाव किए गए थे। इसमें उपराज्यपाल को कुछ अतिरिक्त अधिकार दिए गए थे।
इसके मुताबिक, चुनी हुई सरकार के लिए किसी भी फैसले के लिए एलजी की राय लेनी अनिवार्य किया गया था। GNCTD अधिनियम में किए गए संशोधन में कहा गया था, ‘राज्य की विधानसभा द्वारा बनाए गए किसी भी कानून में सरकार का मतलब उपराज्यपाल होगा।’ इसी वाक्य पर मूल रूप से दिल्ली की अरविंद केजरीवाल सरकार को आपत्ति थी। इसी को आम आदमी पार्टी ने सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी थी।
– केजरीवाल सरकार ने सुप्रीम कोर्ट से मांग की थी कि राजधानी में भूमि और पुलिस जैसे कुछ मामलों को छोड़कर बाकी।सभी मामलों में दिल्ली की चुनी हुई सरकार की सर्वोच्चता होनी चाहिए।
सुप्रीम कोर्ट ने केजरीवाल सरकार के पक्ष में सुनाया फैसला
– केजरीवाल की याचिका पर मई में सुप्रीम कोर्ट ने बड़ा फैसला सुनाया। चीफ जस्टिस डी वाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली 5 जजों की संविधान पीठ ने माना दिल्ली (राष्ट्रीय राजधानी राजधानी क्षेत्र ) में विधायी शक्तियों के बाहर के क्षेत्रों को छोड़कर सेवाओं और प्रशासन से जुड़े सभी अधिकार चुनी हुई सरकार के पास होंगे। हालांकि,, पुलिस, पब्लिक आर्डर और लैंड का अधिकार केंद्र के पास ही रहेगा.- कोर्ट ने अपने फैसले में कहा, ”अधिकारियों की तैनाती और तबादले का अधिकार दिल्ली सरकार के पास होगा। चुनी हुई सरकार के पास प्रशासनिक सेवा का अधिकार होगा। उपराज्यपाल को सरकार की सलाह माननी होगी।”
सुप्रीम कोर्ट के फैसले के खिलाफ केंद्र लाया अध्यादेश
– केंद्र की ओर से सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले को बदलने के लिए 19 मई को जो अध्यादेश लाया गया था। इसमें राष्ट्रीय राजधानी सिविल सेवा प्राधिकरण (एनसीसीएसए) बनाने को कहा गया था। इसमें कहा गया था कि ग्रुप-ए के अफसरों के ट्रांसफर और उनपर अनुशासनिक कार्रवाही का जिम्मा इसी प्राधिकरण को दिया गया। अब इस अध्यादेश को कानूनी रूप देने के लिए सदन में विधेयक पेश किया गया है