IIT बॉम्बे और टाटा इंस्टिट्यूट ने खोजा ब्लड कैंसर का इलाज! जानें कैसे नई कार टी सेल थेरेपी 90% तक असरदार

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(www.arya-tv.com) ब्लड कैंसर से ग्रसित उन मरीजों के लिए अच्छी खबर है, जिन पर मौजूदा इलाज बेअसर है। आईआईटी बॉम्बे और टाटा मेमोरियल अस्पताल के विशेषज्ञों ने मिल कर कार-टी सेल थेरेपी बनाई है, जो मरीजों को ठीक करने में नई आस बनकर उभर रही है। यह थेरेपी बच्चों में 99 प्रतिशत तक असरदार है, जबकि बड़ों में भी यह काफी प्रभावी है।

डॉक्टरों ने दावा किया है कि यह देश में बनी पहली कार-टी सेल थेरेपी है, जो विदेश में मौजूद थेरेपी से बेहद किफायती है और इसके साइड इफेक्ट भी काफी कम हैं। टाटा अस्पताल के ऑन्कोलॉजिस्ट डॉ. हसमुख जैन ने बताया कि हमने दो फेज में इसका ट्रायल किया है। पहले फेज में सेफ्टी को लेकर ट्रायल किया। विदेश में उपलब्ध थेरेपी में न्यूरोटॉक्सीसिटी, जिससे दिमाग पर असर पड़ता है और दूसरा साइटोकाइन रिलीज सिंड्रोम जैसे साइड इफेक्ट देखने को मिले हैं,

लेकिन हमारे सेल थेरेपी में दोनों ही साइड इफेक्ट्स नहीं मिले हैं। दूसरे फेज में हमने उन मरीजों पर इस थेरेपी का ट्रायल किया, जिन पर स्टैंडर्ड थेरेपी फेल हो गई है। इनमें वे मरीज भी शामिल हैं, जिनकी आयु 6 महीने से भी कम बची है। ऐसे मरीजों में हमने 70 फीसदी सकारात्मक रिजल्ट पाए हैं।

बच्चों में 99% सफल

कार-टी सेल थेरेपी का बच्चों में बेहतरीन रिस्पॉन्स है। बच्चों पर इस थेरेपी का ट्रायल कर रहे टाटा अस्पताल के पीडियाट्रिक ऑन्कोलॉजिस्ट डॉ. गौरव नरूला ने बताया कि जून 2021 में शुरू किए गए इस ट्रायल का बच्चों पर बहुत अच्छा नतीजा आया।

बीएमटी और कीमो थेरेपी जिन बच्चों में सफल नहीं हो पाई और कैंसर फिर से लौटा आया, उन बच्चों पर कार-टी सेल थेरेपी का परीक्षण किया गया। 99 फीसदी बच्चों पर ट्रीटमेंट का अच्छा असर हुआ। सबसे अच्छी बात यह है कि कार-टी सेल्स शरीर में बने रहते हैं और यह कैंसर के लौटने को रोकने में भी मददगार साबित होते हैं।

बुरे सेल्स को मारेंगे अच्छे सेल्स

डॉ. जैन ने बताया कि कार-टी सेल थेरेपी में हम मरीज के शरीर से रोग प्रतिरोधक सेल्स को निकालते हैं। लैब में सेल्स को आईआईटी के इंजिनियर्स द्वारा जेनेटिकली मोडिफाई किया जाता है। सेल्स में एक जीन इंट्रोड्यूस किया जाता है, जिसमें दो महत्वपूर्ण फीचर्स होते हैं।

पहला अच्छे सेल्स, जो शरीर में धीरे-धीरे बढ़ रहे थे, वह तेजी से बढ़ेंगे। कार-टी सेल के दूसरे फीचर में यह होता है कि वह कैंसर सेल्स को प्रभावी तरीके से टारगेट कर नष्ट करता है। लैब की प्रक्रिया पूरी होने के बाद कार-टी सेल्स मरीज में ट्रांफ्यूज किया जाता है।

वैसे तो उपचार एक साइकिल में ही हो जाता है, लेकिन जरूरत पड़ी तो दूसरा साइकिल भी कर सकते हैं। जैसे प्लेटलेट्स चढ़ाया जाता है, उसी प्रकार से कार-टी सेल भी चढ़ाया जाता है। बस मशीन की सेटिंग अलग होती है।

साइड इफेक्ट कम और दाम भी

डॉक्टरों ने बताया कि विदेश में इस थेरेपी में लगनेवाले जेनेटिकली मोडिफाइड सेल्स की कीमत 3 से 4 करोड़ रुपये होती है। सबसे कम मूल्य 80 लाख से 1 करोड़ रुपये में चीन और इजरायल में केवल प्रॉडक्ट मिलता है। इसके अलाव क्लिनिकल खर्च भी होता है। जैसे थेरेपी देने में यदि कोई साइड इफेक्ट होते हैं तो उन्हें ठीक करना आदि। यह प्रॉडक्ट स्वदेशी है, इसलिए इसकी कीमत 40 से 50 लाख रुपये होगी। यह यूएसए में बिकनेवाली थेरेपी का 10 फीसदी कॉस्ट है।

डेढ़ से दो महीने में होगी उपलब्ध

कार-टी सेल थेरेपी के इस्तेमाल के लिए ड्रग्स कंट्रोलर जनरल ऑफ इंडिया (डीसीजीआई) से अप्रूवल मिल गया है। डॉक्टरों के अनुसार, अब स्टेट एफडीए सहित कुछ छोटे अप्रूवल बाकी हैं। डेढ़ से दो महीने में यह प्रॉसेस पूरा हो जाएगा। मरीज को किफायती दर पर इलाज मिले, इसको लेकर टाटा अस्पताल के वरिष्ठ अधिकारियों में बातचीत जारी है।

2013 से डॉक्टर कर रहे थे परिश्रम

टाटा अस्पताल के डॉ. गौरव नरूला, डॉ. पी राहुल और डॉ. हसमुख जैन ने सन 2013 से 2020 तक आईआईटी के साथ मिलकर प्री क्लिनिकल ट्रायल पर काम किया। जहां कार-टी सेल थेरेपी बनाया गया और इसमें कई संस्थाओं ने मदद का हाथ बढ़ाया।

2020 में हमें मानव पर इसके परीक्षण की अनुमति मिली। दिसंबर 2022 में दूसरे फेज की शुरुआत की और अगस्त में उसे पूरा किया। विदेश में 2017 में पहला अप्रूवल मिला था। यूएसए, यूरोप, चीन में यह उपलब्ध था। अब देश में इस थेरेपी को पहली बार अप्रूवल मिला है।