लखनऊ में नही थम रहा रेप का सिलसिला, कैसे सुरक्षित रहें ​महिलाएं

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लखनऊ (www.arya-tv.com) पांच माह की दुधमुंही बच्ची के साथ दुष्कर्म कर उसकी नृशंस तरीके से हत्या करने वाले सगे रिश्तेदार प्रेमचन्द्र उर्फ पप्पू दीक्षित को पॉक्सो की विशेष अदालत ने फांसी की सजा सुनाई है। इस पर 70 हजार का जुर्माना भी ठोंका है। विशेष जज अरविन्द मिश्र ने कहा है कि अभियुक्त की गरदन में फांसी लगाकर उसे तब तक लटकाया जाए, जब तक कि उसकी मौत न हो जाए। उन्होंने इसके अपराध को रेयरेस्ट ऑफ रेयर करार दिया है। उन्होंने अभियुक्त को दी गई की फांसी की सजा की पुष्टि के लिए इस मामले की समस्त पत्रावली अविलंब हाईकोर्ट को भेजने का आदेश भी दिया है।

पॉक्सो की विशेष अदालत का दंडादेश : पॉक्सो के विशेष जज ने अरविन्द मिश्र ने अभियुक्त प्रेमचन्द्र उर्फ पप्पू दीक्षित को आईपीसी की धारा 302 व 376 कख के साथ ही पॉक्सो एक्ट की धारा 6 में भी मौत की सजा सुनाई है। साथ ही 50 हजार के जुर्माने से भी दंडित किया है। जबकि आईपीसी की धारा 364 में उम्र कैद व 20 हजार के जुर्माने से दंडित किया है। कहा है कि जुर्माने की समस्त धनराशि मृतक बच्ची के पिता को दिया जाएगा।

पिछले चार साल में फांसी की चौथी सजा : 24 जनवरी, 2020 को राजधानी की एक सत्र अदालत ने अपनी पत्नी की मां और उसके भाई के अबोध बेटे व मासुम बेटी की हत्या करने वाले को फांसी की सुजाई थी। जबकि 17 जनवरी, 2020 को पॉक्सो की इसी विशेष अदालत ने छह साल की मासूम बच्ची से दुष्कर्म के बाद उसकी निर्मम हत्या करने वाले को भी फांसी की सजा सुनाई थी। 29 अगस्त, 2017 को पत्नी व अपने तीन मासूम बच्चों के कातिल पिता को भी राजधानी की एक अदालत फांसी की सजा सुना चुकी है।

बच्ची ठीक से न तो दुनिया देख सकी और न अपना प्राकृतिक जीवन जी सकी : विद्वान जज ने अपने 99 पेज के फैसले में कहा है कि अभियुक्त ने बेहद ही घृणित व नृशंस अपराध किया है। क्योंकि घटना में बच्ची के दोनों प्राइवेट पार्ट का रास्ता फटकर एक हो गया था। फिर भी बच्ची जिंदा थी। यदि समय रहते इलाज मिल गया होता, तो शायद वह बच जाती।

लेकिन अभियुक्त उसे लेकर एक प्लाट में बैठा रहा। बच्ची उसके पास से मरणासन्न अवस्था में बरामद हुई थी। उसने महज अपनी हवस शांत करने के लिए यह कुकर्म किया है। उसका आचरण अत्यधिक क्रूर व निर्दयी प्रकृति का था। बच्ची इस स्थिति में नहीं थी कि उसका प्रतिरोध कर सकती। मासुम बच्ची की उम्र की गणना साल में नहीं की जा सकती। अभियुक्त की इस निर्दयता ने बच्ची को ठीक ढंग से दुनिया भी नहीं देखने दिया और न ही वो अपना प्राकृतिक जीवन ही जी सकी।

ऐसी मानसिकता वाले व्यक्ति को समाज से हटाना ही इसका एकमात्र उपाय : विद्धान जज ने अपने फैसले में कहा है कि सगा रिश्तेदार होने के बाद भी अभियुक्त ने जिस पैशाचिक तरीके से यह कुकर्म किया है, उसे देखते हुए कोेई भी व्यक्ति अपने परिवार के किसी भी सदस्य या किसी दूसरे व्यक्ति पर भी विश्वास कर अपने छोटे बच्चे को उसे नहीं देगा। यदि अविश्वास का ऐसा माहौल व्याप्त हो गया, तो समाज का पूरा ताना-बाना खत्म हो जाएगा।

पांच माह व 13 दिन की फूल सी बच्ची को देखकर समाज के किसी भी व्यक्ति के मन के सिर्फ वात्सल्य का ही भाव आ सकता हैं। यहां तक कि जानवर के बच्चे को भी देखकर मन में उसे सिर्फ खिलाने का भाव पैदा होता है। लेकिन पांच माह की बच्ची के लिए अभियुक्त के मन में हवस का जो भाव आया, वह समाज के लिए एक बड़ा खतरा है। सामाजिक व्यवस्था को बनाए रखने के लिए ऐसी मानसिकता वाले व्यक्ति को समाज से हटाना ही इसका एकमात्र उपाय है।

छोटी बच्चियों को मां दुर्गा का स्वरुप मानकर उनकी पूजा की जाती है : विद्धान जज ने अपने फैसले में टिप्पणी करते हुए कहा है कि भारतवर्ष में छोटे बच्चों को भगवान का रुप माना जाता है। जबकि छोटी बच्चियों को मां दुर्गा का स्वरुप मानते हुए उनकी पूजा की जाती है। नवरात्रि में लोग नौ दिन का उपवास छोटी-छोटी कन्याओं को भोजन कराकर पूर्ण करते हैं।

पांच माह की उम्र के बच्चे को सिर्फ भुख, दर्द व प्यार का एहसास होता है : विद्धान जज ने अपने आदेश में कहा है कि पांच माह की आयु के बच्चे को सिर्फ भुख, दर्द व प्यार का एहसास होता है। लेकिन इस बच्ची ने जिस पशुवत वासना को झेला, वह किसी भी समान्य व्यक्ति की परिकल्पना से परे है। ऐसी घटना के बारे में कोई सोच भी नहीं सकता। जबकि सामाजिक जीवन के गुणों को आत्मसात करना ही मनुष्य को पशुओं से अलग करता है। इसलिए निःसंदेह यह घटना विरल से विरलतम की श्रेणी में आएगा।

मौत की सजा नहीं दी गई, तो फूल जैसी बच्ची के साथ अन्याय होगा : यदि अभियुक्त को अधिकत्तम दंड से दंडित नहीं किया गया, तो यह उस फजैसी मासुम बच्ची व इस समाज के साथ भी अन्याय होगा। उसके घृणित अपराध से पीड़िता के परिवार व समाज को भी व्यापक स्तर क्षति हुई है। इस अपराध की वजह से समाज में उत्पन्न हुए भय व अविश्वास के माहौल के मद्देनजर अभियुक्त को मृत्युदंड देना ही न्यायोचित होगा।

ऐसी घटना की वजह से ही बच्चे अपना बचपन व्यतीत नहीं कर पाते : विद्वान जज ने यह भी कहा है कि जिस तरह का अपराध अभियुक्त ने किया है, उसकी सभ्य समाज में कल्पना भी नहीं की जा सकती है। यदि इस अपराध के लिए उसेे यह दंड नहीं दिया गया, तो इसका समाज पर व्यापक रुप से गलत प्रभाव पड़ेगा। ऐसी ही घटना की वजह से समाज में लोग अपने छोटे-छोटे बच्चों को स्वतंत्रतापूर्वक खेलने व व्यवहार करने की आजादी नहीं दे पा रहे हैं। जिसकी वजह से इस देश की नई पीढ़ी अर्थात छोटे-छोटे बच्चों का सर्वागींण विकास नहीं हो पा रहा है। क्योंकि वो खुलकर स्वतंत्र माहौल में अपना बचपन व्यतीत नहीं कर पा रहे हैं।

अभियोजन ने की थी फांसी की मांग : इससे पूर्व सजा के बिन्दू पर सुनवाई के दौरान अभियोजन की ओर से अभियुक्त प्रेमचन्द्र उर्फ प्रेम दीक्षित को फांसी की सजा देने की मांग की गई। विशेष लोक अभियोजक अभिषेक उपाध्याय व सुखेन्द्र प्रताप सिंह के साथ ही जिला शासकीय अधिवक्ता मनोज त्रिपाठी व सरकारी वकील नवीन त्रिपाठी का कहना था कि अभियुक्त द्वारा किया गया अपराध सामान्य अपराध नहीं है।

यह था पूरा मामला : 16 फरवरी, 2020 को हुई इस वारदात की एफआईआर मृत बच्ची के पिता ने थाना मडियांव में दर्ज कराई थी। जिसके मुताबिक गांव के एक व्यक्ति की बेटी की शादी में शामिल होने के लिए उनकी पत्नी, भाभी तथा बच्चे भी लखनऊ गए थे। सांय सात बजे उनका सगा रिश्तेदार उनकी पत्नी से बच्ची को खिलाने के बहाने लेकर चला गया। जब काफी देर बाद भी बच्ची नहीं आई, तो तलाश शुरु की गई। देर रात वो मैरिज लॉन से दूर खाली पड़े प्लाट की झाडियों में अचेत अवस्था में मिली। इसके बाद उसकी मौत हो गई। उनकी बच्ची की हत्या उनके सगे रिश्तेदार ने अपहरण व दुष्कर्म के बाद किया है।

घटना के महज 19 माह बाद आया अदालत का फैसला : पॉक्सो की विशेष अदालत ने इस मामले की त्वरित सुनवाई करते हुए वारदात के महज 19 माह बाद अपना फैसला सुनाया है। पुलिस ने भी घटना के बाद सिर्फ 10 दिन में विवेचना पूरी कर अपना आरोप पत्र दाखिल कर दिया था। इस मामले में अभियोजन की ओर से अन्य गवाह व परिस्थितिजन्य साक्ष्यों के अलावा केजीएमयू की एक महिला डॉक्टर व सिविल अस्पाल के एक डॉक्टर की गवाही दर्ज कराई गई। साथ ही विधि विज्ञान प्रयोगशाला की रिपोर्ट भी पेश की गई।