- विपुल लखनवी ब्यूरो प्रमुख पश्चिमी भारत
(www.arya-tv.com)पूरी दुनिया ने देखा हमास ने जब इसराइल पर इस सदी का कूरतम और राक्षसी हमला किया था और उसके क्लिप अभी तक वायरल हो रहे हैं। उसके जवाब में जब इसराइल ने कार्रवाई करी तो पूरी दुनिया के मुस्लिम नेता इसराइल के विरोध में बयान देने लगे। लेकिन गाजा पट्टी में रहने वाले मुसलमान को किसी भी मुस्लिम देश ने अपने घर में पनाह नहीं दी क्यों? उनको मरने के लिए छोड़ दिया।
यही काम अब पाकिस्तान भी कर रहा है वह अफगानिस्तान मूल के निवासी जो पिछले 20-25 सालों से पाकिस्तान में रह रहे हैं उनको वापस अफगानिस्तान खदेड़ कर रहा। है इस संदर्भ के बड़े-बड़े क्लिप और समाचार नेट पर देखे जा सकते हैं। हृदय विदारक फोटो भी देखी जा सकती है लेकिन पूरी दुनिया के मुस्लिम देश इस विषय पर अपने मुंह में दही जमा कर बैठे हुए हैं।
यह दोगलापन यह दोगला चरित्र पुरी दुनिया में अब सामने आ चुका है और लोगों को यह समझ में आ चुका है कि गजवाए मकसद क्या होता है?
यह कोई अकेला केस नहीं है पाकिस्तान 14 लाख से अधिक अफगान मुस्लिम शरणार्थियों के घर तोड़कर उन्हें अपने मुल्क से विस्थापित कर रहा है। रोचक बात यह है कि विश्व के किसी मुस्लिम मुल्क और इस्लाम व मुसलमानों के हितों के लिए काम करने वाले संस्थान ने अबतक इसपर कोई आपत्ति नहीं जताई, किसी को “इस्लामिक उम्माह” याद नहीं आया, न ही किसी को इन 14 लाख मुस्लिम अफगानों के मानवाधिकारों की चिंता हुई, न ही इनसे कोई सहानुभूति, न ही किसी इंटरनेशनल मीडिया हाउस अथवा ह्यूमन राइट्स वाचडॉग को ही इसपर कोई आपत्ति हुई, क्योंकि दोनों पक्ष इस्लाम को मानने वाले मोमिन हैं।
अब याद कीजिये भारत मे जब अवैध रूप से घुस आए रोहिंज्ञाओं और बंगलादेशियों को देश से बाहर करने की बात होती है तो किस लेवल का नँगा नाच होता है। सऊदी अरब अपने देश मे शरण लेने आ रहे सैंकड़ों मोमिनों को बॉर्डर पर गोलियों से निपटा दे तो कोई चर्चा नही होती, पाकिस्तान 14 लाख मुस्लिमों को विस्थापित करे तो कोई आपत्तिजनक बात नहीं है, हाँ यदि इसके स्थान पर कोई ऐसा देश होता जहां बहुसंख्यक आबादी गैर मुस्लिमों की होती और वह मुस्लिम शरणार्थियों को ऐसे विस्थापित करते तो अधिकांश इस्लामिक देश व विश्व भर के मोमिन सड़कों पर उतरकर हिंसा, आगज़नी, पत्थरबाजी, दंगे व् लूट मार कर रहे होते, वोक, लेफ्टिस्ट, एलजीबीटीक्यु तथा मानवाधिकार संगठन सर कटे मुर्गे सरीखे प्रलाप कर रहे होते, और ऐसा वातावरण बनाया जाता कि अब तक विश्व भर में हुआ घटित हुआ सबसे बड़ा अन्याय व अत्याचार यही है।
शांतचित्त होकर वैश्विक लेवल पर चल रहे इस खेल पर बारीकी से दृष्टि डालेंगे तो पाएंगे कि वास्तविक उद्देश्य काफिरों की भूमि व देशो में पहले पैर जमाने फिर उनकी कमाई को चूसकर पनपते रहने और फिर धीरे धीरे अपनी शक्ति व सँख्या बल बढ़ाते बढ़ाते काफिरों की भूमि, सम्पत्ति उनके संसाधन कब्जाना है, और इस खेल में वैश्विक संस्थाओं व् मीडिया का भी बराबर योगदान है जो एक प्रोपगैंडा के अंतर्गत आम जनमानस को भृमित कर उन्हें इस इन्वेजन की सहायक कठपुतली के रूप में प्रयोग करते हैं।
उन्हें जब यूरोप के द्वार खुलवाने थे तब उन्होंने “समुंदर के किनारे एक बच्चे की लाश की फ़ोटो को वायरल किया” और यूरोप की जनता ने अपनी ही सरकारों पर दबाब बना कर यूरोप के दरवाजे खुलवा दिए जबकि उसी समय साऊदी अरब ने अपनी सीमाएं सील कर दी थी।
जब उन्हें रोहिंया भारत देश में घुसडने थे तब “गर्भवती औरतों के फोटो वायरल किये” और उसकी बदौलत रोहिंग्या जिन्हें अपने ही देश से भगा दिया गया आपके देश में कश्मीर से कन्याकुमारी तक फैल गए।
वो कश्मीरी पंडितों और उनके बच्चों के फोटो वायरल नहीं करेंगे। ध्यान रखिये वो कभी भी तालिबान के खिलाफ नहीं होंगे। वो कभी ISIS के खिलाफ नहीं होंगे
वो धरने प्रदर्शन तब करेंगे जब अमेरिका लादेन को मारेगा।
वो 26/11 के बाद कोई राष्ट्रीय मुहिम नहीं चलाएंगे। इस बार भी उन्होंने यही किया है।
आपके जब 45 मारे तो वो खामोश थे और आपकी प्रतिक्रिया का इंतजार कर रहे थे और आपकी ताकत जांच रहे थे जैसे ही ताकत दिखाई वो अपने प्रोपेगेंडा पर आ गए!
समझिए उनके कुचक्र को वो सिर्फ युद्ध के मैदान में नहीं लड़ते उनके सिपाही हर जगह हैं अपने अपने तरीके से युद्ध लड़ने के लिए! जब वो जीत रहे होंगे तो कोई मानवाधिकार पोस्ट वायरल नहीं होगी पर वो जब हार रहे होंगे तो हमेशा रोती गिड़गिड़ाती फ़ोटो और वीडियो आपके सामने लाये जाएंगे!
आपकी भावनाएं ही उनके हथियार हैं!
सतर्क रहें सावधान रहें और एक योद्धा की तरह अपने मन को अपने वश में रखिये क्योंकि आपका भावनाओं में बहना राष्ट्र के भविष्य के लिए भयावह सिद्ध होगा।
जब भारत ने केवल यह कहा कि हम जानना चाहते हैं कौन भारतीय है और कौन यहां घुसपैठियों है तो उसके लिए भारत के पूरे विपक्ष ने और मुस्लिम संगठनों ने दिल्ली को बंधक तक बना लिया था। अब यह आम जनता को सोचना है की क्या हम अपने मताधिकार का प्रयोग करते समय केवल कुछ चुनावी वादों की पूर्ति के शिकार हो जाए अथवा ₹500 की एक नोट और दारू की बोतल के लिए अपने वोट बेच दे और अपने भविष्य को अंधकारमय कर ले। यह निर्णय तो मताधिकार करने वाले व्यक्ति का है कि वह आज के भोजन के लिए आने वाले भविष्य को किस प्रकार नष्ट करेगा यह तो आने वाला समय ही बता पाएगा। लेकिन हमको अपने मत का प्रयोग बहुत सोच समझकर करना होगा और यह देखना होगा कि हमारा मत उसी को जाए जो देश की सुरक्षा को देश के विकास को प्राथमिकता के आधार पर आगे ले जा सके।