(www.arya-tv.com) राजेंद्रनगर की राधेश्याम पार्क कॉलोनी में नक्शे के विपरीत निर्माण करने का जीडीए में एक ऐसा मामला आया है, जिसकी जांच के लिए जीडीए के पास कोई ओरिजनल डॉक्यूमेंट ही नहीं है। जीडीए के पास इस कॉलोनी का फोटोस्टेट लेआउट है। खास बात यह है कि इसी के आधार पर अभी तक सभी नक्शों को जीडीए ने पास किया है।
ऐसे में सवाल उठता है कि जांच के दौरान नक्शे को सही या गलत साबित कौन करेगा, शिकायतकर्ता या फिर नक्शा पास करवाने वाला व्यक्ति। फिलहाल जीडीए ने नक्शा पास करवाने वाले व्यक्ति को नोटिस दे दिया है। नोटिस का जवाब आने और सुनवाई किए जाने के बाद जीडीए इस प्रकरण में फैसला करेगा।
जीडीए के अधिकारियों का कहना है कि इस कॉलोनी का लेआउट साल 1962 में पास हुआ था। जीडीए के पास उसका ओरिजनल लेआउट नहीं है। जीडीए सचिव राजेश कुमार सिंह ने बताया कि श्याम पार्क में भूखंड संख्या 126-ए का नक्शा गलत पास किए जाने की शिकायत आई है। जिसकी जांच जीडीए ने शुरू करवा दी है। प्राथमिक जांच में यह बात सामने आई है कि 126-ए लेआउट का हिस्सा नहीं है। अभी डिटेल में जांच की जा रही है। जांच पूरी होने के बाद ही इस प्रकरण में आगे की कार्रवाई की जाएगी।
यह है मामला
श्याम पार्क कॉलोनी के भूखंड संख्या 126-ए का नक्शा गलत पास होने के साथ ही साथ यहां अवैध निर्माण किए जाने की शिकायत जीडीए में आई थी। जीडीए ने मामले को गंभीरता से लिया और अगले दिन ही टीम को भेजकर वहां जो भी अवैध निर्माण किया गया था उसे तोड़ दिया गया। फिर नक्शे की जांच पड़ताल शुरू हुई। तो जीडीए के पास इस कॉलोनी का ओरिजनल डॉक्यूमेंट नहीं होने की वजह से नक्शा पास करवाने वाले आवेदक प्रमोद डागर को नोटिस भेजा गया है। अब नोटिस का जवाब आने के बाद ही आगे की कार्रवाई की जाएगी।
जेई को हटाया, सुपरवाइजर सस्पेंड
इस भूखंड पर दो मंजिल का नक्शा पास करवाया गया था लेकिन यहां पर चार मंजिल का निर्माण हो चुका था। प्रवर्तन टीम द्वारा कोई कार्रवाई नहीं किए जाने की वजह से इस प्रकरण में जीडीए वीसी राकेश कुमार सिंह ने लापरवाही बरतने के आरोप में दो जूनियर इंजीनियरों को इस जोन से हटा दिया गया है। जबकि सुपरवाइजर को सस्पेंड किए जाने का आदेश दिया गया है।
राजनीतिक लड़ाई से खुली पोल
बताया जा रहा है कि इस अवैध निर्माण और गलत तरीके से नक्शा पास करवाए जाने की शिकायत राजनीतिक लड़ाई की वजह से हुई है। प्रवर्तन जोन-7 में अधिकांश निर्माण राजनीतिक दलों के नेताओं की देखरेख में चलता है। यदि जीडीए की प्रवर्तन टीम कार्रवाई करने जाती है तो उनके ऊपर इतना अधिक राजनीतिक दबाव पड़ जाता है कि वे कार्रवाई नहीं कर पाते हैं। इस प्रकरण में भी अवैध निर्माण होने देने का राजनीतिक दबाव जीडीए की टीम पर पड़ा हुआ था।
रुक नहीं रहा है अवैध निर्माण
जीडीए द्वारा अवैध निर्माण रोकने का दावा जरूर किया जाता है लेकिन इस पर अंकुश नहीं लग पा रहा है। लंबे समय से एक ही जोन में जमे हुए प्रवर्तन प्रभारियों और उनकी टीम की मिलीभगत से हर जोन में अवैध निर्माण चल रहा है। जबकि 6 महीने से लेकर साल भर के बीच प्रवर्तन टीम में बदलाव किए जाने का नियम है। लेकिन हमेशा से इस नियम की अनदेखी होती है। यदि किसी आरोप में कोई हटता है तो कुछ समय बाद ही उसे दोबारा लगा दिया जाता है।