अनन्या पांडे ने कहा- लोगों को खुश करने के लिए फेक बिहेव करने लगी थी

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(www.arya-tv.com) सोशल मीडिया के इस दौर में आज की युवा पीढ़ी कहीं न कहीं दोहरी जिंदगी जी रही है। एक असल जिंदगी, दूसरी सोशल मीडिया की आभासी जिंदगी। जाहिर उसके कुछ फायदे हैं तो नुकसान भी।

इसी युवा पीढ़ी के सपनों, रिश्तों, दोस्ती, प्यार की उलझनों पर आधारित है, ऐक्ट्रेस अनन्या पांडे की नई फिल्म ‘खो गए हम कहां, जो ओटीटी पर रिलीज हो रही है। ऐसे में, इन्हीं विषयों पर हमने अनन्या से की खास बातचीत:

आपकी फिल्म सोशल मीडिया का युवा पीढ़ी और उनके रिश्तों पर पड़ रहे असर के बारे में हैं। जबकि, आप खुद इंस्टाग्राम पर बहुत ऐक्टिव रहती हैं…

(बीच में) सब ऐसा ही सोचते हैं, लेकिन अब मैंने सोशल मीडिया का इस्तेमाल बहुत कम कर दिया है। मैं पहले सोशल मीडिया पर ऐक्टिव थी, पहले जितने पोस्ट करती थी, अब नहीं करती।

अभी फिल्म की वजह से मैं ज्यादा पोस्ट कर रही हूं। मुझमें ये बदलाव इस फिल्म की ही वजह से आया है क्योंकि मुझे अहसास हुआ कि मैं कितने पोस्ट कर रही थी, सिर्फ लोगों के वैलिडेशन, लोगों के रिएक्शन के लिए।

फिर, कौन वो पोस्ट लाइक कर रहा है, कौन कॉमेंट कर रहा है, सब सिर्फ उस एक पोस्ट के बारे में हो जाता था, लेकिन इस फिल्म को करने और मैच्योरिटी आने के साथ मुझे समझ में आया कि यह गलत है

। ये मेरे मेंटल हेल्थ के लिए निश्चित तौर पर अच्छा नहीं है। वैसे, हमारी फिल्म सिर्फ सोशल मीडिया के बारे में नहीं है। ये रिश्तों के बारे में हैं कि आज के समय में लोग रिलेशनशिप को कैसे हैंडल कर रहे हैं तो सभी इन किरदारों से कहीं न कहीं जुड़ाव महसूस करेंगे।

आपने हाल ही में कहा कि आप अकेले में रोती थी पर उसी वक्त इंस्टाग्राम पर मस्ती भरी फोटो पोस्ट करती थीं। ऐसा करने की जरूरत क्यों पड़ी?

ऐसा होता है, क्योंकि इंस्टाग्राम पर कोई किसी को दुखी नहीं देखना चाहता। हर किसी की जिंदगी में पहले से इतनी दिक्कतें चल रही होती हैं कि कोई दूसरे का दुख नहीं देखना चाहता तो आप कई बार दिखावा करते हैं।

आप सोशल मीडिया पर देखें तो लगता है कि आपकी जिंदगी में सब अच्छा ही चल रहा है, जबकि ये संभव ही नहीं है कि आपकी जिंदगी में सबकुछ अच्छा ही चल रहा है। इसलिए, हम सब कहीं न कहीं उस दिखावे को बढ़ावा देने के दोषी हैं।

आपको लॉन्च करने वाले फिल्ममेकर करण जौहर ने हाल ही में कहा कि सिलेब्रिटीज जनता के बीच अपना एक वर्जन पेश करते हैं। आप इससे कितनी सहमत हैं? क्या आपने निजी तौर पर भी ऐसा महसूस किया है?

ये सही है। मुझे पिछले साल ये अहसास हुआ कि जब कैमरा ऑन होता था, तब मेरी आवाज बदल जाती थी। वो बहुत हाई पिच हो जाती थी, बहुत स्वीट हो जाती थी और मुझे लगा कि मैं कुछ खुद से अलग बिहेव कर रही हूं।

मुझे खुद ही अपना बिहेवियर बहुत फेक (नकली) लगने लगा तो अब मैं वो थोड़ा सामान्य करने की कोशिश कर रही हूं। मैं एक बैलेंस बनाने की कोशिश कर रही हूं कि क्योंकि हमारा प्रफेशन ऐसा है कि हमें लोगों को हमेशा खुश रखना होता है।

जैसे, कोई फैन आता है, जो फोटो लेना चाहता है, जबकि आपका दिन अच्छा नहीं रहा है, आप अच्छे मूड में नहीं हैं,

फिर भी आपको खुश होने का दिखावा करना होगा वरना आप उन पर एक बुरा इम्प्रेशन छोड़ेंगे तो हमें इन चीजों का ध्यान रखना पड़ता है। कई बार हमें थोड़ा दिखावा करना पड़ता है, लेकिन हम वो दूसरों को खुश करने और सहज महसूस कराने के लिए करते हैं।

आपने सोशल मीडिया का जो नकारात्मक पक्ष है, साइबर बुलींग, ट्रोलिंग, वो भी काफी झेली है। आपने इसके खिलाफ एक पहल भी की थी- सो पॉजिटिव, उसका कितना फायदा हुआ? क्या अब आप ट्रोल्स से निबटना सीख गई हैं? या अब भी आप पर उसका असर पड़ता है?

देखिए, आखिर में मैं भी इंसान हूं, मुझे भी दर्द होता है। मुझे भी बुरा लगता है, खासकर जब परिवार के बारे में बात करते हैं, मेरी बहन के बारे में बात करते हैं, मुझे अच्छा नहीं लगता है, लेकिन उम्र और अनुभव के साथ मैं निश्चित तौर पर ज्यादा स्ट्रॉन्ग हो गई हूं।

वहीं, जो मैंने ‘सो पॉजिटिव’ शुरू किया था, वो उन यंग लोगों के लिए था, जो ये जानना चाहते हैं कि अगर उनके साथ साइबर बुलींग या ट्रोलिंग हो रही है तो वो क्या कर सकते हैं। किसको कॉन्टैक्ट कर सकते हैं,

वहां से शुरुआत हुई थी लेकिन सो पॉजिटिव ने मुझे भी सिखाया कि मुश्किल वक्त में खुशियां कैसे ढूंढ़ें। मुझे याद है कि कोविड के दौरान मैंने एक सीरीज की थी, उन लोगों के बारे में जो कुछ अच्छा काम कर रहे हैं।

जैसे किसी ने एंबुलेंस सर्विस शुरू किया, कोई आवारा जानवरों की मदद कर रहा था तो उनसे बात करके मुझे काफी पॉजिटिव महसूस हुआ।