सौभाग्य है कि मैं पकड़ा गया.., पाकिस्तान के रिकार्ड में है क्रांतिकारी सुखदेव की अपूर्ण और अप्रेषित चिठ्ठी, जानिए क्या है खास

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कानपुर (www.arya-tv.com) सुखदेव थापर की यह अपूर्ण, अप्रेषित चिट्ठी उनके बोस्र्टल जेल से लाहौर सेंट्रल जेल में स्थानांतरण के दौरान प्राप्त हुई थी। मूल चिट्ठी पाकिस्तान सरकार के रिकार्ड में है, लेकिन इसकी फोटोस्टेट प्रतिलिपि राष्ट्रीय अभिलेखागार में उपलब्ध है…

7 अक्टूबर, 1930

बिरादरमन,

देर से कुछ भावनाएं हृदय में उठ रही थीं, जिनको कुछ कारणवश अब तक दबाए हुए था। किंतु अब अधिक नहीं दबा सकता। उनको दबाना उचित भी नहीं समझता। कह नहीं सकता मेरे इस प्रकार भाव प्रकट करने को आप अच्छा समझें या बुरा, लेकिन मैं तो वही कर रहा हूं जो मुझे उचित मालूम दे रहा है। इससे यह लाभ होगा कि मेरे विचार भी कुछ स्पष्ट हो जाएंगे और मुझे इस बात की तसल्ली हो जाएगी कि जेल की चहारदीवारी ने मुझे मेरे ठीक-ठाक जज कर सकने की शक्ति से वंचित नहीं किया और प्रैक्टिकल लाइफ के फील्ड से अलग हो जाने पर मैं आलसी या निष्क्रिय नहीं हो गया हूं।

जब से हम लोग जेल में आए हैं, बाहर का वातावरण बहुत गर्म हो रहा है। पत्रों द्वारा पता चलता है कि करीब हर प्रदेश में, खासकर पंजाब और बंगाल में तो हद ही हो गई है। बम द्वारा इतने एक्शन हमारे इतिहास में शायद ही कभी हुए होंगे। इन्हीं के बारे में ही मैं यहां कुछ कहना चाहता हूं। एक्शन के संबंध में हमारी पालिसी क्या थी, आपके सम्मुख रखूंगा। इसके पश्चात एक्शन के संबंध में विचार कहूंगा।

हम लोग कुल दो एक्शन कर पाए। एक सांडर्स मर्डर और दूसरा, असेंबली बम। इसके अतिरिक्त हमने दो-तीन और एक्शन करने का प्रयत्न किया था यद्यपि उनमें सफलता प्राप्त नहीं हुई। इनके संबंध में मैं इतना कह सकता हूं कि हमारे एक्शंस तीन प्रकार के थे- 1. प्रचार, 2. पैसा, 3. विशेष। इन तीनों में से हमारा मुख्य ध्यान प्रचार की ओर था। बाकी दोनों प्रकार के एक्शन हमारा उद्देश्य नहीं वरन उद्देश्य की पूर्ति के लिए आवश्यक थे।

अन्य दो प्रकार के एक्शन को छोड़कर मैं प्रचार पर बात करना चाहता हूं। हमारा यह एक्शन जनता के भावों के अनुकूल होता था। उदाहरण के लिए सांडर्स की हत्या को लें। लाला (लाजपत राय) पर लाठियां पड़ने से हमने देखा कि देश में बहुत हलचल है।

इस पर सरकार के रवैये ने तेल का काम किया। जनता का ध्यान क्रांतिकारियों की ओर खींचने के लिए हमारे लिए यह अच्छा अवसर था। पहले हमने सोचा था कि एक आदमी पिस्तौल लेकर जाए और स्काट को मारकर वहीं खुद को पेश कर दे। फिर स्टेटमेंट द्वारा यह कह दे कि जब तक क्रांतिकारी जिंदा हैं, इसी प्रकार नेशनल इंसल्ट का बदला लिया जा सकता है।

इसमें भी बचकर निकल जाने का विचार मुख्य नहीं था। इसकी तो आशा भी नहीं थी। हमारा विचार यह था कि यदि मर्डर के बाद पुलिस पीछा करे तो खूब मुकाबला किया जाए। जो इस मुकाबले में पकड़ा जाए वह स्टेटमेंट दे दे। इसी विचार से हम भागकर डी.ए.वी. कालेज बोर्डिंग की छत पर चढ़ गए थे। एक्शन के समय यह प्रबंध था कि भगत सिंह को स्काट पहचानता था, पहली गोली वह चलाए और राजगुरु थोड़ी दूरी पर उसकी हिफाजत करे। यदि भगत सिंह पर कोई हमला करे, तब राजगुरु उसको रोके।

इसके बाद दोनों वहां से भागें और चूंकि भागते हुए मुड़कर पीछा करने वालों पर निशाना नहीं लिया जा सकता इसलिए पंडित जी को इन दोनों की रक्षा के निमित्त पीछे खड़ा किया गया था। हम यह भी नहीं चाहते थे कि जिस पर गोली चलाई जाए, वह अस्पताल जाकर मरे। इसलिए राजगुरु द्वारा गोली मार देने के बाद भी भगत सिंह ने तब तक गोली चलानी बंद नहीं की, जब तक उसे तसल्ली नहीं हो गई कि वह मर गया है।

मारकर भाग जाना ही हमारा उद्देश्य नहीं था। हम तो चाहते थे कि देश जान जाए कि यह राजनैतिक हत्या है और इस एक्शन को करने वाले क्रांतिकारी हैं। इसलिए हमने उसके बाद पोस्टर्स लगाए और कुछ पोस्टर्स अखबारवालों को छापने के लिए भेजे। अफसोस, हमारे नेताओं और अखबारवालों ने हमें इस संबंध में कुछ सहायता न की और सरकार को धोखे में रखने के विचार से देशवासियों को धोखा दिया।

हम तो केवल इतना चाहते थे कि वह इसके संबंध में यह गोल-मोल करके लिख दें कि यह राजनैतिक हत्या सरकार की नीति का ही परिणाम है। ऐसे एक्शन के लिए वह जिम्मेदार है, लेकिन उन्होंने जानने-बूझने और मेरे बार-बार कहने के बावजूद भी ऐसा कहने की हिम्मत नहीं की। अच्छा हुआ हम पकड़े गए और देश के सम्मुख सब प्रगट हो गया।

मैं तो भाई, अपने पकड़े जाने को सौभाग्य समझता हूं। सिर्फ इसीलिए इस एक्शन की प्रकृति को स्पष्ट कर देने के पश्चात अब मैं इस नीति को (नोट: इसी समय पता लगा है कि आज जजमेंट होगी, चलना है कि नहीं यह पूछने के लिए खां साहिब और बख्शी जी आए थे। हम सबने इन्कार कर दिया है) रखना चाहता हूं। हमारा विचार था कि हमारे एक्शन जनता की मांग और सरकार द्वारा शिकायतों के उत्तर में होने चाहिए ताकि हम जनता को अपने साथ ले सकें और जनता हमारे प्रति सहानुभूति और सहायता दिखाने के लिए तैयार हो जाए।

इसके साथ-साथ हमारा यह विचार था कि क्रांतिकारियों के विचारों और तकनीकों को जनता में फैलाया जाए और यह उसके मुख से ज्यादा अच्छी लगती है जो इसकी खातिर फांसी के तख्त पर खड़े हैं। तीसरा उद्देश्य यह था कि सरकार से सीधी टक्कर लेने से हमारी संस्था एक निश्चित कार्यक्रम अपने लिए बना सकेगी।

बाकी दो प्रकार के एक्शन के संबंध में कुछ ज्यादा नहीं कहना चाहता हूं। पैसे से संबंधित एक्शन के लिए इतना आवश्यक होना चाहिए कि बंगालवालों की तरह डकैतियों में ज्यादा ऊर्जा और ध्यान देना ठीक नहीं है। साथ ही छोटी-छोटी डकैतियां कतई लाभदायक सिद्ध नहीं हुई हैं। इसलिए हम सब कुछ देकर भी एक जुआ खेलने की तैयार हो गए थे ताकि अगर बच गए तो अच्छी तरह से निश्चिंत होकर अपना काम करते जाएंगे और पैसे की समस्या को हम एक बार रिस्क लेकर हल करेंगे।

सांडर्स की हत्या के बाद तो हमें पैसों के लिए ज्यादा चिंता भी नहीं करनी पड़ी। साधारण डकैतियों में जितना धन हमें नहीं मिला, उतना हम चुपचाप इकट्ठा कर लेते थे। आज तो उससे कहीं ज्यादा आसानी है। विशेष एक्शन अनिवार्य होते हैं, लेकिन उसी दशा में जब अत्यंत आवश्यक हों। हां, इनकी संख्या बहुत कम होनी चाहिए।

अब मैं उन एक्शन के संबंध में कुछ कहना चाहता हूं जो हमारे बाद घटित हुए। वायसराय की ट्रेन को उड़ाने के प्रयत्न के अतिरिक्त बम द्वारा कई एक्शन हुए हैं। इनमें एक विशेष प्रकार के एक्शन हुए हैं। अर्थात बम रास्ते में रख आएं या जो एक्शन पंजाब के चार-पांच शहरों में एक साथ हुए हैं।

मुझे समझ नहीं आई कि यह एक्शन किस विचार से किए गए हैं। जहां तक मैं अनुभव करता हूं, जनता में ऐसे एक्शन से विशेष जागृति तो आती नहीं है। यदि आतंक फैलाने का विचार था तो मैं पूछना चाहता हूं कि आप लिखें कि इन एक्शन ने इस उद्देश्य की कहां तक पूर्ति की है। इस संबंध में चिटगांववाले एक्शन की यहां पर प्रशंसा नहीं करना चाहता.