- हम क्या कर सकते हैं अपने घर में बैठकर
विगत कई अंकों में आर्य tv.com ने पोस्ट ग्रेजुएट इंजीनियर, पूर्व परमाणु वैज्ञानिक, सनातन चिंतक, कवि और लेखक विपुल सेन उर्फ विपुल लखनवी से सनातन के विषयों पर अनेकों साक्षात्कार प्रकाशित किए हैं। उनका दूसरा पहलू है पर्यावरणविद् होना। उनके विज्ञान से संबंधित सैकड़ो लेख देश के विभिन्न पत्र पत्रिकाओं में प्रकाशित हो चुके हैं। विश्वविद्यालय से लेकर विद्यालयों, लायंस, रोटरी, सीनियर सिटीजन सहित अनेकों क्लब और वैज्ञानिक संस्थानों में 100 से अधिक पर्यावरण संबंधी व्याख्यान दे चुके हैं।
डॉ. अजय शुक्ला: नमस्कार सर एक पाठक ने प्रश्न किया है हमारे घर छोटे-छोटे होते हैं हम पर्यावरण का बचाव कैसे करें? आपकी रुचि इस तरफ क्यों हुई?
विपुल जी: नमस्कार शुक्ला जी। देखिए अजय मैं जैसा कि आप जानते हैं मैं भाभा परमाणु अनुसंधान केंद्र से सेवानिवृत्त हुआ और मेरी बैकग्राउंड एजुकेशन है वह लखनऊ विश्वविद्यालय से बीएससी है एचबीटीआई कानपुर से बी.टेक. है और एम.टेक. है। मैं बचपन से जिज्ञासु हूं और शोध से जुड़ा रहा हूं और मुझे सनातन भारतीय संस्कृति से जुड़े हुए लगभग 50 वर्ष हो गए। मैं छात्रावस्था से बहुत कुछ बातों को जानना चाहता था इस कारण अपनी व्यक्तिगत शोध करता रहा लेकिन सरकारी नौकरी होने के कारण बहुत बंधन हो जाते हैं इसलिए इसको बिना किसी से चर्चा किए व्यक्तिगत रूप से करता रहा। अब मुझे सेवानिवृत्त हुए लगभग 4 वर्ष होने आ रहे हैं। मेरे हृदय में समाज के निर्धन लोगों के प्रति बेहद संवेदना के कारण व्यक्तिगत रूप से गरीब बच्चों की फीस देता रहा हूं पढ़ने की सामग्री देता रहा हूं और अन्य प्रकार से सहायता करता रहा हूं।
पर्यावरण से प्रेम होने के कारण यहां मैं अपने सारथी श्री के गांव में जिसका नाम भवानीपुर है और जो प्रयागराज में आता है वहां पर बिना गए हुए 500 वृक्षों का वृक्षारोपण वर्ष 2018 में करा चुका हूं। इन में आम पीपल बरगद नीम आदि शामिल है। इसी भांति मेरा जो निवास स्थान है यहां पर बिल्कुल भी कचरा नहीं निकलता है क्योंकि मेरे पास करीबन 200 गमले हैं मैं घर के जो गीला कचरा है यानी बायोडिग्रेडेबल भाजी इत्यादि है उन के छिलके से खाद बनाता हूं केवल जो कुछ थोड़ा बहुत पेपर निकलता है वही मैं कचरा इकट्ठा करने वाले को देता हूं और वह भी सूखा देता हूं जिससे वह उसको बेच सके और वह पेपर री साइकिल हो सके।
मेरे घर में हर उस व्यक्ति का स्वागत है जो बरसात के पानी को इकट्ठा करना चाहता है मैंने कई हजार खर्च करके अपने घर में बरसात के पानी को इकट्ठा करने की योजना को कार्यान्वित किया है जो मैंने 3 साल पहले किया था इस क्षेत्र में पहला। इस कारण मैं सोसाइटी का पूरी बरसात में 2 लाख लीटर पानी बचा देता हूं हालांकि इससे मुझे कोई फायदा नहीं क्योंकि पानी का बिल तो सबको बराबर देना पड़ता है लेकिन फिर भी यह समाज के लिए है पर्यावरण के लिए है इस कारण मैंने इसको किया।
अब आपके सहयोग के माध्यम से मैं पर्यावरण संबंधी वह सुझाव दूंगा जो आज तक शायद भारत सरकार ने सोचें भी नहीं होंगे। कुछ वर्ष पूर्व मैंने इसको बच्चों की शिक्षा से जोड़ने हेतु केंद्र सरकार को लिखा था लेकिन वह नक्कारखाने में तूती की आवाज साबित हुई।
मैंने कई डिग्री कॉलेज में कई विश्वविद्यालय और विभिन्न संस्थानों क्लब इत्यादि में एक सौ से अधिक व्याख्यान पर्यावरण के ऊपर दिए हैं। लोग छोटी सी जगह में भी वे क्या कर सकते हैं इस पर भी सुझाव दिए हैं।
डॉ. अजय शुक्ला: आप इस सुझाव पर और कुछ प्रकाश डालेंगे।
विपुल जी: अजय शुक्ला जी आपने देखा होगा जो पुराने सरकारी विश्वविद्यालय होते हैं कॉलेज होते हैं उनके पास बहुत सारी जमीन होती है जो बेकार पर ही रहती है और फिर बाद में उन पर अवैध कब्जे हो जाते हैं और कानूनी समस्या पैदा होती है मैंने मदन मोहन मालवीय तकनीकी विश्वविद्यालय, गोरखपुर यू पी में वहां के प्रथम कुलपति डॉ ओंकार सिंह के आमंत्रण पर एक व्याख्यान में यह सुझाव दिया था और उन्होंने लागू भी किया। जितने भी डिग्री कॉलेज या विश्वविद्यालय हैं यह बच्चों के लिए 100 नंबर की एक सोशल एक्टिविटी रखें हर बच्चे को या किसी ग्रुप को अपनी जो भूमि सीमा है उसके बॉर्डर पर कुछ जमीन अलाट कर दे वहां पर बच्चों का नाम लगा दे और बच्चों से बोले वहां पर वह कुछ कार्य करके दिखाएं जैसे कि सोलर पावर भाजी फूल इत्यादि के वृक्ष यहां तक कि कोई अखाड़ा कुश्ती हो सके या उस क्षेत्र में पशुपालन की जा सके या किसी जीव के रहने का निवास बनाए जा सके यह सब बच्चों को करने का छूट होना चाहिए। साल के अंत में आप नंबर दे दे। इसके द्वारा आप बच्चों में मिट्टी के प्रति प्रेम पैदा कर सकेंगे।
मैंने देखा है जो पैसे वाला है उनके घरों में माता-पिता बच्चों को बोलते हैं मिट्टी मत छुओ गंदी है और इस कारण बच्चे मिट्टी से घृणा करते हैं आपने देखा होगा इसीलिए मैंने अपने ट्रस्ट गर्वित के माध्यम से मिट्टी लगे हाथ बच्चों के लिए एक प्रतियोगिता रखी और हर प्रतियोगी को एक प्रशस्ति पत्र दिया जाएगा और इनाम भी दिया। मेरी इसी योजना को भारत सरकार ने विगत वर्ष 9 अगस्त से लेकर 15 अगस्त तक नाम परिवर्तित कर लागू किया था। इस संबंध में आप समाचार छप चुके हैं।
होता क्या है ऐ.सी. में रहने वाला बच्चा पैसे के बल पर एसी के इवनिंग कॉलेज में एडमिशन लेगा बाद में अपने पिता के कक्ष में बैठकर अपनी फैक्ट्री देखेगा उसकी प्लैनिंग देखेगा और क्योंकि उसको मिट्टी से पर्यावरण से प्रेम है ही नहीं उसको बचपन से नफरत सिखाई गई इस कारण वह अपनी फैक्ट्री के लिए किसी भी जमीन पर पेड़ों को काटने में गड्ढों को पाटने में पोखर को पाटने में कुंवे को पाटने में और पर्यावरण को नष्ट करने में तनिक भी चिंता नहीं करेगा और यही हो रहा है। इसको हमें दूर करना है।
डॉ. अजय शुक्ला: सर अभी जो छोटे-छोटे स्कूल है जिनके पास जगह का अभाव है मुंबई जैसे शहर में, वह किस तरह बच्चों को पर्यावरण की ओर प्रेरित कर सकते हैं।
विपुल जी: देखिए अजय शुक्ला जी वह अपने स्कूल में गमले रख सकते हैं और बच्चों को यह बच्चों के ग्रुप को गमले एलाट कर दें और उनसे बोले कि इसमें फूल लगाओ इसमें तुमको नंबर दिए जाएंगे तो बच्चे उन गमले को देखभाल करेंगे इससे उनकेश स्कूल की सुंदरता भी बढ़ेगी और बच्चों को मिट्टी से कोई भी नफरत नहीं होगी उनको समय के साथ पेड़ों से प्रेम पैदा होगा पौधों से प्रेम पैदा होगा और वह पर्यावरण कोश समझने लगेंगे इस कारण पर्यावरण बचाव की ओर आगे बढ़ जाएंगे।
यही योजना मैंने भारत सरकार को भेजी थी 5 साल पहले लेकिन अंधेर नगरी चौपट राजा कोई सुनने वाला ही नहीं मैंने शिक्षा मंत्री को ईमेल किया था मैंने और को ईमेल किया था लेकिन किसी ने ध्यान नहीं दिया क्योंकि हर जगह केवल और केवल जुगाड़ ही चलती है और जुगाड़ की योजना को अंजाम दिया जाता है चाहे कोई भी सरकार क्यों न हो।
डॉ. अजय शुक्ला: यह सब तो आप पहले भी बता चुके हैं कुछ नई बात भी बताइए।
विपुल जी: मैं आपके सुझाव देता हूं जब आपको समय मिले तब आप मेरे साथ वार्तालाप करें मैं आपको हम अपने घर में जाने अनजाने में कितना पर्यावरण प्रदूषण करते हैं इस पर मैं बताऊंगा। इस साक्षात्कार को आप टुकड़ों में बांट सकते हैं। 1.पर्यावरण प्रदूषण बेडरूम से बॉथरूम तक।2. फिर बाथरूम से आपके किचन तक। 3.किचन से आपके ड्राइंग रूम तक। 4.ड्राइंग रूम से आपके दफ्तर तक। 5.आपके दफ्तर में। इन सभी बिंदुओं पर साक्षात्कार लिया जा सकता है।
डॉ. अजय शुक्ला: सर मैं तो रोमांचित हो रहा हूं मैं शीघ्र ही समय निकालकर आपसे संपर्क करूंगा और इन सभी को क्रमवार में जनता तक पहुंचाने का प्रयास करूंगा!
विपुल जी: अजय जी जितनी भी चैरिटी की और पर्यावरण के बचाव की योजना है उन सबका स्वागत है। आप मेरे पास प्रपोजल भेजिए यदि संभव होगा तो मैं आपकी हर तरीके से सहायता करूंगा।
डॉ. अजय शुक्ला: इसके अतिरिक्त आप एक शोध केंद्र की बात करते रहते हैं वह क्या है?
विपुल जी: जी गर्वित भारत अनुसंधान केंद्र इसकी स्थापना हो चुकी है और कर्नाटक के कनकपुरा ग्राम रामनगर कृष्णापुरम में कार्य चालू भी हो चुका है। जिसमें सनातन से संबंधित शोध के अतिरिक्त पर्यावरण के विभिन्न आयाम पर शोध की जाएगी। आपको जानकर आश्चर्य होगा कि मैं मुंबई से कई प्रकार के आम के वह अन्य फलों के बीजों को लेकर जा रहा हूं।
हालांकि यह काम तो एग्रीकल्चर का है लेकिन अंतर यह है कि किस वृक्ष के नीचे बैठकर साधना और ध्यान अच्छा हो सकता है? किस वृक्ष के नीचे बैठकर याद करने से मेमरी अच्छी होती है। कितने प्रकार के तापमान पर हमारा शरीर सकारात्मक रूप से आंतरिक रूप से क्या कर सकता है? यह सब पर्यावरण से संबंधित आयाम है। किस वृक्ष के नीचे तमाम प्रकार के जो बीज मंत्र हैं उनका प्रभाव अच्छा होता है। क्योंकि वृक्षों में भी शक्ति होती है आपको शायद पता है कि नहीं कि जब ऋषि मुनि किसी भी औषधि के वृक्ष को अथवा पौधे को तोड़ते थे तो पहले उसकी प्रार्थना करते थे कि वह अपने वास्तविक रूप में प्रकट हो और अपने औषधीय गुण को प्रकट करें।
अपनी सोसाइटी में मैंने कई प्रकार के पौधे लगाए हैं और समय-समय पर उन पौधों को जिनमें फूल इत्यादि के पौधे होते हैं उनको खरीद कर लाता हूं उनको आगे बढ़ाता हूं और लोगों को निशुल्क वितरित कर देता हूं। यह काम अन्य लोग भी कर सकते हैं।
डॉ. अजय शुक्ला: अंत में आप कोई संदेश देना चाहेंगे।
विपुल जी: जी बिल्कुल आज ही मैंने एक अपील अपनी सोसाइटी में सर्कुलेट की है उसको मैं शेयर कर रहा हूं।