यही त्यागे थे श्रवण कुमार ने अपने प्राण :अव्यवस्था का शिकार श्रवण क्षेत्र

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                           (आर्य टीवी के लिए हमारे सांस्कृतिक संवाददाता की विशेष रिपोर्ट)

(www.arya-tv.com)आज के युग में श्रवण कुमार की कथा किसी ने ना सुनी हो ऐसा हो नहीं सकता पुरानी कथा के अनुसार एक बार राजा दशरथ  शिकार खेलते खेलते वनमें बहुत दूर निकल गए श्याम का धुंधडका हो चला था हिरण का पीछा करते-करते राजा दशरथ बहुत थक चुके थे सामने एक नदी थी जिसका नाम मन हा था वहीं दूसरी ओर  से आ रहीरही विशु ही नदी का वही संगम हो रहा था हिरण भी आसपास ही सही था अचानक राजा दशरथ को कहीं से पानी हनी की आवाज सुनाई दी राजा दशरथ ने बिना देखे शब्दभेदी बाण चला दिया
पर यह क्या तीर लगते ही अरे मार डाला कहते हुए कोई जोर से चिल्लाया राजा दशरथ भागते  हुए उस और पहुंचे तो देखा कि एक युवक जिसे तीर लगा हुआ है घायल अवस्था में नदी के किनारे पड़ा हुआ है राजा दशरथ ने उससे पूछा कौन हो मैंने तो हिरण पर तीर चलाया था  तुम कहांसे आ गए!  दर्द से कराते हुए उसी वक्त ने कहा मेरा नाम श्रवण कुमार है मैं अपने अंधे मां बाप को चारों धाम की यात्रा करवाने निकला हूं डांगी में बैठे हुए हैं मेरे मां-बाप अंधे हैं मैं ही उनका एकमात्र सहारा हूं हाय अब मैं कैसे उनकी इच्छा पूरी कर पाऊंगा
राजा दशरथ ग्लानि से भर उठे और से उठाकर उस ओर लेकर चले जहां श्रवण कुमार के अंधे मां बाप थे वी प्यासे थे और अपने पुत्र की राह देख रहे थे जो पानी लेने के लिए गया था राजा दशरथ के पैरों की आहट सुनते ही उन्होंने पूछा कौन है तब राजा दशरथ ने सारी कथा सुनाई कथा सुनकर दोनों की आंखों से अश्रु प्रवाहित होने लगे उन्होंने राजा दशरथ को श्राप दिया कि जिस प्रकार हम अपने पुत्र के वियोग में जाग जाग रहे हैं वैसे ही तुम भी पुत्र वियोग में अपने प्राण त्याग ओगे
श्रवण कुमार की कथा घटित हुई थी फैजाबाद स्थित बिजोरा क्षेत्र के सरवन क्षेत्र में जहां आज भी दो नदियों का संगम है गोसाईगंज से भगवान पट्टी होते हुए जो सड़क श्रवण क्षेत्र तक जाती है उसकी हालत बहुत खराब है जगह जगह बड़े-बड़े गड्ढे है और वहां तक पहुंचना दुष्कर कार्य है ना तो रास्ते में कहीं पानी की व्यवस्था है ना ही अन्य कोई व्यवस्था स्थानीय लोगों ने सड़क को घेरकर और भी शंकरा कर दिया है इस के अलावा  प्रशासनिक स्तर पर और कोई इस क्षेत्र के विषय में नहीं जानता शासन प्रशासन जो कि राम के नाम से करोड़ों अरबों रुपए का अनुदान जारी करता है इस क्षेत्र तक नहीं पहुंचता यहां पर वह पीपल का वृक्ष है जहां श्रवण कुमार ने अपने अंधे मां बाप को डांगी में बैठा रखा है यहीं पर नदी के किनारे वह समाधि स्थल भी है जहां पर  श्रमण कुमार ने प्राण त्यागे थे  समाधि पर दीपकजलाने वाला भी कोई नहीं है आवारा कुत्ते उस पर विश्राम किया करते हैं दोनों नदियों का पानी पूरी तरह सूख चुका है देख रेख के अभाव में यह क्षेत्र पूरी तरह बर्बाद हो चुका हैकरोड़ों रुपए खर्च करने वाली सरकार को चाहिए कि इस ओर भी ध्यान देकर श्रवण क्षेत्र का उद्धार करें

                            

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