(www.arya-tv.com) वर्तमान सप्ताह का शुभारंभ भाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि के साथ हो रही है। सप्ताह के पहले दिन ही हरितालिका तीज का व्रत किया जा रहा है। इस दिन भगवान शिव और माता पार्वती की पूजा अर्चना करने सौभाग्य में वृद्धि होती है। साथ ही इस सप्ताह गणेश चतुर्थी तिथि का व्रत भी किया जाएगा और घर घर गणेशजी विराजमान होंगे। गणेश चतुर्थी के साथ इस सप्ताह ऋषि पंचमी, सूर्य षष्ठी व्रत, महालक्ष्मी व्रत, ज्येष्ठा गौरी विसर्जन आदि कई प्रमुख व्रत त्योहार का आयोजन किया जाएगा।
हरितालिका तीज व्रत (18 सितंबर, सोमवार)
भाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि को हरतालिका तीज व्रत माना जाता है। इस दिन सौभाग्यवती स्त्रियों को निराहार व्रत रहकर शिव-पार्वती का पूजन करना चाहिए। सुंदर वस्त्रों और कदली स्तंभों से घर को सजाकर नाना प्रकार के मंगल-गीतों से रात्रि जागरण करना चाहिए। इस दिन सोमवार और हस्त नक्षत्र का भी संयोग है। इस व्रत के करने से सौभाग्य की वृद्धि होती है और जीवन में सुख समृद्धि बनी रहती है।
गणेश चतुर्थी व्रत (19 सितंबर, मंगलवार)
भाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष की चतुर्थी गणेश चतुर्थी नाम से प्रसिद्ध है। इस दिन गणेशजी की स्थापना की जाती है। गणेश पूजा के लिए सुबह 11.19 बजे से दोपहर 1.43 बजे तक शुभ मुहूर्त है। गणेश चतुर्थी को कलंक चतुर्थी भी कहा जाता है। इस दिन चंद्र दर्शन निषेध है। श्रीकृष्ण ने चंद्रमा को देख लिया था, इसलिए उन पर स्यमंतक मणि की चोरी का आरोप भी लगा था। गणेश चतुर्थी तिथि का व्रत करने से सभी विघ्न दूर होते हैं और जीवन में मंगल रहता है।
ऋषि पंचमी (20 सितंबर, बुधवार)
भाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि को ऋषि पंचमी कहते हैं। इस दिन नदी में स्नान करके ऋषियों का पूजन करना चाहिए। इसी दिन डेढ़ दिन के गणपति का विसर्जन भी होगा। इस तिथि का व्रत करने से व्यक्ति जन्म मरण के बंधन से मुक्त हो जाता है और ज्ञान में वृद्धि होगी। पुराणों में बताया गया है कि इस व्रत को करने से धन धान्य. समृद्धि, संतान प्राप्ति की कामना पूरी होती है।
सूर्य षष्ठी व्रत (21 सितंबर, गुरुवार)
भाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष की षष्ठी तिथि को सूर्य षष्ठी व्रत रखा जाएगा। इसी दिन सूर्य भगवान वाराणसी में लोलार्क कुंड में स्थिर हुए थे। यहां पर निसंतान महिलाएं स्नान करके संतान की कामना करती हैं। इस दिन सूर्य की उपासना करने से दुख व संताप से मुक्त हो जाता है और सम्मान व ऐश्वर्य में वृद्धि होती है। सूर्य की वजह से पृथ्वी पर जीवन संभव है और ऊर्जा का एकमात्र स्त्रोत है।
महालक्ष्मी व्रत (22 सितंबर, शुक्रवार)
हिंदू पंचांग के अनुसार, भाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष की सप्तमी तिथि के दिन महालक्ष्मी व्रत आरंभ किया जाता है। यह व्रत इस दिन से शुरू होकर 16 दिन तक चलेगा। 16 दिन तक चलने वाले महालक्ष्मी व्रत को सुरैया काला है। सुरैया यानी वो अवधि जो जीवन को सुर में ढाल दें। इस व्रत में महालक्ष्मी के साथ यक्ष-यक्षिणी की भी उपासना करनी चाहिए। इस व्रत के करने से धन धान्य में वृद्धि होती है और महालक्ष्मी का आशीर्वाद प्राप्त होता है।
राधाष्टमी व्रत (23 सितंबर, शनिवार)
भाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष की अष्टमी तिथि को राधा अष्टमी का पर्व मनाया जाता है। इस दिन देवी राधा का प्राकट्य हुआ था। यह पर्व कृष्ण जन्माष्टमी के ठीक 15 दिन बाद मनाया जाता है। इस पर्व को बरसाना, मथुरा, वृंदावन समेत पूरे ब्रज में विधि विधान के साथ मनाया जाता है। राधा रानी पूरे ब्रज की अधिष्ठात्री देवी हैं, अगर कृष्ण को पाना है तो राधारानी की पूजा करनी होगी। इस व्रत के करने से सम्मान, आयु, धन और सुख में वृद्धि होती है।
ज्येष्ठा गौरी विसर्जन (23 सितंबर, शनिवार)
हिंदू पंचांग के आधार पर भाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष की अष्टमी तिथि को ज्येष्ठा गौरी के साथ में जिन गणपति की पूजन की जाती है, उनका विसर्जन किया जाएगा। गौरी पूजन के अगले दिन गौरी विसर्जन किया जाता है। गौरी विसर्जन से पहले आरती की जाती है और दही व पकी मेथी के पत्तों के साथ पके हुए चावल का भोग लगाया जाता है। ज्येष्ठा नक्षत्र में गौरी की पूजा की जाती है इसलिए इस तिथि को ज्येष्ठा गौरी विसर्जन के नाम से जाना जाता है।