BBAU में हुआ जैन साहित्य पर द्वि- दिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी का उद्घाटन

Lucknow

(www.arya-tv.com)बाबासाहेब भीमराव अंबेडकर विश्वविद्यालय में  उत्तर प्रदेश जैन विद्या शोध संस्थान लखनऊ, भारतीय हिन्दी परिषद् , प्रयागराज एवं हिन्दी विभाग बीबीएयू के संयुक्त तत्वाधान में ‘ भारतीय ज्ञान परंपरा में जैन साहित्य का अवदान ‘ विषय पर द्वि- दिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी का उद्घाटन हुआ। कार्यक्रम की अध्यक्षता उत्तर प्रदेश जैन विद्या शोध संस्थान के उपाध्यक्ष प्रो० अभय कुमार जैन ने की। मुख्य अतिथि के तौर पर डॉ० सम्पूर्णानन्द संस्कृत विश्वविद्यालय से सेवानिवृत्त आचार्य प्रो० फूल चंद्र प्रेमी उपस्थित रहे। इसके अतिरिक्त मंच पर हिन्दी साहित्य सम्मेलन प्रयागराज के सभापति प्रो० सूर्य प्रसाद दीक्षित, भारतीय हिन्दी परिषद् प्रयागराज के सभापति प्रो० पवन अग्रवाल, अखिल भारतीय साहित्य परिषद्, नई दिल्ली के संयुक्त राष्ट्र महामंत्री डॉ० पवन पुत्र बादल,  अमित कुमार अग्निहोत्री, बीबीएयू हिन्दी विभाग के प्रमुख प्रो० राम पाल गंगवार एवं इलाहाबाद विश्वविद्यालय से प्रो० योगेन्द्र प्रताप सिंह उपस्थित रहे। कार्यक्रम की शुरुआत अतिथियों द्वारा दीप प्रज्ज्वलन एवं बाबासाहेब की प्रतिमा को पुष्पांजलि अर्पित करने के साथ हुई। इसके पश्चात आयोजन समिति की ओर से अतिथियों को पुष्पगुच्छ एवं स्मृतिचिन्ह भेंट कर उनके प्रति आभार व्यक्त किया गया। सर्वप्रथम आयोजन सचिव डॉ० बलजीत श्रीवास्तव ने सभी को अतिथियों के परिचय एवं कार्यक्रम की रूपरेखा से अवगत कराया। मंच संचालन का कार्य प्रो० योगेन्द्र प्रताप सिंह द्वारा किया गया।

उत्तर प्रदेश जैन विद्या शोध संस्थान के उपाध्यक्ष प्रो० अभय कुमार जैन ने सभी को संबोधित करते हुए कहा, कि भारत जैसे राष्ट्र में जैन परंपरा , वैदिक परंपरा और बौद्ध परंपरा तीनों एक साथ चलती है। हमारा देश अपनी इसी विशेषता के कारण वैश्विक स्तर पर चमक रहा है। दूसरी ओर हमारे साहित्य में इतनी ताकत होनी चाहिए कि पंथ विरोधी होने के बाद भी सहिष्णुता को स्थापित किया जा सके।
डॉ० सम्पूर्णानन्द संस्कृत विश्वविद्यालय से सेवानिवृत्त प्रो० फूल चंद्र प्रेमी ने अपने विचार रखते हुए कहा, कि इस देश का नाम भारत, जैन तीर्थंकर ऋषभदेव के पुत्र भारत चक्रवर्ती के नाम पर पड़ा। साथ ही जब पूरे राष्ट्र में राजतंत्र हुआ करता था तब एकमात्र वैशाली में लोकतंत्र था। जैन समाज की इस देन को कभी भुलाया नहीं जा सकता।

हिन्दी साहित्य सम्मेलन प्रयागराज के सभापति प्रो० सूर्य प्रकाश दीक्षित ने चर्चा के दौरान कहा, कि जब हम आधुनिक युग में प्रवेश कर रहे थे, तब हमारे युग नायक महात्मा गॉंधी भी जैन दर्शन से प्रभावित थे। इसके अलावा एकांतवाद भी जैन दर्शन से ही जन्म लिया है, जिसके अंतर्गत हम अनेकान्तवाद से होते हुए एकांतवाद में प्रवेश करते हैं।

भारतीय हिन्दी परिषद् प्रयागराज के सभापति प्रो० पवन अग्रवाल ने बताया कि भाषा विद्रोह के कारण आज हिन्दी भाषा का साहित्य आधा – अधूरा रह गया है। आज आवश्यकता है कि विद्यार्थियों एवं शोधार्थियों का ध्यान आकर्षित करते हुए भाषा के पुनर्विकास की दिशा में कदम उठाये जाये।

अखिल भारतीय साहित्य परिषद्, नई दिल्ली के संयुक्त राष्ट्र महामंत्री डॉ० पवन पुत्र बादल ने कहा कि भारत की सारी ज्ञान परंपरा विमर्श के माध्यम से ही भविष्य की‌ पीढ़ियों तक पहुँचती है। साथ ही जब हम अपनी परंपराओं को सहेजते हैं, तो वह आगे आने वाली पीढ़ियों के लिए विरासत के समान होती है। प्रो० राम पाल गंगवार ने भी जैन साहित्य की विशेषताओं पर चर्चा की और श्री अमित कुमार अग्निहोत्री ने लोगों को भाषा के विकास हेतु जागरूक किया।

अंत में धन्यवाद ज्ञापन का कार्य डॉ० बलजीत श्रीवास्तव ने किया।उद्घाटन सत्र के पश्चात तकनीकी सत्र का आयोजन किया गया, जिसमें देश भर के विभिन्न विश्वविद्यालयों से आये प्रतिभागियों ने शोध पत्र प्रस्तुत किये। प्रथम तकनीकी सत्र के दौरान भारतीय ज्ञान परंपरा- जैन दर्शन एवं द्वितीय तकनीकी सत्र के दौरान भारतीय जैन परंपरा – सामाजिक सरोकार विषय पर विस्तृत चर्चा की गयी। संगोष्ठी के दौरान विभिन्न संकायों के संकायाध्यक्ष, विभाग प्रमुख, शिक्षकगण, वक्ता, देश के विभिन्न विश्वविद्यालयों से आये प्रतिभागी, शोधार्थी एवं विश्वविद्यालय के अन्य विद्यार्थी मौजूद रहे।