राष्ट्रीय युवा दिवस: मानवता की भावना को प्रोत्साहित करते हैं स्वामी विवेकानंद के विचार

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(www.arya-tv.com) आज देश राष्ट्रीय युवा दिवस मना रहा है। इस अवसर पर सिर्फ स्वामी विवेकानंद की प्रतिमा पर माल्यार्पण कर देने से बात नहीं बनेगी, बल्कि हमें उनके दर्शन को भी समझना और आत्मसात करना होगा। स्वामी विवेकानंद ने मानव जीवन की विभिन्न समस्याओं पर गहन चिंतन किया था। उनके चिंतन के क्षेत्र धर्म, दर्शन, सामाजिक एवं राजनीतिक व्यवस्था, शिक्षा प्रणाली, महिलाओं की स्थिति और राष्ट्र का सम्मान आदि थे। विभिन्न समस्याओं पर उनके विचारों ने राष्ट्र को एक नई दिशा दी है। उनके अनुसार शिक्षा आंतरिक आत्म की खोज का जरिया है।

शिक्षा मानव जीवन की इस सच्चाई को महसूस करने का माध्यम है कि हम सभी एक ही भगवान के अंश हैं। वह शिक्षा के माध्यम से व्यक्तित्व के व्यापक विकास में विश्वास करते थे। उनका मानना था कि पूर्णता पहले से ही मनुष्य में निहित है। शिक्षा उसी की अभिव्यक्ति है। दूसरे शब्दों में कहें तो सब ज्ञान मनुष्य में पहले से निहित हैं। कोई ज्ञान बाहर से उसमें नहीं आता। शिक्षा मनुष्य तो इससे परिचित कराती है और इसको उभरती है। वह कहते थे कि शिक्षा का प्रमुख उद्देश्य जीवन-निर्माण, मानव-निर्माण, चरित्र-निर्माण होना चाहिए।

स्वामी विवेकानंद ब्रिटिश शासन के तहत प्रचलित शिक्षा प्रणाली से पूरी तरह से असंतुष्ट थे। वह शिक्षण की भारतीय पद्धति की वकालत करते थे। उन्होंने घोषणा की थी कि हमारे देश की संपूर्ण शिक्षा हमारे अपने हाथों में होनी चाहिए। यह राष्ट्रीय तर्ज पर और राष्ट्रीय सरोकारों के माध्यम से जहां तक संभव हो, होनी चाहिए।

वह शिक्षा के ढांचे को इस तरह से डिजाइन किए जाने के पक्ष में थे कि व्यक्ति को यह अहसास हो कि उसमें अनंत ज्ञान और शक्ति का निवास है तथा शिक्षा उस तक पहुंचने का साधन है। वह छात्र और शिक्षक के बीच व्यक्तिगत संपर्क पर जोर देते थे और कहते थे कि शिक्षक को चरित्र और नैतिकता का सर्वोच्च जीवंत उदाहरण होना चाहिए। उनका मत था कि एकाग्रता के द्वारा ही ज्ञान प्राप्त किया जा सकता है। जो एकाग्रता के साथ सीखता है, निश्चित रूप से वह जिंदगी के विभिन्न क्षेत्रों में बेहतर प्रदर्शन करता है।