2024 की परीक्षा से पहले क्यों रणछोड़ बनीं प्रियंका गांधी, कहीं छवि बचाने की कोशिश तो नहीं

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(www.arya-tv.com) लोकसभा चुनाव से चार महीने पहले कांग्रेस ने उत्तर प्रदेश का प्रभारी ही बदल दिया। गांधी परिवार की प्रियंका गांधी वाड्रा की जगह अविनाश पांडेय को उत्तर प्रदेश कांग्रेस का प्रभारी नियुक्त किया गया। 2019 के लोकसभा चुनाव से पहले तत्कालीन कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने उन्हें पूर्वी उत्तर प्रदेश की जिम्मेदारी दी थी।

चुनाव के बाद प्रियंका गांधी को यूपी का प्रभारी महासचिव बनाया गया था। कांग्रेस नेताओं का कहना है कि प्रियंका गांधी को पार्टी बड़ी जिम्मेदारी दे सकती है। इसके अलावा वह राहुल गांधी की प्रस्तावित भारत जोड़ो यात्रा पार्ट-2 में शामिल हो सकती हैं, इसलिए यूपी जैसे बड़े राज्य के दायित्व से मुक्त किया गया है।

प्रियंका 2022 में ही पार्टी के महासचिव पद से इस्तीफा दे चुकी थी। अब प्रियंका गांधी को लेकर तरह-तरह कयास लग रहे हैं। संभव है कि उन्हें 2024 में रायबरेली या चिकमंगलूर से चुनाव मैदान में उतारा जाए।

दूसरी ओर, राजनीति गलियारों में एक तबका इसे 2024 चुनाव में प्रियंका की छवि बचाने का हथकंडा मान रहा है, क्योंकि 2024 में उत्तर प्रदेश में कांग्रेस की जीत की संभावना न के बराबर है। मोदी-यौगी और राम मंदिर के माहौल में कोई चमत्कार ही कांग्रेस को बड़ी जीत दिला सकती है।

यूपी में फेल हो गई प्रियंका, पार्टी सबसे बुरे दौर में पहुंची

उत्तर प्रदेश में लोकसभा की 80 लोकसभा सीटें हैं। 2009 के बाद से कांग्रेस की स्थिति राज्य में काफी कमजोर हुई है। 2014 में कांग्रेस को सिर्फ दो सीट रायबरेली और अमेठी से जीत मिली थी। 2019 में पार्टी को सिर्फ रायबरेली में सोनिया गांधी की जीत से संतोष करना पड़ा था।

2019 में प्रियंका गांधी ने पूर्वी उत्तर प्रदेश में प्रचार का जिम्मा संभाला था मगर पार्टी को एक सीट भी नहीं मिली। प्रियंका गांधी के कार्यकाल में यूपी में चार चुनाव हुए और सभी चुनावों में कांग्रेस को हार की नसीब हुई। पंचायत चुनाव और निकाय चुनाव में कांग्रेस का कहीं अता-पता नहीं चला।

2022 के विधानसभा चुनाव से पहले प्रियंका गांधी ने ‘लड़की हूं, लड़ सकती हूं’ के नारे के साथ कांग्रेस के 399 उम्मीदवारों को मैदान में उतारा। चुनाव में सभी कैंडिडेट के नाम पर उन्होंने इंटरव्यू के बाद मुहर लगाई थी। विधानसभा चुनाव में 387 कांग्रेस उम्मीदवारों की जमानत जब्त हो गई।

पार्टी विधानसभा में सबसे बुरी स्थिति में पहुंची। कांग्रेस के दो विधायक ही चुने गए। 2017 विधानसभा चुनाव के मुकाबले 2022 में कांग्रेस का वोट शेयर 6.25 से घटकर 2.33 प्रतिशत हो गया। अभी आ रहे ओपिनियन पोल भी इशारा कर रहे है कि 2024 में यूपी में कांग्रेस की स्थिति बेहतर नहीं होगी।

डेढ़ साल से राज्य में झांकने नहीं आईं प्रियंका, मुलाकात भी असंभव

नाम न छापने की शर्त पर पार्टी के एक पूर्व पदाधिकारी ने बताया कि विधानसभा चुनाव के हार के बाद प्रियंका गांधी ने उत्तर प्रदेश की ओर ध्यान देना ही बंद कर दिया। वह हिमाचल प्रदेश चुनाव में व्यस्त हो गई।

यूपी के कार्यकर्ता पिछले डेढ़ साल से प्रियंका गांधी का इंतजार करते रहे। इस दौरान उनका एक भी कार्यक्रम उत्तर प्रदेश में नहीं हुआ। उत्तर प्रदेश के नेता और पदाधिकारियों को दिल्ली में मुलाकात के लिए लंबा इंतजार करना पड़ता है।

कार्यकर्ताओं की तो पूछिए ही मत। उनकी चिंता को कौन पूछ रहा है। प्रियंका गांधी को पूरे देश में स्टार प्रचारक के तौर पर आजमाया जाएगा। मगर सिर्फ चुनावी रैली में प्रियंका गांधी के आने का कितना फायदा होगा, यह तो 2024 में पता चलेगा। फिलहाल राहुल गांधी की भारत जोड़ो यात्रा के दूसरे संस्करण से उम्मीद है।

सफल नहीं हुई प्रियंका में इंदिरा गांधी की छवि लाने की कोशिश

पॉलिटिकल एक्सपर्ट मानते हैं कि कांग्रेस के लिए यूपी की राह आसान नहीं है। वोट बैंक और कैडर से जूझ रही पार्टी को उत्तर प्रदेश में चमत्कार के सिवाय कोई उबार नहीं सकता है। सिर्फ प्रियंका गांधी के चेहरे के सहारे चुनावी नैया पार नहीं की जा सकती है।

कांग्रेस के नेता वोटरों को प्रियंका गांधी में इंदिरा गांधी की छवि दिखाना चाहते हैं। मगर वह भूल गए हैं कि इंदिरा गांधी के बाद कांग्रेस ने खुद कई नए चेहरे के सहारे आगे बढ़ती रही। आज की युवा पीढ़ी और फर्स्ट टाइम वोटर बन रहे युवा नरेंद्र मोदी, अखिलेश यादव, राहुल गांधी, योगी आदित्यनाथ जैसे चेहरों को देखकर वोट कर रहे हैं।

यूपी और भारत इंदिरा गांधी की लीगेसी से आगे बढ़ चुका है। खुद प्रियंका गांधी ने मध्यप्रदेश और राजस्थान जैसे राज्यों में इंदिरा गांधी की कहानियां सुनाकर वोट मांगे, मगर जनता पर इसका असर नहीं पड़ा।

लोगों ने नरेंद्र मोदी के चेहरे को वोट दिया। जो कांग्रेस उम्मीदवार जीते, वह अपनी व्यक्तिगत उपलब्धियों के आधार पर सफल रहे। हिमाचल और कर्नाटक में बदलाव का श्रेय प्रियंका गांधी को दिया जा रहा है, मगर यह नहीं भूलना चाहिए कि उन राज्यों में बीजेपी का विकल्प कांग्रेस ही थी।

अगर उत्तर प्रदेश की बात करें तो कांग्रेस को नरेंद्र मोदी की छवि के अलावा योगी आदित्यनाथ के सख्त प्रशासक वाले कद से भी लड़ना होगा। इसके अलावा गठबंधन के बाद समाजवादी पार्टी और अखिलेश यादव के कोर वोट बैंक को अपने पक्ष में लाना भी आसान नहीं है। प्रियंका गांधी ने प्रभार छोड़कर अपनी छवि बचाई है।