(www.arya-tv.com) आजकल हर कोई इंटरनेट का इस्तेमाल करता है, चाहे किसी को ऑनलाइन खरीदारी करनी हो, बैंकिंग सेवाओं का लाभ लेना हो या सोशल मीडिया पर जुड़ना हो. लेकिन जैसे-जैसे तकनीक बढ़ रही है, वैसे-वैसे साइबर अपराधी भी पहले से ज़्यादा होशियार होते जा रहे हैं. आप किसी दिन सुबह उठते हैं और देखते हैं कि आपके नाम से कोई दूसरा व्यक्ति ऑनलाइन फ्रॉड कर चुका है. ऐसा होता है आज की नई जनरेशन की टेक्नोलॉजी ‘जेनरेटिव एआई’ (GenAI) की वजह से, जो आवाज़, वीडियो, और तस्वीरें हूबहू असली जैसी बनाकर लोगों को धोखा देती है. यही वजह है कि अब बीमा कंपनियां छोटे-छोटे ‘सैशे कवर’ लेकर आई हैं, जो आपको इस तरह के साइबर खतरों से बचा सकते हैं.
बीमा कंपनियां अब छोटे-छोटे साइबर सुरक्षा कवर पेश कर रही हैं, जो साइबर धोखाधड़ी की बढ़ती घटनाओं से बचाने के लिए डिज़ाइन किए गए हैं. ये बीमा कवर, जो सिर्फ 3 रुपये प्रति दिन की लागत से उपलब्ध हैं, व्यक्तियों और व्यवसायों को आइडेंटिडी चोरी, साइबर जबरन वसूली, और ऑनलाइन बदमाशी से बचाते हैं.
कैसे होती है साइबर धोखाधड़ी?
एक रिपोर्ट के मुताबिक, साइबर अपराधी नकली वीडियो, आवाज़ क्लोन या टेक्स्ट मैसेज का इस्तेमाल करते हुए परिवार के सदस्य, अधिकारी या कंपनी के वरिष्ठ अधिकारियों का रूप धारण करते हैं. जेनरेटिव एआई बेहद असली दिखने वाले वीडियो और ऑडियो बना सकता है. एचडीएफसी एर्गो जनरल इंश्योरेंस (HDFC ERGO General Insurance) के निदेशक पार्थनील घोष ने बताया, “धोखेबाज़ एआई की मदद से असली जैसी तस्वीरें, वीडियो और आवाज़ बनाकर गैर-कानूनी गतिविधियों में शामिल हो रहे हैं.”
एक हालिया रिपोर्ट के अनुसार, भारत का साइबर इंश्योरेंस मार्केट, जो 2023 में 50-60 मिलियन डॉलर का था, अगले पांच वर्षों में 27-30% की दर से बढ़ने की उम्मीद है. जैसे-जैसे बाजार और संबंधित जोखिम बढ़ते जा रहे हैं, AI आधारित धोखाधड़ी के लिए बीमा कवरेज को सीमित सीमा के साथ पेश किया जा रहा है.
अब केवल पैसे तक सीमित नहीं साइबर अपराध
पहले साइबर जोखिम एसएमएस फिशिंग, धोखाधड़ी कॉल और ओटीपी चुराने तक सीमित थे. अब लोग इन तरीकों से सावधान हो गए हैं. , “जेन एआई (Gen AI) के साथ जोखिम अब वित्तीय नुकसान से आगे बढ़कर प्रतिष्ठा को नुकसान पहुंचाने और उत्पीड़न से उत्पन्न भावनात्मक तनाव की ओर बढ़ गए हैं.” इसके अलावा, डिजिटल पर्सनल डेटा प्रोटेक्शन एक्ट भी व्यक्तिगत डेटा के उल्लंघन से सुरक्षा प्रदान करता है.
रोकथाम इलाज से बेहतर
जैसे-जैसे एआई तकनीक आगे बढ़ रही है, डीपफेक वीडियो की सटीकता भी बढ़ती जा रही है, जिससे पारंपरिक ऑथेंटिकेशन के तरीके, जैसे कि आवाज़ और चेहरे की पहचान अब उतनी विश्वसनीय नहीं रह गई हैं. एचडीएफसी के घोष ने बताया कि तकनीक के लगातार बदलते रहने के कारण इन धोखाधड़ियों को पहचानना मुश्किल हो जाता है. उनकी कंपनी नियमित रूप से कर्मचारियों को साइबर खतरों के प्रति सचेत करती है और डीपफेक्स (Deepfake) को पहचानने के तरीकों पर ट्रेनिंग देती है.
आईसीआईसीआई के गौरव अरोड़ा के अनुसार, बीमा सुरक्षा के अलावा, संगठनों को वित्तीय लेनदेन और संवेदनशील डेटा की सुरक्षा के लिए मल्टी-फैक्टर ऑथेंटिकेशन लागू करना चाहिए और डीपफेक और कम्युनिकेशन में विसंगतियों का पता लगाने के लिए एआई आधारित उपकरणों का उपयोग करना चाहिए.