रामलला स्थापना और नरेंद्र मोदी के आंसू

Lucknow

आर्य tv.com ने रामलला की स्थापना के 11 दिन पूर्व राम के विभिन्न “आयामों का ज्ञान” श्रृंखला आरंभ की है। इस श्रृंखला में योग क्या होता है? भगवान राम का योग से क्या संबंध है? राम मंदिर के द्वारा, जगत का कल्याण और उत्थान कैसे? ब्रह्म के क्या अर्थ है क्या राम ब्रह्म है? नरेंद्र मोदी योगी या भोगी! एक साक्षात्कार! पूर्व परमाणु वैज्ञानिक इंजीनियर सनातन चिंतक व शोधक विपुल लखनवी, जो तकनीकी और वैज्ञानिक विश्लेषण के कार्य से संबंधित रहे हैं, के लिए थे। जिस पर तमाम पाठकों की प्रक्रियाएं हमको बहुत अधिक उत्साहित करती हैं। विपुल जी के अनुसार यह साक्षात्कार कोई भी पत्र-पत्रिका केवल संदर्भ देकर छाप कर प्रचार प्रसार कर सकती है। आर्य टीवी ने यह निर्णय लिया है की 22 जनवरी की इस दीपावली के पश्चात 1 नवंबर को होने वाली पौराणिक दीपावली तक भारतीय सनातन में राम और राम मंदिर के महत्व को जनमानस तक पहुंचाने हेतु निरंतर लेख साक्षात्कार कविताएं इत्यादि छापती रहेगी। संपादक

इसी श्रृंखला में पत्रकार डॉ. अजय शुक्ला ने रामलला की स्थापना में जब नरेंद्र मोदी की आंखों से आंसू गिरते हुए दिख रहे थे उस विषय पर विपुल जी का साक्षात्कार लिया है।

डॉ.अजय शुक्ला : आपने देखा होगा रामलला की स्थापना के समय नरेंद्र मोदी के नेत्र सजल थे और वे रो रहे  आप इस विषय में क्या कहना चाहते हैं?

विपुल जी : देखिए इनको हम प्रेमाश्रु कहते हैं। आपके बहुत से पाठक जो ईश्वर की भक्ति करते हैं और अपने इष्ट की बात करते समय उनके नेत्र भर जाते हैं वही केवल इसको समझ सकते हैं। घायल की गति घायल जाने और न जाने कोय। वास्तव में जगत में लिफ्त भौतिक सुखों के पीछे भागते धन के लिए दूसरों का शोषण करते हुए लोग इसको नहीं समझ सकते। जो केवल किताबी ज्ञानी होगा केवल दिखावे के लिए दुकानदारी के लिए संत या भक्त बना होगा वह भी इसको नहीं समझ सकता। एक बार के लिए अद्वैत मार्गी भी इसको नहीं समझ सकता।

डॉ.अजय शुक्ला : प्रेमाश्रु क्या है?
विपुल जी : देखिए जब हम सगुण साकार द्वैत भक्ति करते हैं यानी नवधा मार्ग के माध्यम से भक्ति को प्राप्त करने के मार्ग पर चलते हैं। तब जब हम मंत्र जाप करते-करते भजन करते-करते श्रवण करते-करते यानी नवधा मार्ग के किसी भी अंग पर चलते-चलते परम् प्रेमाभक्ति में पहुंचते हैं तब हमारी नेत्रों से बिना किसी कारण अपने इष्ट को याद करते समय अथवा पूजा करते समय या भजन करते समय या मंत्र जाप करते समय आंखों से बिना आवाज के आंसू गिरने लगते हैं। जगत के आंसुओं में पीड़ा और कष्ट होता है लेकिन इन प्रेमाश्रु में बहुत ही अधिक आनंददायक होता हैं। इनमें जो आनंद होता है वह संसार की किसी भी वस्तु में नहीं प्राप्त हो सकता। आपने देखा होगा बहुत से संत महात्मा प्रवचन करते-करते रोने लगते हैं यह वास्तव में प्रेमाश्रु होते हैं और यही प्रेमाश्रु नरेंद्र मोदी की आंखों से गिरने लगे थे। वास्तव में जिस मनुष्य के प्रेमाश्रु नहीं गिरे उसने प्रेमाश्रु के रस का पान नहीं किया वह प्रेम और विरह को नहीं जान सकता। श्री कृष्ण की भक्ति में लीन गोपिकाओं ने इन्हीं प्रेमाश्रु के पान में सदैव लीन रहने की बात कहकर उद्धव को निरूत्तर कर भगा दिया था। कुंती ने श्री कृष्ण से इन्हीं प्रेमाश्रु का वरदान मांगा था। स्वामी शरणानंद महाराज तो यह कहते हैं कि जब तुमको मोक्ष भी जहर लगने लगे तब समझना तुम्हें परमप्रेमा भक्ति प्राप्त हुई है। इन्हीं प्रेमाश्रु की परिपक्वता के पश्चात हमारा ईष्ट हमें दर्शन दे सकता है और सहस्त्रसार से राम रस का पान भी करा सकता है।

डॉ.अजय शुक्ला : यह प्रेमाश्रु प्राप्त कैसे होते हैं?

विपुल जी : देखिए जब सगुन साकार द्वैत भक्ति के मार्ग पर चलते हैं। तब मंत्र जप की बेहद आवश्यकता होती है। मंत्र जप एक सशक्त अस्त्र है इस मार्ग का। मंत्र जप में तीन अवस्थाएं होती हैं पहले वैखरी जब आपके मुंह से आवाज निकलती है बिना आवाज निकाले आप मंत्र जाप कर ही नहीं सकते यह आरंभिक अवस्था होती है। हालांकि अनुष्ठानिक पूजा में मंत्र वैखरी में ही किए जाते हैं। इसके बाद मध्यमा अवस्था आती है जिसमें होंठ हिलते हैं ध्वनि नहीं निकलती। इसके पश्चात पश्यंति अवस्था आती है। जिसमें आपके सोचते ही आपके मस्तिष्क या ह्रदय में मंत्र जाप चालू हो जाता है। इसके पश्चात परापश्यंति अवस्था आती है। जिसमें आपके सोचते ही शरीर के किसी भी अंग से मंत्र जप की ध्वनि कंपन महसूस होते है।

डॉ.अजय शुक्ला : यह राम रस क्या होता है?

विपुल जी : जब भक्ति के मार्ग पर हमारी भक्ति पूर्णरूपेण परिपक्व हो जाती है तब हमारा इष्ट हमें दर्शन दे देता है। तब उस इष्ट की इच्छा से हमें योग की अनुभूति भी हो सकती है। इसके अतिरिक्त हमें हमारे सहस्त्रसार से कुछ टपकता हुआ महसूस होता है जिसे मैं राम रस कहता हूं। इस रामरस बहुत में अधिक नशा होता है जो हमको हर समय आनंद में रखता है।

डॉ.अजय शुक्ला : तो क्या रामलला की स्थापना के समय मोदी के अतिरिक्त अन्य लोगों को भी यह प्रेमाश्रु अथवा रामरस प्राप्त हुआ होगा?

डॉ.अजय शुक्ला : जी बिल्कुल प्राप्त हुआ होगा। मैं उस समय बेंगलुरु में था और कुछ अन्य कार्य कर रहा था। नहाया तक नहीं था। लेकिन रामलला की स्थापना का पूजन टीवी पर देखने के लिए बैठ गया। जिस समय सभी लोग उठकर स्थापना के पश्चात अपने हाथों के पुष्प अर्पित करने लगे अचानक मेरे भी नेत्र सजल हो गए। शरीर के अंदर एक विशेष प्रकार का आनंद उत्पन्न हो गया और ऐसा लगा जैसे वास्तव में रामलला की मूर्ति में शक्ति आ गई। मुझको तो यह लगता है यह संपूर्ण भारत में महसूस किया गया होगा। अब यह निश्चित हो गया है कि सनातन की शक्तियां जागृत हो चुकी है और युग परिवर्तन तो हो कर रहेगा। भारत विश्व गुरु बनेगा। पूरे विश्व में सनातन का ही साम्राज्य होगा।

डॉ.अजय शुक्ला : ठीक है सर। आपका बहुत-बहुत आभार साक्षात्कार के लिए समय निकालने के लिए। धन्यवाद। अन्य विषय पर चर्चा करने के लिए आपके पास आता रहूंगा।

विपुल जी: धन्यवाद। आपका आपके मित्रों का पाठकों का जिन्होंने आपको सधुवाद दिया। वैसे कोई भी प्रश्न हो जिसका उत्तर कहीं न मिल रहा हो तो मेरे मोबाइल नंबर 99696 80093 पर नि:संकोच संदेश भेज कर उत्तर प्राप्त कर सकते हैं।