नाटो ने दिखाई रूस को अपनी ताकत, अब तक का किया सबसे बड़ा युद्धाभ्‍यास, जानें क्या है अमेरिका की रणनीति

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(www.arya-tv.com) नाटो ने पश्चिमी सैन्य गठबंधन के इतिहास में अब तक की सबसे बड़ी एयरफोर्स ड्रिल शुरू कर दी है। जर्मनी की वायुसेना की तरफ से इस बारे में जानकारी दी गई है। सोमवार से इस ड्रिल की शुरुआत हुई है। इस अभ्‍यास को संगठन के सदस्यों और साझेदारों के बीच एकता के प्रदर्शन के तौर पर अंजाम दिया जा रहा है। फरवरी 2022 में यूक्रेन पर आक्रमण के बाद से ही रूस के साथ नाटो का तनाव बढ़ा गया है। ऐसे में इस अभ्‍यास को उसके लिए एक चुनौती भी करार दिया जा रहा है। इस अभ्‍यास को एयर डिफेंडर 23 नाम दिया गया है।

जर्मनी वायु सेना की तरफ से बताया गया है कि जापान जो नाटो का साझीदार है, उसके अलावा सदस्‍यता के लिए आवेदन करने वाला स्वीडन भी इस अभ्‍यास का हिस्‍सा है। 25 सदस्‍य और साझेदार देशों के करीब 250 मिलिट्री एयरक्राफ्ट इसका हिस्‍सा हैं।

23 जून तक चलने वाले इस अभ्‍यास में 10,000 से सैनिक शामिल हैं। इस अभ्‍यास में सैनिक नाटो देश के सीमा के अंदर होने वाले हमलों का जवाब ड्रोन और क्रूज मिसाइलों से देने की ताकत का प्रदर्शन करेंगे। साथ ही इसका मकसद संकट की स्थिति में वायु सेना की क्षमताओं को बढ़ाना और तैयारियों को मजबूत करना है।

जर्मन सेना के लेफ्टिनेंट जनरल इंगो गेरहार्ट्ज ने कहा, इस एक्‍सरसाइज के जरिए हम एक महत्वपूर्ण संदेश भेज रहे हैं और हम बताना चाहते हैं कि चाहे कुछ भी हो जाए हम अपनी सीमा की रक्षा कर सकते हैं। ‘एयर डिफेंडर 23’ एक्‍सरसाइज की शुरुआत साल 2018 में होनी थी। उस समय माना गया था कि यह रूस को उसकी कार्रवाई का जवाब होगा जिसके तहत उसने क्रीमिया को अपनी सीमा में मिला लिया है।

जर्मन वायु सेना की तरफ से बताया गया है कि इसमें शामिल 250 एयरक्राफ्ट में से 100 यूरोप में तैनात हैं जबकि 42 अमेरिका के अलग-अलग हिस्‍सों में तैनात हैं। गेरहार्ट्ज ने जोर देकर कहा कि यह ड्रिल किसी को निशाना बनाकर नहीं की जा रही है।

उन्होंने कहा कि इस ड्रिल में किसी भी फाइटर जेट को नाटो के सदस्य देशों पोलैंड और लिथुआनिया की सीमा से सटे रूसी क्षेत्र की तरफ नहीं भेजा जाएगा। उन्होंने बताया नाटो एक रक्षात्मक गठबंधन हैं और इसी बात को ध्‍यान में रखकर इस अभ्‍यास को अंजाम दिया जा रहा है।

सोवियत संघ के खतरों का सामना करने के लिए करीब 75 साल पहले नाटो की स्‍थापना हुई थी। फिनलैंड और स्वीडन ने यूक्रेन जंग के बाद नाटो की सदस्यता मांगी थी। फिनलैंड तो इस सैन्य गठबंधन का 31वां सदस्य बन गया है, जबकि स्वीडन की सदस्यता तुर्की और हंगरी के विरोध की वजह से अटकी है।