इस साल तो कमाल हुआ, क्या 2024 में भी दुनिया को चौंकाएगी भारत की अर्थव्यवस्था?

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(www.arya-tv.com) 2023 में दुनिया ने कई उतार-चढ़ाव देखे। व्यापार में तनाव, बढ़ती ब्याज दरें और राजनीतिक झगड़ों के बावजूद कोई बड़ा आर्थिक हादसा नहीं हुआ और दुनिया ने उम्मीद से बेहतर प्रदर्शन किया।

एसएंडपी ग्लोबल को उम्मीद है कि 2022 के 3.4% की तुलना में 2023 में दुनिया का कुल सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) 3.3% बढ़ेगा। दुनिया की सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था अमेरिका मंदी से बच गया और 2023 में 2.5% की अच्छी वृद्धि होने का अनुमान है।

दूसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था चीन की जीडीपी में सुधार हुआ क्योंकि कोविड प्रतिबंध हटा दिए गए और सरकार ने बाजार की मजबूती की दिशा में कई बड़े कदम उठाए।

भारत का शानदार प्रदर्शन

2023 की विकास गाथा भारत के नाम रही है, जिसकी जीडीपी अनुमान से अधिक दर से बढ़ी है। आरबीआई ने इस वित्तीय वर्ष (2023-24) में 7% के जीडीपी ग्रोथ का अनुमान लगाया है। भारत की अर्थव्यवस्था के विकास को वैश्विक विकास से कुछ तेजी मिली,

लेकिन सरकार समर्थित इन्वेस्टमेंट साइकल, रियल एस्टेट और मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर में पुनरुद्धार ने भी बढ़ोतरी में योगदान दिया। लेकिन 2023 के अंत में माहौल फिर से अनिश्चित हो गया है।

हमारी इकॉनमी का क्या?

हमारा अनुमान है कि 2024 में वैश्विक अर्थव्यवस्था धीमी पड़ेगी, लेकिन उसके बाद फिर गति पकड़ेगी। इस वित्तीय वर्ष के दूसरे भाग में भारत की वृद्धि पहली छमाही के 7.6% के बाद धीमी होकर 6.3% हो जाएगी।

फिर अगले वित्त वर्ष (2024-25) में इसके 6.4% पर होने की उम्मीद है। उच्च ब्याज दरें, फिस्कल कंसॉलिडेशन और धीमी वैश्विक वृद्धि हमारी आर्थिक विकास की रफ्तार धीमा करेंगे।

और अमेरिका की धीमी रफ्तार

वैश्विक अर्थव्यवस्था, विशेष रूप से अमेरिका, धीमी पड़ेगी क्योंकि ब्याज दरों में बढ़ोतरी का चरम प्रभाव 2024 की पहली छमाही में महसूस किया जाएगा। यह निर्यात मांग के दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण है क्योंकि अमेरिका अब भारत का सबसे बड़ा व्यापारिक साझेदार है और हमारे साथ उसका ट्रेड सरप्लस है।

उभरती एशियाई अर्थव्यवस्थाओं के अपेक्षाकृत लचीले रहने का अनुमान है, लेकिन इन अर्थव्यवस्थाओं में हमारे निर्यात का हिस्सा घट गया है। राहत की बात है कि अधिकांश बहुपक्षीय पूर्वानुमान धीमी वृद्धि के बावजूद 2024 में गुड्स ट्रेड में तेजी का संकेत दे रहे हैं।

ब्याज दरें अधिक, सरकारी खर्च कम

दुनियाभर में ब्याज दरें और महंगाई भले ही अपने शीर्ष पर पहुंच गई हों, फिर भी केंद्रीय बैंक ब्याज दरों में जल्दी कटौती करने में सावधानी बरतेंगे क्योंकि महंगाई अब भी उनके लक्ष्यों से ऊपर है।

भारत सरकार ने महामारी के बाद बुनियादी ढांचे के निर्माण में तेज वृद्धि के लिए सरकारी खर्च में काफी बढ़ोतरी की और राज्यों को उनके निवेश प्रयासों को बढ़ाने के लिए ब्याज मुक्त कर्ज भी दिया।

अगले वित्त वर्ष में सरकार वित्तीय सुदृढ़ीकरण के लिए सरकारी खर्च कम करेगी तब निवेश की जिम्मेदारी निजी क्षेत्र को अपने कंधों पर उठानी होगी।

अधिक सुधारों की जरूरत

इसके लिए अधिकारियों को निजी निवेश को बढ़ावा देने के लिए निवेश के माहौल को और बेहतर बनाने की कोशिशों में तेजी लाने की जरूरत है।

कंपनियों की मजबूत स्थिति, मैन्युफैक्चरिंग में बढ़ता कैपिसिटी यूटिलाजेशन और प्रॉडक्शन लिंक्ड इन्सेंटिव्स योजना (पीएलआई स्कीम) प्राइवेट इन्वेस्टमेंट में तेजी लाते हैं।

सेवाओं से वस्तुओं की ओर रुझान

2024 में घरेलू मांग भी सेवाओं से वस्तुओं की ओर ट्रांसफर होने की संभावना है। महामारी के दौरान विशेष रूप से सीधे संपर्क वाली सेवाओं की खपत कम हुई थी,

लेकिन अब कोविड के कम होने के साथ सेवाओं की लंबित मांग ने वृद्धि को गति दी, जो अब सामान्य हो रही है। हाल ही में जारी दूसरी तिमाही के जीडीपी आंकड़े भी इस ओर इशारा करते हैं।

मौसम का महंगाई पर असर

एल निनो का खतरा 2024 तक बढ़ने की आशंका के साथ मौसम खाद्य उत्पादन और महंगाई पर एक प्रमुख प्रभाव बना रहेगा। कृषि में दूसरी तिमाही में केवल 1.2% की वृद्धि हुई और पूरे वित्त वर्ष में भी वृद्धि कम रहने की आशंका है क्योंकि खरीफ फसल उत्पादन गिरने का अनुमान है और रबी फसल जलाशयों में कम पानी के दुष्प्रभाव का सामना कर सकता है।

इस साल नवंबर तक वैश्विक औसत तापमान पूर्व-औद्योगिक औसत से 1.5°C अधिक हो गया है, इसलिए 2023 इतिहास में सबसे गर्म वर्ष बनने वाला है। इसलिए जलवायु अनुकूलन और शमन के उपाय आने वाले समय का एक महत्वपूर्ण हिस्सा होंगे।

खाद्य कीमतें बढ़ने का खतरा

लगातार बढ़ती खाद्य कीमतें अर्थव्यवस्था के दूसरे हिस्सों में फैल सकती हैं और महंगाई को और बढ़ा सकती हैं। इसलिए फ्यूल और कोर इन्फ्लेशन के कम स्तर पर रहने के बावजूद आरबीआई महंगाई को नियंत्रण में रखने का दावा नहीं करेगा। ब्याज दरों में कटौती अगले साल अप्रैल-जून की तिमाही में ही हो सकती है।

जियोपॉलिटिक्स और कर्ज का बोझ

अब तक जियो-पॉलिटिकल घटनाओं ने भारतीय अर्थव्यवस्था को कमजोर नहीं किया है, लेकिन हाल ही में पश्चिम एशिया में तनाव बढ़ने से इसका टेस्ट होगा क्योंकि व्यापार लागत बढ़ने लगी है और कच्चे तेल पर दबाव पड़ सकता है।

2024 में अमेरिका और भारत सहित रिकॉर्ड 40 देशों में आम चुनाव होने वाले हैं। इससे अनिश्चितताओं में एक राजनीतिक पहलू जुड़ जाता है, खासकर इसलिए

क्योंकि इनमें से कई देश बड़ी आबादी वाले और आर्थिक रूप से प्रभावशाली हैं। वैश्विक कर्ज अब जीडीपी का लगभग 3.5 गुना है। उच्च ब्याज दरें और धीमी विकास, वित्तीय दुर्घटनाओं की संभावना को बढ़ाते हैं।

सावधानी हटी, दुर्घटना घटी

कुल मिलाकर 2024 के वैश्विक आर्थिक परिदृश्य पर आम राय कम मुद्रास्फीति और सकारात्मक जीडीपी ग्रोथ (सॉफ्ट लैंडिंग) की ओर इशारा करता है। लेकिन इतनी अनिश्चितताओं के बीच यह भी कोई पक्का भविष्य नहीं है।

देशों और व्यापारों को सावधानी बरतनी चाहिए और आने वाली चुनौतियों के लिए तैयार रहना चाहिए। भारत फिलहाल स्वस्थ कंपनी, बैंक बैलेंस शीट और विदेशी मुद्रा भंडार के कारण अच्छा प्रदर्शन कर रहा है।