मानवीय अस्तित्व के लिए भी संरक्षण जरूरी

Environment

ज्ञाानेन्द्र रावत
जैव विविधता का सवाल आजकल चर्चा का विषय बना हुआ है। हो भी क्यों ना क्योंकि मौजूदा दौर में पौधों की तकरीबन साठ हजार और जंतुओं की दो हजार से अधिक प्रजातियों पर विलुप्ति का खतरा मंडरा रहा है। जबकि दुनिया के वैज्ञानिकों का मानना है कि मानवीय गतिविधियों, वैश्विक तापमान वृद्धि और जलवायु परिवर्तन के चलते यदि जैव-विविधता के क्षरण पर अंकुश नहीं लगा तो 2050 तक दुनिया की एक-चौथाई प्रजातियों का हमेशा-हमेशा के लिए अस्तित्व ही समाप्त हो जायेगा। यह मानव जीवन के लिए भीषण खतरा है जबकि जैव-विविधता का मानव जीवन में महत्वपूर्ण स्थान है।

चूंकि मानव संस्कृति और पर्यावरण का साथ-साथ विकास हुआ है, यदि इस दृष्टि से देखें तो सांस्कृतिक पहचान हेतु जैव विविधता का होना अवश्यंभावी है। यह पारितंत्र को स्थिरता प्रदान करती ही है, पारिस्थितिक संतुलन को बरकरार रखने में भी महत्वपूर्ण भूमिका निबाहती है। पारितंत्र विविधता की बात करें तो यह पृथ्वी पर पायी जाने वाली पारितंत्रों यानी ईको सिस्टम में उस विभिन्नता को कहते हैं, जिसमें प्रजातियां वास करती हैं। इनमें झील, मरुभूमि, नदी, तालाब आदि जल संग्रहण क्षेत्र आदि शामिल हैं। आज हम उसी खतरे को निहित स्वार्थ के चलते नकारते चले जा रहे हैं। कारण जैसे-जैसे जंगलों का बेतहाशा कटान हो रहा है, वैसे ही इस चर्चा को और बल मिला है कि क्या यह बची रह पायेगी। चिंता की असली वजह यही है।

दरअसल बीते सौ साल में जैव विविधता पर इसलिए संकट गहराया क्योंकि इस दौरान हमने अपने प्राकृतिक वनों को निजी स्वार्थ, भले इसे हम विकास कहें, की अंधी चाहत के चलते खो दिया। इसमें औद्यौगिक विकास ने नकारात्मक भूमिका निभाई। नतीजतन हर साल हमने तकरीबन 15,000 वर्ग किलोमीटर जंगल को विकास यज्ञ की समिधा बना डाला। जैव विविधता न केवल भोजन, लकड़ी, कपड़ा, ईंधन, चारे की जरूरत को पूरा करते हैं, खेती की पैदावार बढ़ाने के साथ ही रोग रोधी, कीट-पतंगे रोधी फसलों के उत्तरोत्तर विकास में सहयोगी होती है, वानस्पतिक औषधीय जरूरतों की पूर्ति, पोषक चक्र को गतिमान रखने और पर्यावरणीय प्रदूषण के निस्तारण में भी सहायक की भूमिका निबाहती है।

जैव विविधता में संपन्न वनीय पारितंत्र में कार्बन डाईऑक्साइड के प्रमुख अवशोषक तत्व होते हैं। यह मृदा निर्माण के साथ-साथ उसके संरक्षण, उसकी संरचना के सुधार-विकास, जल धारण क्षमता और पोषक तत्वों की मात्रा बढ़ाने, जलीय चक्र को गतिमान रखने में ही नहीं बल्कि जल संरक्षण में भी सहायक की भूमिका निबाहती है। कुल मिलाकर निर्विवाद रूप से हम यह कह सकते हैं कि जैव विविधता प्रकृति अध्ययन की दिशा में सर्वोत्तम प्रयोगशाला है, मानव सभ्यता के विकास की धुरी है, तो किसी भी मायने में कुछ गलत नहीं होगा।

जहां तक जैव विविधता के इतिहास का प्रश्न है, यह करीब 400 करोड़ से अधिक वर्षों के विकास का परिणाम है। समूची दुनिया में जब-जब प्रजातियों का सवाल आता है तो इनकी तादाद के बारे में अभी तक भी कोई स्पष्ट आंकड़ा मौजूद नहीं है। हां, तकरीबन 30 से 10 करोड़ के बीच इनकी तादाद का अनुमान जरूर है। अब तक दुनिया में 14 लाख 35 हजार 662 प्रजातियों की पहचान की गई है। अभी भी हजारों-लाखों प्रजातियां ऐसी हैं, जिनकी पहचान होना बाकी है। लेकिन अभी तक जिन प्रजातियों की पहचान की गई है, उनमें 7 लाख 51 हजार कीटों की, 2 लाख 48 हजार पौधों की, 2 लाख 81 हजार जंतुओं की, 68 हजार कवकों की, 26 हजार शैवालों की, 4 हजार 800 जीवाणुओं तथा एक हजार विषाणुओं की शामिल हैं। इनके अलावा 343 मछलियों की, 50 जलथल चारी, 170 सरीसृपों की, 1355 अकशेरु की, 1037 पक्षियों और 497 स्तनपायी भी हैं। दुखद यह है कि हर साल पारितंत्रों के क्षय के कारण तकरीबन 27 हजार प्रजातियां लुप्त भी हो रही हैं। दरअसल बढ़ता पर्यावरण प्रदूषण जैव विविधता के ह्वास का सबसे प्रमुख कारण है। इसे झुठलाया नहीं जा सकता। इसमें सबसे बड़ी चिंता की बात यह है कि इस दिशा में सबसे अहम कार्य जैविक संसाधनों के प्रबंधन का है। सच्चाई यह है कि इस ओर किसी का ध्यान ही नहीं है।

दुख की बात यह है कि दुनिया के 1,500 वैज्ञानिकों और 150 से अधिक विशेषज्ञों द्वारा 50 से अधिक देशों की जैव विविधता से जुड़ी रिपोर्ट में भी इस विनाश के लिए मानवीय गतिविधियों को ही सबसे बड़ा जिम्मेवार बताया गया है। इसलिए प्रकृति को नष्ट होने से बचाने के लिए जैव विविधता का संरक्षण समय की सबसे बड़ी मांग है।