(www.arya-tv.com) पाकिस्तानी तंजीम दावत-ए-इस्लामी की बरेली में शुरुआत एक बड़े धर्मगुरु ने 1992 में की थी। हालांकि कुछ ही समय बाद इस संगठन का विरोध शुरू हो गया। सूफी इस्लामिक बोर्ड ने उस पर चंदे की रकम का देशविरोधी गतिविधियों में इस्तेमाल करने और धर्मांतरण कराने जैसे आरोप लगाए थे। हालांकि सरकारी मशीनरी के ध्यान न देने की वजह से इस सबके बावजूद इस संगठन ने अपनी जड़ें जमा लीं।
खुफिया छानबीन में दावत-ए-इस्लामी के बारे में कई और नए तथ्यों का खुलासा हुआ है। सूत्रों के मुताबिक 1992 में बरेली में शुरुआत के बाद खासतौर पर नौजवानों को इस तंजीम से जोड़ा गया। चूंकि इस तंजीम का नेटवर्क पूरी दुनिया में फैला हुआ था, इस वजह से नौजवान तेजी से उसकी ओर आकर्षित हुए।
बरेली के साथ मंडल के दूसरे जिलों में भी तंजीम ने अपना नेटवर्क कायम किया। पीलीभीत में तत्कालीन शहर काजी ने दावत-ए-इस्लामी पर देशविरोधी गतिविधियों का आरोप लगाते हुए उस पर प्रतिबंध लगाने की मांग की थी। सूफी इस्लामिक बोर्ड की ओर से भी खुलकर उस पर धर्मांतरण कराने जैसे गंभीर आरोप लगाए, फिर भी इस संगठन पर प्रतिबंध नहीं लग सका और उसने अपनी जड़ें और फैला लीं।