क्या शिया ईरान ने सुन्नी हमास से बदला ले लिया?

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  • विपुल लखनवी ब्यूरो प्रमुख पश्चिमी भारत

चरमपंथ और इस्लाम के जुड़ते रिश्तों से परेशान भारत में इस्लाम की बरेलवी विचारधारा के सूफ़ियों और नुमाइंदों ने एक कांफ्रेंस कर कहा कि वो दहशतगर्दी के ख़िलाफ़ हैं. सिर्फ़ इतना ही नहीं बरेलवी समुदाय ने इसके लिए वहाबी विचारधारा को ज़िम्मेदार ठहराया.

इन आरोप-प्रत्यारोप के बीच सभी की दिलचस्पी इस बात में बढ़ गई है कि आख़िर ये वहाबी विचारधारा क्या है. लोग जानना चाहते हैं कि मुस्लिम समाज कितने पंथों में बंटा है और वे किस तरह एक दूसरे से अलग हैं?

इस्लाम के सभी अनुयायी ख़ुद को मुसलमान कहते हैं लेकिन इस्लामिक क़ानून (फ़िक़ह) और इस्लामिक इतिहास की अपनी-अपनी समझ के आधार पर मुसलमान कई पंथों में बंटे हैं.

बड़े पैमाने पर या संप्रदाय के आधार पर देखा जाए तो मुसलमानों को दो हिस्सों-सुन्नी और शिया में बांटा जा सकता है. हालांकि शिया और सुन्नी भी कई फ़िरक़ों या पंथों में बंटे हुए हैं.

बात अगर शिया-सुन्नी की करें तो दोनों ही इस बात पर सहमत हैं कि अल्लाह एक है, मोहम्मद साहब उनके दूत हैं और क़ुरान आसमानी किताब यानी अल्लाह की भेजी हुई किताब है. लेकिन दोनों समुदाय में विश्वासों और पैग़म्बर मोहम्मद की मौत के बाद उनके उत्तराधिकारी के मुद्दे पर गंभीर मतभेद हैं. इन दोनों के इस्लामिक क़ानून भी अलग-अलग हैं.

इस्लाम में सात अलग-अलग संप्रदाय, अर्थात् सुन्नी, शिया, व्हाबी, सलाफी, बेरेलवी, सूफी और देवबंदी (सात संप्रदाय) इस्लाम में रचनात्मकता पर अलग-अलग दृष्टिकोण रखते हैं।

द्रुज, खोजा, दाऊदी, बोहरा, इस्माइली, जैदी, जाफरी, इशना, अशरी, अहले हदीस, सलफी, बरेलवी, देवबंदी, वहाबी, सूफी, हम्बली, मलिकी, शाफई, हनफी। वैसे इस्लाम के 73 फिरके होंगे साथ ही हदीस में एक फिरका जन्नती होगा इसका भी जिक्र मिलता है क़यामत आने से पहले दुनिया में इस्लाम के 73 फिरके हो जायेंगे

सभी फिरके इस्लाम को मानते है, साथ ही कुछ अंतर भी है यह एक-दूसरे की मस्जिदों में नमाज नहीं पढ़ते और एक दुसरे की हदीसों को भी नहीं मानते है। सबके नमाज पढ़ने का तरीका , अजान , सब अलग है। इनमे एकता असंभव है। संख्या कम होने के से यह शांत रहते हैं , लेकिन इन्हें जब भी मौका मिलाता है यह उत्पात जरुर करते हैं।

पाकिस्तान में तो अहमदिया इत्यादि को तो इस्लाम में मानते ही नहीं और उनको वोट भी देने का अधिकार नहीं। आए दिन वहां पर शिया मुसलमान की मस्जिदों में बम विस्फोट होते हैं और कितनी ही निर्दोष शिया की जान ले ली जाती है। कुल मिलाकर यदि देखा जाए तो पूरी दुनिया में शिया और सुन्नी आपस में एक दूसरे को मारा करते हैं। कुछ वर्षों पूर्व लखनऊ के एक सुन्नी नेता ने दुनिया में सबसे अपवित्र ईरान के एक शिया नेता को बताया था और उसके प्रति बहुत अधिक घृणात्पद बातें भी की थी।

जानकार लोगों के अनुसार कहीं ईरान ने अपना सुन्नी विरोधी मकसद तो पूरा नहीं किया? हालांकि गाज़ा के आसपास और फिलिस्तीन के शरणार्थियों को किसी भी मुस्लिम देश ने शरण नहीं दी पर बातें बड़ी-बड़ी करके उनको भड़काते रहे। यह हम सभी ने देखा कि इसराइल ने हमास को नेस्तनाबूत कर दिया और ग़ाज़ा की मिट्टीपलीद कर दी। ईरान सिर्फ धमकाता रहा और उसने कोई भी सहायता नहीं की तो अब लोग यह कयास लगा रहे हैं कि शिया और सुन्नी का जो विवाद इस्लाम के जन्म के साथ ही पैदा हो गया था इसका एक बदला तो ईरान ने नहीं लिया। एक समय था जब ईरान और इराक में बरसों तक युद्ध हुआ था तब पूरी दुनिया के सुन्नी इराक के पक्ष में और शिया ईरान के पक्ष में अपने ही देश में बातों की तलवारे भांज रहे थे।

यदि पश्चिमी देशों की रिपोर्ट को समझे तो हम देखते हैं कि भारत और पाकिस्तान के मुसलमान को अरब के मुसलमान सच्चा मुसलमान मानते ही नहीं है और अपने देश में उनसे सिर्फ अपनी गंदगी साफ करवाते हैं। समय-समय पर उनको पीटने की भी क्लिप आती जाती रहती है। फिर भी भारत और पाकिस्तान का मुसलमान अपने को सच्चा मुसलमान अथवा सच्चा शिया और सुन्नी बताने का प्रयास करता है लेकिन यह भूल जाता है कि उसका डीएनए तो भारतीय मूल का ही है यानी किसी हिंदू का ही है।

अब जो भी हो यह तो सिर्फ ईश्वर ही जानता है और नियति को ही पता है की आने वाले समय में ऊंट किस करवट बैठेगा। क्या शिया और सुन्नी एक साथ बैठ सकेंगे? यह तो लाख टके का प्रश्न है और यह लगभग असंभव है किंतु कुछ कहा नहीं जा सकता है। शायद हम और आप देख सके कि ऊंट किस करवट बैठता है।
(नेट के विभिन्न स्रोत विकीपीडिया से साभार)