परीक्षा और जीवन रक्षा: छात्रों का एक कीमती साल बर्बाद नहीं किया जा सकता

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देशभर में इंजीनियरिंग में प्रवेश के लिये होने वाली संयुक्त प्रवेश परीक्षा यानी जेईई की मुख्य परीक्षा तथा मेडिकल के लिये होने वाले नेशनल एलिजिबिलिटी व एंट्रेंस टेस्ट यानी नीट की परीक्षा सितंबर में आयोजित करने के मुद्दे पर विवाद थमा नहीं है। गैर-भाजपा शासित राज्यों के मुख्यमंत्री इस मुद्दे पर खुलकर सामने आ गये हैं। दरअसल, पहले ही दो बार स्थगित हो चुकी प्रवेश परीक्षा अब सितंबर में होनी है। जेईई की परीक्षा एक से छह सितंबर तो नीट की परीक्षा 12 सितंबर को होनी है। इससे पहले सुप्रीम कोर्ट भी 17 अगस्त को परीक्षाएं स्थगित करने की याचिका खारिज कर चुका है। शीर्ष अदालत ने कहा कि जीवन चलते रहने का नाम है और छात्रों का एक कीमती साल बर्बाद नहीं किया जा सकता।

वहीं दूसरी तरफ परीक्षा आयोजित करने वाली संस्था एनटीए ने जेईई परीक्षा का प्रवेश पत्र भी जारी कर दिया है जबकि नीट का प्रवेश पत्र अभी जारी किया जाना बाकी है। देश में बाधित यातायात व लॉकडाउन की समस्या को देखते हुए यह तय किया गया कि 99 फीसदी छात्रों को उनकी पहली पसंद के शहर में सेंटर मिले। वहीं एनटीए ने जेईई मेन की परीक्षा के लिये परीक्षा केंद्र 570 से बढ़ाकर 660 कर दिये हैं तो नीट की परीक्षा हेतु 2546 के स्थान पर 3843 परीक्षा केंद्र बनाये गये हैं। लेकिन समस्या यह है कि कोरोना संकट के चलते परीक्षार्थी मनोवैज्ञानिक दबाव से जूझ रहे हैं। देश में जहां तमाम राज्य बाढ़ से जूझ रहे हैं तो वहीं देश में रेेल व बस सेवाएं सामान्य नहीं हो पायी हैं।

कई छात्र ऐसे हैं जिन्हें दो सौ-तीन सौ किलोमीटर का सफर तय करके परीक्षा केंद्रों पर जाना है। चिंता इस बात की भी है कि पहले ही लॉकडाउन के कारण आर्थिक संकट झेल रहे लोग निजी वाहनों से परीक्षा केंद्रों तक पहुंच पायेंगे परीक्षा केंद्र पहुंचने पर उनके ठहरने की व्यवस्था कहां हो पायेगी क्या वे इस दौरान संक्रमण से सुरक्षित रह पायेंगे यह तथ्य किसी से छिपा नहीं है कि देश में कोरोना संकट अभी थमा नहीं है। संक्रमण के लिहाज से दुनिया में तीसरे नंबर पर पहुंचे भारत में संक्रमितों व मौतों का आंकड़ा छात्रों व अभिभावकों को व्यथित करता है। लेकिन वहीं दूसरी ओर यह भी हकीकत है कि यदि अब परीक्षा न हुई तो उनका एक साल खराब हो सकता है।

फिर अगले साल एक और बैच के साथ उन्हें परीक्षा में शामिल होना होगा। जहां एक ओर आपदा का संकट है तो दूसरी ओर भविष्य पर अनिश्चितताओं का बोझ। नहीं भूलना चाहिए कि अगस्त माह भी बीतने वाला है। वहीं स्नातक पाठ्यक्रमों में दूसरे साल की पढ़ाई ऑनलाइन माध्यम से शुरू हो चुकी है। ऐसे में सेशन में विलंब छात्रों के लिये नुकसानदायक हो सकता है क्योंकि पहले ही काफी समय निकल चुका है। ऐसे में यदि परीक्षाएं स्थगित होती हैं तो इस सत्र का पाठ्यक्रम पूरा कर पाना संभव नहीं हो पायेगा। निस्संदेह स्वास्थ्य रक्षा का प्रश्न भी महत्वपूर्ण है। ऐसे में जरूरी है कि संक्रमण से सुरक्षा के लिये फुलप्रूफ उपाय किये जायें। इन परीक्षाओं से लाखों बच्चों के सपने भी जुड़े हैं।

यह भी उचित न होगा कि एक वर्ष देश नये डाक्टरों-इंजीनियरों के भविष्य की बुनियाद रखने से वंचित हो जाये। ऐसे में शीर्ष अदालत की सलाह से सहमत हुआ जा सकता है कि परीक्षा भी हो और हरसंभव सावधानी भी बरती जाये। निस्संदेह हम एक मुश्किल वक्त से गुजर रहे हैं और इससे जुड़ी चुनौतियों का हम सबको मुकाबला करना है। कोशिश हो कि अकादमिक कैलेंडर जाया न जाये और छात्रों के भविष्य को भी आंच न आये। प्रवेश परीक्षा की प्रक्रिया में बाधा के दूरगामी नुकसानदायक परिणाम सामने आ सकते हैं। लेकिन समस्या यह भी है कि इसको लेकर राजनीति भी खुलकर सामने आ गई है। बुधवार को कांग्रेस की अंतरिम अध्यक्ष सोनिया गांधी ने कांग्रेस शासित राज्यों व पश्चिम बंगाल तथा महाराष्ट्र के मुख्यमंत्रियों के साथ इस मुद्दे पर विरोध जताया और अदालत का दरवाजा खटखटाने की बात की।