वाराणसी में तैयारियां अधूरी; लौकी-भात खाकर शुरू होगी पहले दिन की पूजा

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(www.arya-tv.com) आज से चार दिनी डाला छठ के पूजा की शुरुआत नहाय-खाय के साथ शुरू हो रही है। छठ का अर्थ है 6। यानी कि हर साल दीपावली के छह दिन बाद छठ मनाया जाता है। महिलाएं आज स्नान कर साफ कपड़े पहनेगीं। सात्विक भोजन बिना लहसुन-प्याज के आहार लेना होगा। लोकपर्व छठ की मान्यता के अनुसार, लौकी-भात और चने की दाल खाकर छठ मैया के पूजा का शुभारंभ करेंगी। व्रती महिलाओं के बाद ही घर के दूसरे सदस्य भोजन कर सकते हैं। परिवार में हर किसी को सात्विक भोजन ही खाना होता है। आज रात में ही 36 घंटे के लिए बिस्तर छोड़ना होगा। कल से महिलाएं लगातार 36 घंटे का व्रत धारण करेंगी।

छठ पूजा के अर्घ्य का मुहूर्त

डूबते सूर्य को अर्घ्य – सूर्यास्त का समय – 30 अक्टूबर को शाम 5:38 बजे से उगते सूर्य को अर्घ्य – सूर्योदय का समय – 31 अक्टूबर को सुबह 6:32 बजे से

वाराणसी में छठ के दिन करीब 10 लाख श्रद्धालु पूजा-पाठ करते हैं। 90 से ज्यादा गंगा घाटों, सरोवरों, कुंड और तालाबों के किनारे साफ-सफाई तेजी से चल रही है। मगर, अभी तैयारियां अधूरी ही हैं। तालाबों और घाटों पर जमी मिट्टी हटाई जा रही है। रंगाई-पुताईभी चल रही है। अस्सी से लेकर राजघाट तक गाद और कीचड़ हटाने का काम चल रहा है। वाराणसी के बनारस रेल इंजन कारखाना (BLW) स्थित सूर्य सरोवर पर करीब 10 हजार श्रद्धालुओं के जुटने का अनुमान है।

यहां पर सूर्य सरोवर छठ समिति और बरखा छठ पूजा समिति के महामंत्री अजय कुमार राय ने कहा कि रंगाई-पुताई और साफ-सफाई का काम आज खत्म हो जाएगा। अपील है कि व्रती करने वाले लोग ही सरोवर के अंदर आए। बाकी लोगों से अनुरोध है कि सरोवर के बाहर रहे। ताकि, किसी भी प्रकार की अव्यवस्था या भीड़भाड़ न होने पाए।

28 अक्टूबर- छठ पूजा का पहला दिन

नहाय- खाय : नहाकर खाओ
दिवाली के चौथे दिन कार्तिक माह के शुक्ल पक्ष की चतुर्थी को यानी कि आज छठ पूजा की शुरुआत नहाय-खाय परंपरा के साथ हो रही है। नहाय-खाय का अर्थ है ‘नहाकर खाओ’। इस दिन व्रती आखिरी दिन भोजन करती हैं। घर की सफाई कर छठव्रती स्नान कर शुद्ध शाकाहारी भोजन ग्रहण करती हैं। अगले दिन से व्रत की शुरुआत होती है। व्रती के भोजन करने के बाद ही घर के अन्य सदस्य खाना खाते हैं।

29 अक्टूबर – छठ पूजा का दूसरा दिन

खरना या शुद्धिकरण

कार्तिक शुक्ल की पंचमी को छठ पूजा के दूसरे दिन सुबह करीब 3-4 बजे उठकर शरबत पिया जाता है। इसके बाद शुरु होता है 36 घंटे का उपवास। इसे खरना कहते हैं। खरना का अर्थ है शुद्धिकरण। खरना के पूरे दिन व्रत रहा जाता है। रात में केवल गुड़ की बनी खीर और पूड़ी खाकर व्रत तोड़ते हैं। छठ पूजा में खीर को बहुत शुभ माना गया है। गुड़ की खीर से छठ परमेश्वरी की पूजा होती है और इसे प्रसाद स्वरुप परिवार में बांटा जाता है। खरना पर नमक और चीनी का सेवन नहीं करते। महिलाएं प्रसाद बनाने के लिए गेहूं पिसती हैं। मिट्टी के नए चूल्हे पर आम की लकड़ी जलाकर ही प्रसाद बनाया जाता है।

30 अक्टूबर – छठ पूजा का तीसरा दिन

डूबते सूर्य को अर्घ्य
कार्तिक शुक्ल पक्ष की षष्ठी तिथि को ही छठ की मुख्य पूजा शुरू होती है। व्रती पूरे दिन निर्जला यानी कि बिना पानी के उपवास रखती हैं। सुबह में ठेकुआ, मिठाई, फल-फूल तैयार करके बांस की टोकरी में सजाया जाता है। दोपहर में करीब 4 बजे तक महिलाएं अपने परिवार संग बांस की टोकरी और पूजा के सामान आदि लिए पैदल चलते हुए घाटों, तालाबों और कुंडों पर पहुंचती हैं। छठ माता का चौरा बनाकर दीप जलाया जाता है।कुछ देर पूजा-पाठ के बाद जब सूर्यास्त का समय आता है, तो महिलाएं प्रसाद वाला सूप लेकर पानी में उतर जाती हैं। परिवारीजन पीतल या तांबे के पात्र से जल लेकर सूरज देवता के सामने सूप पर अर्घ्य देते हैं। महिलाएं डूबते हुए सूर्यदेव को अर्घ्य देकर पांच बार परिक्रमा करती हैं।

31 अक्टूबर – छठ पूजा का चौथा दिन

उगते सूर्य को अर्घ्य

चौथे दिन कार्तिक शुक्ल सप्तमी को छठ पूजा संपन्न हो जाती है। तड़के सुबह व्रती अपने परिवार जनों के साथ घाट पर आती हैं। उगते हुए सूर्य को अर्घ्य देने के लिए ठंडे पानी में उतर जाती हैं। अर्घ्य देने के बाद परिवार के लोग घाट पर बैठकर पूजा-अर्चना करते हैं। फिर आसपास के लोगों में प्रसाद का वितरण कर महिलाएं व्रत का पारण करती हैं।