मेंथा की खेती विंध्य क्षेत्र के प्रवासी श्रमिकों संग किसानों के लिए बनेगी संजीवनी, जानिए कैसे

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जापुर (www.arya-tv.com) मेंथा की खेती विंध्य क्षेत्र के प्रवासी श्रमिकों संग किसानों के लिए संजीवनी बनेगी। पायलट प्रोजेक्ट के तहत मीरजापुर क्षेत्र में मेंथा (पिपरमेंट) की खेती की जाएगी। इसके लिए विकास खंड सिटी, छानबे, कोन, मझवां व सीखड़ ब्लाक का चयन किया गया है। एक किग्रा मेंथा आयल के उत्पादन पर अनुमानित 500 रुपया लागत आएगी। किसानों की आय बढ़ाने के लिए मंडलायुक्त योगेश्वरराम मिश्रा ने विंध्य क्षेत्र में अनूठी पहल आरंभ किया है।

नकदी फसल में शुमार मेंथा की सबसे ज्यादा खेती वर्तमान समय में प्रदेश के बाराबंकी, रायबरेली, सीतापुर, हरदोई व लखनऊ समेत कई जिलों में होती है। मेंथा अर्थात पिपरमेंट एक बीघे में पेराई के बाद 20 से 25 लीटर तेल निकालता है।

इसका दिल्ली, बिहार के रोहतास जिले के दिनारा और बाराबंकी के बाजारों में रेट 1000 से लेकर 1600 रूपये प्रति लीटर तक होता है। मेंथा का प्रयोग दर्दनाशक तेल, दवाइयां, डिटरजेंट आदि बनाने में किया जाता है। जिला उद्यान अधिकारी मेवाराम ने बताया कि मेंथा की खेती के लिए पर्याप्त जीवांश अच्छी जल निकास वाली पीएच मान 6-7.5 वाली बलुई दोमट व मटियारी दोमट भूमि उपयुक्त रहती है। खेत की अच्छी तरह से जुताई करके भूमि को समतल बना लेते हैं।

मेंथा की रोपाई के तुरंत बाद में खेत में हल्का पानी लगाते हैं, जिसके कारण मेंथा की पौध ठीक लग जाए। मेंथा की खेती के लिए जनवरी में इसकी नर्सरी को तैयार किया जाता है। नर्सरी के डेढ़ महीने बाद खेतों में सिंचाई कर 45 सेंटीमीटर की दूरी पर पौधों की रोपाई की जाती है।

रोपाई के 90 से 100 दिन के अंदर मेंथा की पहली फसल पक कर तैयार हो जाती है। दूसरी फसल 80 से 90 दिन के अंदर पक जाती है। इस फसल को एक बार लगाने के बाद दो बार भी काटा जा सकता है, लेकिन मौसम अनुकूल नहीं होने के चलते ज्यादातर किसान मेंथा की फसल की एक बार की कटाई करने के बाद धान की रोपाई शुरू कर देते हैं।

मेंथा का उपयोग

औषधीय गुणों से युक्त होने के चलते मेंथा (पिपरमेंट) का प्रयोग दवा, सौंदर्य प्रसाधन के साथ ही पान मसाला खुशबु, पेय पदार्थ आदि में किया जाता है। इसके चलते इसकी काफी मांग बनी रहती है। मेंथा के तेल से कई तरह के रोगों के निवारण के लिए दवाई भी बनाई जाती है। पिपरमिंट का दर्द निवारक गुण होने के चलते दांत, पेट, सिर दर्द में काफी लाभकारी है।

ऐसे होती है मेंथा की खेती

मेंथा की बुआई के दौरान जापानी मेंथा के लिए रोपाई की लाइन 30-40 सेमी, देसी मेंथा की रोपाई 45-60 सेमी और बीच की दूरी लगभग 15 सेमी किसानों को रखना चाहिए। जड़ों की रोपाई 3-5 सेमी गहराई में करें। रोपाई के बाद किसान हल्की सी सिंचाई भी कर दें। बुआई व रोपाई के लिए 4-5 कुंतल जड़ों के 8 से 10 सेमी टुकड़ें सही रहेंगे।

प्रति बीघा 15 हजार आएगा खर्च

जिला उद्यान अधिकारी मेवाराम ने बताया कि मेंथा की खेती करने पर प्रति बीघा 15 हजार का खर्च आता है। फसल तैयार होने और उत्पादन से किसानों को अनुमानित एक लाख का लाभ होता है।

पराली जलाने से रोकने में होगा सहायक

उप निदेशक कृषि डा. अशोक उपाध्याय ने बताया कि मेंथा की खेती के दौरान किसान प्राय: उर्वरक का प्रयोग करते हैं। इसके स्थान पर सिंगल सुपर फास्फेट का भी प्रयोग कर सकते हैं। इससे बेहतर होगा कि निराई-गुड़ाई का खर्च बचाने के लिए किसान पुआल से मल्चिंग (पौधों के बीच के खाली स्थान को पराली से ढकना) कराया जाता है। पराली का उपयोग बढऩे से किसानों को जलाना नहीं पड़ेगा।

बोले मंडलायुक्‍त

मेंथा जायद की फसल होती है। इसके कारण बुआई के लिए किसानों के पास पर्याप्त जगह और समय होता है। मेंथा की खेती करके किसानों को आर्थिक लाभ होता है। सरकार की मंशानुरुप किसानों की आय बढ़ाने में सहायक होगा। प्रदेश के बाराबंकी, रायबरेली, सीतापुर, हरदोई व लखनऊ में बहुतायत में मेंथा की खेती किसान कर रहे हैं। – योगेश्वर राम मिश्रा, मंडलायुक्त, विंंध्‍याचल मंडल।