कोस्ट गार्ड में महिलाओं की पोस्टिंग पर सुप्रीम कोर्ट सख्त, सरकार को चेतावनी देते हुए कहा- आप नहीं करेंगे तो हम करेंगे

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(www.Arya Tv .Com)  सुप्रीम कोर्ट ने कोस्ट गार्ड में महिलाओं को परमानेंट कमीशन न देने पर सख्त रवैया अपनाया है. कोर्ट ने सोमवार (26 फरवरी) को कहा कि एक महिला कोस्ट गार्ड अधिकारी को इस आधार पर परमानेंट कमीशन देने से इनकार करना कि यह भारतीय सेना और भारतीय नौसेना से कार्यात्मक रूप से अलग है, आज के समय में स्वीकार नहीं किया जा सकता.

इसके साथ ही कोर्ट ने ये भी कहा कि सरकार स्थिति का समाधान निकालने में विफल है, ऐसे में ये दर्शाता है कि अदालत में इसमें कदम उठाएगी. भारत के मुख्य न्यायाधीश (सीजेआई) डीवाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली पीठ ने शॉर्ट सर्विस कमीशन कोस्ट गार्ड नेविगेटर प्रियंका त्यागी की याचिका पर सुनवाई करते हुए कहा, “अगर आप ऐसा नहीं करते हैं तो हम ऐसा करेंगे.” मामले पर अगली सुनवाई एक मार्च को की जाएगी.

सरकार ने कोर्ट में क्या कहा?

केंद्र सरकार की ओर से पेश अटॉर्नी जनरल (एजी) आर वेंकटरमणि ने कहा कि केंद्र इस मामले की समीक्षा करने के लिए तैयार है और फोर्स में संरचनात्मक परिवर्तन पर विचार करने के लिए पिछले साल नवंबर में एक बोर्ड का गठन किया है. एजी ने कहा, “कोस्ट गार्ड कार्यात्मक रूप से नौसेना और सेना से अलग है. संरचनात्मक परिवर्तन की जरूरत की वजह से एक बोर्ड का गठन किया गया है. बोर्ड इस मामले को देख रहा है.”

इस पर जस्टिस जेबी पारदीवाला और जस्टिस मनोज मिश्रा की पीठ ने जवाब देते हुए कहा, “ये सभी कार्यात्मक रूप से भिन्न तर्क आज के समय में काम नहीं करेंगे.” इसके बाद मामले की सुनवाई शुक्रवार (01 मार्च) को करने के लिए कहा.

क्या है मामला?

दरअसल, इंडियन कोस्ट गार्ड में 14 साल की सेवा दे चुकीं प्रियंका त्यागी ने परमानेंट कमीशन न मिलने पर सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया. 19 फरवरी को उसके मामले से निपटने के दौरान, अदालत ने केंद्र की प्रतिक्रिया मांगी थी. कोर्ट ने कहा, “वह समय चला गया जब आप कहते थे कि महिलाएं तटरक्षक बल में नहीं हो सकतीं. अगर महिलाएं सीमाओं की रक्षा कर सकती हैं, तो वे तटों की भी रक्षा कर सकती हैं.” साथ ही महिला-सशक्तीकरण की बात को अमल में नहीं लाने के लिए केंद्र को चेतावनी दी.

इसके अलावा कोर्ट ने फरवरी 2020 में, शीर्ष अदालत ने बबीता पुनिया फैसले में एक ऐतिहासिक फैसले का भी हवाला दिया, जिससे महिला शॉर्ट सर्विस कमीशन अधिकारियों को अपने पुरुष समकक्षों के बराबर सेना और वायु सेना की गैर-लड़ाकू धाराओं में स्थायी कमीशन के लिए पात्र होने का रास्ता खुला था.