(www.arya-tv.com) नाग पंचमी हिन्दुओं का एक प्रमुख त्योहार है। हिन्दू पंचांग के अनुसार सावन माह की [शुक्ल पक्ष]] के पंचमी को नाग पंचमी के रूप में मनाया जाता है। इस दिन नाग देवता या सर्प की पूजा की जाती है और उन्हें दूध से स्नान कराया जाता है। लेकिन कहीं-कहीं दूध पिलाने की परम्परा चल पड़ी है। नाग को दूध पिलाने से पाचन नहीं हो पाने या प्रत्यूर्जता से उनकी मृत्यु हो जाती है। शास्त्रों में नागों को दूध पिलाने को नहीं बल्कि दूध से स्नान कराने को कहा गया है। इस दिन नवनाग की पूजा की जाती है। आज के पावन पर्व पर वाराणसी (काशी) में नाग कुआँ नामक स्थान पर बहुत बड़ा मेला लगता है
[1], किंवदन्ति है कि इस स्थान पर तक्षक गरूड़ जी के भय से बालक रूप में काशी संस्कृत की शिक्षा लेने हेतु आये, परन्तु गरूड़ जी को इसकी जानकारी हो गयी,और उन्होंने तक्षक पर हमला कर दिया, परन्तु अपने गुरू जी के प्रभाव से गरूड़ जी ने तक्षक नाग को अभय दान कर दिया, उसी समय से यहाँ नाग पंचमी के दिन से यहाँ नाग पूजा की जाती है,यह मान्यता है, कि जो भी नाग पंचमी के दिन यहाँ पूजा अर्चना कर नाग कुआँ का दर्शन करता है, उसकी जन्मकुन्डली के सर्प दोष का निवारण हो जाता है। नागपंचमी के ही दिन अनेकों गांव व कस्बों में कुश्ती का आयोजन होता है जिसमें आसपास के पहलवान भाग लेते हैं। गाय, बैल आदि पशुओं को इस दिन नदी, तालाब में ले जाकर नहलाया जाता है।
[2] महाराष्ट्र के बत्तीस शिराळा गाव में सर्प प्रदर्शन होता हैं
भारत वर्ष में सर्प पूजन
भारत देश कृषिप्रधान देश हैं सांप खेतों का रक्षण करता है, इसलिए उसे क्षेत्रपाल कहते हैं। जीव-जंतु, चूहे आदि जो फसल को नुकसान करने वाले तत्व हैं, उनका नाश करके सांप हमारे खेतों को हराभरा रखता है। साँप हमें कई मूक संदेश भी देता है। साँप के गुण देखने की हमारे पास गुणग्राही और शुभग्राही दृष्टि होनी चाहिए। भगवान दत्तात्रय की ऐसी शुभ दृष्टि थी, इसलिए ही उन्हें प्रत्येक वस्तु से कुछ न कुछ सीख मिली।साँप सामान्यतया किसी को अकारण नहीं काटता।
उसे परेशान करने वाले को या छेड़ने वालों को ही वह डंसता है।चंपा के पौधे को लिपटकर वह रहता है या तो चंदन के वृक्ष पर वह निवास करता है। केवड़े के वन में भी वह फिरता रहता है। उसे सुगंध प्रिय लगती है, इसलिए भारतीय संस्कृति को वह प्रिय है। हम जानते हैं कि साँप बिना कारण किसी को नहीं काटता। वर्षों परिश्रम संचित शक्ति यानी जहर वह किसी को यों ही काटकर व्यर्थ खो देना नहीं चाहता। हम भी जीवन में कुछ तप करेंगे तो उससे हमें भी शक्ति पैदा होगी।
शेषनाग – शास्त्रों के अनुसार शेषनाग को ब्रह्मांड का पहला नाग माना गया है। कहते हैं पृथ्वी शेषनाग के सिर पर ही टिकी हुई है। महाभारत ग्रंथ के अनुसार शेषनाग त्रेतायुग में लक्ष्मण और फिर द्वापर में बलरामजी के रूप में अवतरित हुए थे। इन्हें भगवान विष्णु का परम सेवक माना जाता है। धार्मिक मान्यता है कि शेषनाग के हजारों सिर है जिसका कोई अंत नहीं, इसलिए इन्हें अनंत भी कहा जाता है। शेषनाग कश्यप ऋषि की पत्नी कद्रू के सबसे बड़े, पराक्रमी नागराज हैं।
वासुकी नाग – शिव के गले में जो नाग विराजमान हैं उनका नाम वासुकी है। वासुकी शेषनाग के भाई माने जाते हैं। नागलोक में शेषनाग के बाद वासुकी नाग का ही स्थान आता है। वासुकी को ही रस्सी बनाकर सुमेरू पर्वत के चारों ओर लपेटकर सागर का मंथन किया। वासुकी नाग शिव जी के परम सेवक हैं।
तक्षक नाग – तक्षक को नागवंश में सबसे खतरनाक सर्प माना जाता है। ऐसी मान्यता है कि तक्षक नाग ने ही तक्षकशिला की स्थापना की थी। तक्षक नाग के डंसने पर राजा परीक्षित की मृत्यु हुई थी, जिसका बदला लेने के लिए उनके पुत्र जनमेजय ने नाग जाति का नाश करने के लिए नाग यज्ञ करवाया था।
कर्कोटक नाग – जब नाग जाति का नाश करने के लिए जो यज्ञ किया था उसमें कर्कोटक शिव जी के वरदान से बच निकले थे। यज्ञ के दौरान कर्कोटक ने शिव जी की स्तुति की थी। मान्यता है कि वहां निकलने के बाद कर्कोटक नाग उज्जैन आ गए थे और उन्होंने शिव की घोर तपस्या की थी
पिंगला नाग – हिंदू व बौद्ध साहित्य में पिंगल नाग को कलिंग में छिपे खजाने का संरक्षक माना गया है।