राजस्थान-MP और छत्तीसगढ़ में दो-दो डेप्युटी CM, क्या आप जानते हैं देश के पहले उपमुख्यमंत्री कौन थे? कहां से शुरू हुई ये परंपरा

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(www.arya-tv.com) मध्य प्रदेश, राजस्थान और छत्तीसगढ़ में बीजेपी ने सरकार बना ली है। मुख्यमंत्रियों के अलावा इन तीनों राज्यों में दो-दो उपमुख्यमंत्री भी बनाए गए हैं। आखिर क्या होता है उपमुख्यमंत्री? डेप्युटी सीएम बनाने की ये परंपरा कहां से शुरू हुई? उपमुख्यमंत्री की जिम्मेदारी क्या होती है?

क्यों डेप्युटी सीएम को इतना खास माना जाता है? इन सारे सवालों के जवाब आपको हमारी इस खबर में मिलेंगे। सबसे पहले तो आप ये जान लीजिए कि उपमुख्यमंत्री बनाने के पीछे सत्ता को दो चक्कों के सिद्धांत के हिसाब से गाड़ी चलाना यानि सरकार चलाना माना जाता है।

क्यों बनाए जाते हैं डेप्युटी सीएम

सबसे पहले तो आप ये जान लीजिए कि डेप्युटी सीएम या डेप्युटी पीएम कोई संवैधानिक पद नहीं है। इस पद पर मौजूद नेता के पास न तो सीएम या फिर न ही पीएम की शक्ति होती है। न ही इस पद पर तैनात नेता सीएम या पीएम की गैरहाजिरी में मंत्रिमंडल को लीड कर सकता है।

यही नहीं, इन्हें इस पद के लिए अलग से कोई वेतन या भत्ता भी नहीं मिलता है। सियासी गलियारों में कहा जाता है कि डेप्युटी सीएम यानी उपमुख्यमंत्री का पद कोई संवैधानिक आवश्यकता नहीं होती। ये तो बस सियासत में तुष्टिकरण के लिए इस्तेमाल किया जाता है।

कोई भी पार्टी कभी अपने जातीय समीकरण बनाए रखने तो कभी गठबंधन दलों की संतुष्टि के लिए उप मुख्यमंत्री बनाती है। इसी वजह से डेप्युटी सीएम या डेप्युटी पीएम भी बाकी मंत्रियों की तरह ही शपथ लेते हैं।

जब देवीलाल के उप प्रधानमंत्री की शपथ लेने पर हुआ विवाद

ये उस वक्त की बात है जब केंद्र ने जनता दल की सरकार थी। 1989 से 1991 तक केंद्र में यही सरकार रही। जनता दल सरकार में पहले मुख्यमंत्री दिवंगत विश्वनाथ प्रताप सिंह और फिर दिवंगत चंद्रशेखर प्रधानमंत्री बने।

इन दोनों की ही कैबिनेट में दिवंगत चौधरी देवीलाल उप प्रधानमंत्री बने। पहली बार जब देवीलाल ने सरकार में जिम्मेदारी संभाली तो उन्होंने खुद को उप प्रधानमंत्री कह कर शपथ ली। इसके बाद उनकी शपथ पर विवाद शुरू हो गया।

आखिर में तत्काली अटॉर्नी जनरल सोली सोराबजी को सुप्रीम कोर्ट में सफाई देनी पड़ी कि डेप्युटी पीएम कोई संवैधानिक पद नहीं है और देवीलाल का दर्जा किसी कैबिनेट मंत्री की तरह ही है।

बिहार से शुरू हुई डेप्युटी सीएम की परंपरा

आप ये जान कर हैरान रह जाएंगे कि देश के पहले डेप्युटी सीएम यानी उपमुख्यमंत्री बिहार में बने। ये थे कांग्रेस के दिग्गज नेता अनुग्रह नारायण सिन्हा। साल 1946 से 1957 तक ए एन सिन्हा बिहार के उपमुख्यमंत्री रहे।

इसके बाद साल 1967 में कर्पूरी ठाकुर बिहार के उपमुख्यमंत्री बने। ये अलग बात है कि बतौर उपमुख्यमंत्री अनुग्रह नारायण सिन्हा 11 साल से ज्यादा इस पद पर काबिज रहे, जबकि कर्पूरी ठाकुर का कार्यकाल सिर्फ 329 दिन यानि एक साल से भी कम रहा।

बिहार के बाद राजनीतिक दलों ने राजस्थान और पंजाब में किए गए। आइए आपको दिखाते हैं देश के उन उप मुख्यमंत्रियों की ये लिस्ट…

आंध्र प्रदेश में सबसे ज्यादा डेप्युटी सीएम

आंध्र प्रदेश में तो एक राज्य में सबसे ज्यादा उप मुख्यमंत्रियों का रिकॉर्ड ही टूट गया। यहां एक दो नहीं बल्कि पांच-पांच डेप्युटी सीएम बनाए गए। वाईएसआर कांग्रेस सुप्रीमो जगन मोहन रेड्डी ने ये प्रयोग किया।

जगन मोहन ने अपनी सरकार में पांच उपमुख्यमंत्री बनाए। आंध्र प्रदेश सरकार में के नारायण स्वामी, अमजद बाशा, राजन्ना डोरा पीडिका, बुदी मुत्याला नायडू, कोट्टू सत्यनारायण उप मुख्यमंत्री हैं।

उप मुख्यमंत्रियों से राज्य को कितना फायदा

बिहार के मशहूर पॉलिटिकल एक्सपर्ट ‘डॉ संजय कुमार के मुताबिक ये बस एक सम्मानजनक पद है। इससे राज्य को कोई खास फायदा नहीं होता। चुंकि इसमें उनको विभाग की ही जिम्मेवारी मिलती है, विभाग से इतर कोई जिम्मेवारी नहीं मिलती।

चुंकि ये कोई संवैधानिक पद तो है नहीं। जैसे उपराष्ट्रपति का पद होता है, उसमें एक दायित्व होता है कि वो राज्यसभा के सभापति भी होते हैं। लेकिन उपमुख्यमंत्री के लिए अलग से किसी संवैधानिक जिम्मेदारी की कोई व्यवस्था नहीं है।

यूं समझिए कि ये सिर्फ एक पद है, जिस पर कोई नेता आसीन तो रहता है लेकिन उसके अधिकार बाकी मंत्रियों जैसे ही रहते हैं।’