क्या कुंडलनी जागरण से मिलती है सिद्धियां ? एक साक्षात्कार

Lucknow

(aryatv.com) के पिछले कई अंकों में भारतीय सनातन ज्ञान के विषय में समझने के लिए सनातन प्रचारक स्कॉलर और चिंतक विपुल लखनवी जी के कई साक्षात्कार प्रकाशित हुए हैं। पूर्व परमाणु वैज्ञानिक कवि लेखक और संपादक विपुल जी के द्वारा जटिल से जटिल प्रश्नों के उत्तरों को बड़ी सहजता से संकलित करने का प्रयास किया गया। आर्य टीवी को बड़ी प्रसन्नता है कि इस संबंध में लोगों के प्रश्न निरंतर प्राप्त होते रहते हैं और बड़ी जिज्ञासा से लोग आने वाले साक्षात्कार की प्रतीक्षा करते हैं। सभी पाठकों को धन्यवाद देते हुए पत्रकार डॉक्टर अजय शुक्ला को जो प्रश्न प्राप्त हुए वह एक बार पुनः विपुल जी के पास उत्तर के लिए पहुंच गए।
प्रस्तुत है साक्षात्कार के कुछ पाठकों के प्रश्नों के उत्तर।

पत्रकार अजय शुक्ला: चरण स्पर्श सर। कुछ अन्य प्रश्न पूछना चाहता हूं सर।

विपुल जी: प्रणाम मित्र। आप निसंकोच पूछें।

पत्रकार अजय शुक्ला: सर यह कुंडलनी क्या होती है? हमने तो कुंडली का नाम सुना है!

विपुल जी: (हंसते हुए)। कुंडली ज्योतिष शास्त्र में होती है। कुंडलनीशक्ति आपके भीतर होती है।

पत्रकार अजय शुक्ला: कुछ विस्तार से समझाएं।

विपुल जी: मनुष्य के निर्माण के बाद जो ऊर्जा बचती है वह एक कन्द के मूल में गुदा और योनि के मध्य जिसे मूलाधार कहते है वहाँ सोई रहती है। उसे कुंडलनी शक्ति कहते हैं।

जैसे पीपल का बीज कितना छोटा होता है पर उसमें पेड़ के निर्माण की ऊर्जा समाहित होती है। उसी प्रकार मनुष्य शारीरिक और मानसिक विकास के साथ यह ऊर्जा खत्म नही होती है। यूं यदि देखे तो यह सम्पूर्ण जगत ऊर्जा का ही एक रूप है। जहाँ सब तरफ ऊर्जा यानी शक्ति भरी पड़ी है। पर चूंकि मनुष्य के पिंजरे में वह ऊर्जा सोई रहती है अतः मनुष्य महसूस नही कर पाता।

पत्रकार अजय शुक्ला: लेकिन कहते हैं की हमारे अंदर बाहर एक ही ऊर्जा रहती है यानी आत्मा ही परमात्मा है।

विपुल जी: संपूर्ण सृष्टि का निर्माण तो ऊर्जा से ही हुआ है जिसे हम ब्रह्म कहते हैं। किंतु यह विभिन्न प्रकार से बंट भी जाती है। जैसे एक बिजली कहीं पंखा कहीं मोटर कहीं पंप कहीं मोबाइल इत्यादि अलग-अलग चलाती है। कुछ उसी भांति यह ऊर्जा भी अलग-अलग रूप धारण कर लेती है।

यदि हम इसको अलग करे। तो ऊर्जा के दो प्रकार एक तो ब्रह्मशक्ति दूसरी कुण्डलनी शक्ति। पहली वाली सर्वत्र व्याप्त दूसरी हमारे अंदर। यूं समझो जैसे पानी के भरे टब में कुछ पानी भरके गुब्बारे छोड़ दिये। अब पानी तो गुबारे के अंदर भी है और बाहर भी पर कोई कनेक्शन नही है। दोनो में एक ही पानी पर है अलग अलग। कुछ यही हाल है शक्ति का। यह ब्रह्मशक्ति मन्त्र जप से जागती है। मनुष्य को अनुभूतियां देती है। एक समय के बाद यह शक्ति इतनी अधिक आंदोलित होती है कि हमारी कुण्डलनी शक्ति को भी जागृत कर देती है। यह प्रायः जब होता तब मनुष्य को साकार के देव दर्शन भी जाते है। निराकार की कुछ अनुभूतियाँ भी हो सकती हैं पर ज्ञान नहीं हो पाता है।

पत्रकार अजय शुक्ला: कुछ लोग कहते हैं कुंडलनी जागरण से सिद्धियां मिलती है?

विपुल जी: दैवत कारणों से यह कुण्डलनी यदि जागकर किसी चक्र के कमलदल में पहुंची और कुछ पंखुड़ियों को आंदोलित किया तो कुछ आणिमाई सिध्दियां स्वतः हाथ लगती है। मूर्ख लोग इन सिद्धियों को पाकर इन्हीं में जुट जाते है। पर समझदार इन पर ध्यान न देकर अपनी भक्ति में लीन होकर इनको कंकर पत्थर समझकर आगे बढ़ जाते है।

पत्रकार अजय शुक्ला: कुछ और बताएं मेरी भी जिज्ञासा जाग रही है।

विपुल जी: यहाँ ध्यान देनेवाली बात है कुण्डलनी की तीन अवस्थाएं हो सकती है। पहली जग गई पर मुंह औधाये पड़ी रही निष्क्रिय। दूसरी जग गई सुषुम्ना नाड़ी को छुआ और फिर मुंह उल्टा कर सो गई। तीसरी सुषुम्ना नाड़ी में प्रवेश किया। इन तीनो अवस्थाओ की क्रियायें और अनुभव अलग अलग हो सकते है।

अब जब तीसरी अवस्था मे कुण्डलनी सुषुम्ना में चढ़ने लगी तो दो अवस्थायें हो जाती है पहली वह चक्रों के कमलदल को बीच से भेदे और आगे बढ़ जाये। इस अवस्था मे उस चक्र की क्रिया अनुभव होंगे पर भी सिद्धी न मिलेगी। ज्ञान मिलेगा पर चमत्कार नहीं। पर आपकी साधना के कारण या किसी अन्य कारण से जैसे आपकी सिद्धी प्राप्ति की धारणा या इच्छा के कारण यह उसी चक्र में फंस गई और पुष्पदलो को उद्देलित करने लगी तो वह पुष्पदल भी जागृत हो कर आपको उस चक्र की सिद्धि दे देंगे।

मैं समझता हूँ अब आप समझे होंगे कि मात्र कुण्डलनी जागरण से सिध्दियां नहीं मिलती। यह एक अवस्था है। बाकी आप पर निर्भर है कि आप ज्ञान लेकर ऊपर जाना चाहते हो या समय गंवाकर सिद्धी प्राप्त करना चाहते हो।

पत्रकार अजय शुक्ला: सर आजकल जगह-जगह चक्र साधना की बात होती है यह क्या है?

विपुल जी: अब बात चक्र साधना की है तो चूंकि यह साधना है अतः इसको नमन पर है यह बेकार की वस्तु है। क्यों? क्योकिं आप इसमें किसी विशेष चक्र को आंदोलित कर उनके पुष्प दलों को छेड़कर सिद्धी प्राप्त करना चाहते है जो लंबे समय में आपको भारी पड़ सकता है। अपना अनुभव बता रहा हूँ। चक्र साधना में हम किसी विशेष चक्र को आंदोलित करते है। वहाँ आवश्यक नही कि आप कुण्डलनी को जागृत कर रहे है। आप मन्त्र शक्ति से पुष्प दलों के बीज मंत्र को छेड़ते है। कभी अज्ञान वश हम मूलाधार से आरम्भ न कर किसी ऊपर के चक्र को आंदोलित कर बैठते है। अब न तो ऊपर के चक्र के और न नीचे के चक्र के पुष्पदल आंदोलित है। सिर्फ एक विशेष चक्र आंदोलित हो गया यानी उसकी ऊर्जा बढ़ गई। अब निकले कैसे। ऐसी अवस्था मे वह कोई भयानक रोग उत्पन्न कर सकती है।

अतः साधना वही सर्वश्रेष्ठ जिसमे, जैसे शक्तिपात दीक्षा में पहले कुण्डलनी जागी फिर धीरे धीरे ऊपर नीचे होकर सब ही चक्रो को भेदा उनकी ऊर्जा को सहने लायक बनाया। प्रत्येक चक्र की क्रिया के माध्यम से संस्कारों को धोया । वहां तक शरीर शुध्द किया ऊर्जा सहने लायक सहज बनाया। फिर कुण्डलनी आगे बढ़ी।

पत्रकार अजय शुक्ला: यह कुंडलनी चढ़ती कैसे हैं सर?

विपुल जी: कुण्डलनी तीन प्रकार से चलती है और ऊपर चढ़ती है। पहला चीटी की भांति। यानी पिपीलिका गति। दूसरी मर्कट यानी बन्दर की भांति तुरन्त छलांग लगा कर एक चक्र से दूसरे में ऊपर नीचे। तीसरी पाखी यानी पक्षी की भांति नीचे मूलाधार से उड़ी सीधे सहस्त्रसार पहुची। फिर मन हुआ फुर्र से नीचे आ गई।

चीटी की चाल धीरे धीरे पर स्थायी होती है। इसमें शरीर मे अधिक रोग इत्यादि नही होते है। बाकी दो तरह की गति में किस चक्र में है मालूम नही। अधूरा छोड़कर कहां जाएगी पता नही। अतः कभी भी कोई रोग प्रकट होगा। गायब होगा। कल कौन सा रोग उपस्थित होगा पता नही।

जो सद्गुरु कुण्डलनी को जगाता है उस शिष्य की कुण्डलनी शक्ति का छोर गुरु की शक्ति से जुड़ जाता है। अतः गुरु पर रोग चले जाने की संभावना हो जाती है क्योंकि गुरु की शक्ति आपसे अधिक है अतः प्रारब्ध गुरु को शक्तिहीन करने की कोशिश करते है। गुरु शिष्य की क्रिया से समझ जाता है कि शिष्य को किस चक्र में परेशानी है तो वह अपनी शक्ति से समस्या सुलझा देता है।

अब आप समझे होंगे समर्थगुरु आप पर कितना बड़ा एहसान करता है। वह भी सिर्फ गुरु आज्ञा का पालन करने हेतु विवश है, नहीं तो वह भी मुक्त विचरण करे। क्या जरूरत है सिरदर्द मोल लेने की। मैं भी इसीलिए लोगों से अनुभव और साधना पूछता हूँ ताकि आपकी क्या अवस्था है और उसके अनुरूप सुझाव दे सकूं।

पत्रकार अजय शुक्ला: सर यह कुंडलनी जाती कहां तक है?

विपुल जी: (मुस्कुराते हुए) आप केवल बौद्धिक ज्ञान ही प्राप्त करेंगे या कुछ करेंगे भी। खैर इसका अंतिम पड़ाव सहस्त्रसार चक्र में होता है।

अब होता यह है जब कुण्डलनी सहस्त्रसर में मिलती है। जहाँ 1062 पुष्पदल है। वहाँ वह किस पंखुड़ी को छेड़ती है वैसी ही समाधि लगती है। समाधि तब ही लगती है जब ब्रह्मशक्ति और कुण्डलनी शक्ति का मिलन सहस्त्रसार में होता है। यहां 11 प्रकार की समाधि के अनुभव हो सकते हैं। आठ तो पंखुडियों की परतें , ब्रह्म और सरस्वती लोक या वेद ज्ञान लोक, शिव पार्वती सम्वाद लोक यानी ज्ञान लोक फिर रुद्रकाली लोक, जिसके ऊपर निराकार दुर्गा की धुंध।

पत्रकार अजय शुक्ला: पर आजकल के ज्ञानी किसी भी ध्यान को समाधि बोल देते है।

विपुल जी: अब क्या बोलू। हां भक्तियोग के व्यक्ति को यह सब योग क्या हो रहा मालूम नही पड़ता पर हो जाता है। पातंजलि महाराज ने समाधि को योग को वाहीक ब्रह्मशक्ति से समझाया है। जो पांच वाहीक बातें कही। क्या करे यानी यम। क्या न करे यानी नियम। त्याग की आदत डालें यानी प्रत्याहार। आसन जिसको की घेरण्ड ऋषि ने घेरंड संहिता में बताया है 36 प्रकार के आसन । प्राणायाम यानी प्राण की वायु के आयाम। आंतरिक में धारणा ध्यान और समाधि। यह अंदर की कुण्डलनी को भी जगा कर सहस्त्रसार में ले जा सकते है।

वही मन्त्र जाप ब्रह्म शक्ति का जाप करके धारणा ध्यान समाधि तक वाहीक रूप से ले जाता है। अब समाधि एक तो शरीर के चक्रो को भेदकर पहुचे जो कबीर साहब कहते है । दूसरा तुलसीदास कुछ नही बोले पर समाधि का दिव्य अनुभव प्राप्त किया। पर दोनों का अंत एक।

पत्रकार अजय शुक्ला: बहुत-बहुत धन्यवाद अंत में आप क्या कहना चाहेंगे!

विपुल जी: जी आपका भी बहुत-बहुत धन्यवाद।

मैं अक्सर देखता हूँ कि चर्चा और पोस्ट में लोग यह समझते है कि कुण्डलनी जागरण तो सीधे सिध्दियां मिली। मैं उनसे निवेदन करना चाहता हूँ। कि पहले वह कुण्डलनी शक्ति को ठीक से समझे।

साधक यह भ्रम न पालें कि कुंडलनी जागृत हुई तो कारू का खजाना मिला। यह सब निरन्तर अभ्यास साधना और स्थिरता से ही होता है। प्रभु की कृपा और गुरु दया से मिलता है। आप खुद उल्टी सीधी साधना करके यदि ध्यान समाधि के किसी द्वार में फंस गये तो बिना गुरु के बाहर न आ पाओगे। न मरोगे न जिओगे। हलांकि यह लाखों में एक को होता है पर यह कहीं आप न हो।

आजकल व्हाट्सअप फेस बुक पर एक योगी की फोटो आती है जो वास्तव में समाधि के द्वार में फंसे हुये हैं न मर पा रहें और न चेतना में आकर जी पा रहें हैं। अब इनको कोई शक्तिशाली कौल गुरु ही अपनी शक्ति से चेतना में ला सकता है।

अत: मित्रों यदि अदीक्षित हो तो जो अच्छा लगे उस इष्ट देव का साकार मंत्र जप करो निरंतर अखंड। यदि चाहो तो सचल मन सरल वैज्ञानिक ध्यान विधि कर लो। और जब अनुभूतियां आरम्भ हो जायें तो शक्तिशाली कौल गुरु की प्रार्थना करो। जो तुमको प्रभु कृपा से अवश्य मिलेगा। पर अपने अनुभवों का तनिक भी अहंकार मत करना ये मार्ग में रुकावट बन खड़ा हो जायेगा और गुरु तो मिलेगा ही नहीं।