फेल कर दिया ममता-केजरीवाल का प्लान! आखिर विपक्ष का पीएम कैंडिडेट क्यों नहीं देना चाहते हैं शरद पवार?

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(www.arya-tv.com) राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (एनसीपी) के प्रमुख शरद पवार का कहना है कि विपक्ष को 2024 के लोकसभा चुनावों के लिए प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार की घोषणा करने की जरूरत नहीं है। उन्होंने बहुत जोर देकर यह बात कही है।

बड़ी बात है कि पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी और दिल्ली के सीएम अरविंद केजरीवाल ने कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे को गठबंधन के प्रधानमंत्री पद का उम्मीदवार घोषित करने का प्रस्ताव रख चुके हैं।

दिल्ली में 19 दिसंबर को विपक्षी गठबंधन की बैठक के दौरान दोनों मुख्यमंत्रियों ने यह प्रस्ताव रखा। लेकिन गठबंधन के किसी अन्य सहयोगी तो छोड़ दीजिए, खुद कांग्रेस ने ही खरगे के नाम का समर्थन नहीं किया।

चुनावों में चहेरों का खेल

दरअसल, चुनावों में चेहरे का बड़ा प्रभाव होता है। ताकतवर चेहरे की तरफ मतदाता आसानी से आकर्षित हो जाता है। यही कारण है कि बीजेपी कई बार विधानसभा चुनावों में भी अपने मुख्यमंत्रियों की जगह प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के चेहरे को आगे कर देती है।

अभी हाल ही में संपन्न हुए पांच प्रदेशों के विधानसभा चुनावों की बात करें तो बीजेपी ने यह फॉर्मुला अपनाया। मध्य प्रदेश में शिवराज सिंह चौहान की सरकार का लंबा शासन रहा था। चौहान ही चुनावों के वक्त भी एमपी के सीएम थे, बावजूद इसके बीजेपी ने उन्हें मुख्यमंत्री उम्मीदवार घोषित नहीं किया।

राजस्थान और छत्तीसगढ़ में बीजेपी विपक्ष में थी। राजस्थान में वसुंधरा राजे तो छत्तीसगढ़ में रमन सिंह बीजेपी के मुख्यमंत्री रह चुके थे, वो भी लंबे समय तक। लेकिन इन दोनों प्रदेशों में भी बीजेपी ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के चेहरे पर ही चुनाव लड़ा।

तेलंगाना और मिजोरम में भी बीजेपी की तरफ से कोई सीएम कैंडिडेट नहीं घोषित किया गया। हालांकि, इन दोनों प्रदेशों में बीजेपी का बहुत बड़ा स्टेक नहीं था। लेकिन एमपी, राजस्थान और छत्तीसगढ़ में बीजेपी की चाल कामयाब रही।

पार्टी ने न केवल एमपी की सत्ता अपने पास बरकरार रखी बल्कि राजस्थान और काफी हैरतअंगेज तरीके से छत्तीसगढ़ की सत्ता भी कांग्रेस से छीन ली।

बीजेपी ने राज्यों में कोई चेहरा नहीं किया आगे

अब राजनीतिक विश्लेषणकर्ताओं और खुद कांग्रेस ने भी माना कि कम से कम मध्य प्रदेश में कमलनाथ का चेहरा बतौर सीएम आगे करना एक चूक थी। राजस्थान के पिछले विधानसभा चुनाव में तो नारे लगे थे- मोदी तुझसे बैर नहीं, वसुंधरा तेरी खैर नहीं।

तत्कालीन मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे के खिलाफ आम जनता में कुछ इस हद तक नाराजगी थी। बावजूद इसके बीजेपी ने उन्हें सीएम कैंडिडेट बनाया और पार्टी हार गई। इस बार छत्तीसगढ़ में भूपेश बघेल को कांग्रेस का मजबूत चेहरा माना जा रहा था, लेकिन जमीनी हालात कुछ और थे।

फिर नतीजों ने सच्चाई सबके सामने ला दी। चूंकि बीजेपी ने इस बार रणनीति ही बना ली थी कि किसी प्रदेश में मुख्यमंत्री का चेहरा घोषित नहीं करना है तो उसने राजस्थान में भी चुनावों से पहले वसुंधरा की जगह कोई नया नाम सामने नहीं लाया। इस तरह पीएम मोदी ने बीजेपी की चुनावी नैया तीनों प्रदेशों में पार कर दी।

पवार की यह बात तो सही है

शरद पवार विपक्षी दलों के गठबंधन में वरिष्ठतम नेताओं की कतार से हैं। उन्होंने पुणे में बोलते हुए इतिहास का हवाला दिया। पवार ने कहा, ‘मोर्चा (इंडिया) बिना प्रधानमंत्री के चुनाव में जा सकता है।

1977 में ऐसा ही हुआ था जब मोरारजी देसाई चुनाव से पहले कहीं नहीं थे और विपक्ष बिना प्रधानमंत्री चेहरा चुनाव लड़ा था। आम चुनाव के बाद एक नया दल बनाया गया और वह प्रधानमंत्री बने।

‘ उन्होंने कहा कि लोग विपक्ष के पास प्रधानमंत्री उम्मीदवार हो या न हो, अपना चुनाव करेंगे, खासकर अगर उन्होंने बदलाव का फैसला कर लिया है। जेडीयू सांसद केसी त्यागी ने इस विषय पर एक लेख भी लिखा है।

बहरहाल, पवार की इस बात में बहुत हद तक दम है। अगर जनता किसी सरकार से ऊब जाती है तो वह उसका तख्ता पलट कर ही देती है, जैसा कि पिछली बार वसुंधरा के खिलाफ ऐलान करके बीजेपी को सत्ता से हटाया था।

2014 में केंद्र की यूपीए सरकार के खिलाफ भी कुछ ऐसा ही माहौल बना था जब जन-जन में मनमोहन सिंह के नेृत्व वाले शासन को उखाड़ फेंकने की भावना गहरा गई थी। तो सवाल है कि क्या मौजूदा मोदी सरकार के खिलाफ भी ऐसा ही माहौल है?

कितने मजबूर दिख रहे हैं पवार!

इस सवाल का जवाब भी शरद पवार के बयान में ढूंढा जा सकता है। वो जिस तरह कह रहे हैं कि जनता ने अगर बदलाव का फैसला किया तो चुनाव में वह अपना निर्णय सुना ही देगी। इस बयान में पवार का विश्वास कहीं से नहीं झलक रहा कि जनता ने बदलाव का मन बना लिया है।

यही वजह है कि वो इंडिया गठबंधन की तरफ से कोई चेहरा नहीं देना चाहते। मुश्किल यह भी है कि विपक्ष के पास मोदी के टक्कर का कोई चेहरा है भी नहीं। दूसरी मुश्किल यह है कि विपक्ष में प्रधानमंत्री पद के कई दावेदार भी हैं।

राजनीति के मंझे खिलाड़ी पवार ने इन दोनों परेशानियों के मद्देनजर ही सुझाव दिया कि विपक्षी गठबंधन को पीएम का कोई चेहरा नहीं देना चाहिए। इससे गठबंधन में संभावित फूट को रोका जा सकेगा तो मतदाताओं को भी इस उलझन में रखा जा सकेगा कि चुनावों में जीत के बाद विपक्ष पीएम का शायद कोई असरदार चेहरा ढूंढ ले।

विपक्ष में कई चेहरे, लेकिन मोदी का मुकाबला करे तो कौन?

इसमें कोई शक नहीं कि बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार हों या प. बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी, फिर दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल को ही ले लीजिए, ये सभी मन ही मन में खुद को पीएम मैटिरियल ही मानते हैं। नीतीश कुमार के लिए तो उनकी पार्टी जेडीयू के कई नेता समय-समय पर बैटिंग करते ही रहते हैं।

हालांकि, ममता और केजरीवाल की तरफ से कांग्रेस अध्यक्ष खरगे का नाम आगे किए जाने को लेकर पूछे गए सवाल पर नीतीश ने मीडिया के सामने अपनी उम्मीदवारी को नकार दिया। वो पहले भी ऐसा करते आए हैं, लेकिन हकीकत तो सबको पता है।

जीवन का 83वां वसंत देख चुके शरद पवार राजनीति की भाषा समझने में जबर्दस्त माहिर हैं। वो जानते हैं कि खरगे हों या नीतीश या फिर ममता-केजरीवा, किसी में इतना दम नहीं कि वो मोदी के खिलाफ विपक्ष के लिए वोट जुटा लें।

विपक्ष के एक बड़े चेहरे राहुल गांधी की तो ऐसी हालत है कि कांग्रेस उनका नाम आगे करने से भी कतराती है क्योंकि उसे डर है कि ऐसा करते ही कई दल गठबंधन से तौबा कर सकते हैं।