(www.arya-tv.com)कोरोना महामारी के बीच एक और महामारी आ गई है… ब्लैक फंगस। कई राज्यों ने इसे महामारी घोषित कर दिया है। आखिर कोरोना के इलाज के दौरान ब्लैक फंगस के मामले अचानक क्यों बढ़ने लगे? इस सवाल का जवाब है, आक्सीजन देने में बरती गई लापरवाही। दरअसल, जो पानी ऑक्सीजन को ठंडा रखता है, अगर वही पानी अशुद्ध है तो ऐसे में ब्लैक फंगस के पनपने की आशंकाएं बढ़ती हैं।
ब्लैक फंगस-ऑक्सीजन का कनेक्शन सिलसिलेवार ढंग से समझिए
1. हमारे हर ओर मौजूद रहता है ब्लैक फंगस
एशियन हार्ट इंस्टिट्यूट मुंबई के चेयरमैन और मैनेजिंग डायरेक्टर डॉ. रमाकांत पांडा के एक न्यूज वेबसाइट को दी गई जानकारी के आधार पर कहें तो म्यूकरमाइकोसिस यानी ब्लैक फंगस म्यूकरमाइसेल्स नाम की फंफूद से पनपता है। ये मिट्टी, पेड़ों और सड़ते हुए जैविक पदार्थों में पाई जाती है। अगर आप मिट्टी में काम कर रहे हैं, बागवानी कर रहे हैं तो इसे आसानी से बाहर से घर में ला सकते हैं। हालांकि, ये घर में भी मिलती है। सड़ती हुई ब्रेड और फलों में भी ब्लैक फंगस हो सकती है। ये एयरकंडीशनर के ड्रिप पैन में भी हो सकती है। यानी ये हमारे आसपास हर जगह है।
2. अब समस्या, क्योंकि कोरोना मरीज शिकार हो रहे
ये फंगस अचानक भारत में फैलने लगा। सबसे ज्यादा उन कोरोना मरीजों में जिनका इलाज चल रहा है, या जो संक्रमण से मुक्त हो चुके हैं। मरीजों में ब्लैक फंगस का संक्रमण बेहद खतरनाक है, क्योंकि इसकी चपेट में आए करीब 50% मरीजों की जान चली गई है।
3. चंद केस 10 साल में मिले और कुछ हफ्तों में हजारों
रिपोर्ट्स के मुताबिक पिछले 10 साल में ब्लैक फंगस के बहुत मामूली केस सामने आए हैं। अब हजारों केस रिपोर्ट हो रहे हैं। निशाना वो लोग बन रहे हैं, जिनका इम्युन सिस्टम कमजोर है। इस कमजोर इम्युनिटी की वजह अनियंत्रित डायबिटीज, स्टेरॉयड्स का इस्तेमाल और कीमियोथैरेपी भी हो सकती है।
4. अब ब्लैक फंगस के अचानक बढ़ने पर 3 जरूरी सवाल
- हर साल भारत में हजारों डायबिटिक, कैंसर पेशेंट और स्टेरॉयड्स वाले मरीज अस्पतालों में भर्ती होते रहे हैं, लेकिन तब ब्लैक फंगस ने इन्हें चपेट में नहीं लिया?
- बाकी दुनिया की बात करें तो लाखों मरीज कोरोना से पीड़ित है। इनमें डायबिटिक भी है और स्टेरॉयड्स लेने वाले भी, जिसकी वजह से उनका इम्युन सिस्टम प्रभावित हुआ है, फिर वहां ब्लैक फंगस का मामला क्यों सामने नहीं आया?
- केवल भारत में ही ब्लैक फंगस के मामले इतनी तेजी से सामने क्यों आ रहे हैं?
5. सवालों के जवाब से पता चलीं 3 गलतियां
पहली गलती:
- कमजोर इम्युनिटी वाले कोरोना मरीजों को गलत और असुरक्षित तरीके से ऑक्सीजन का दिया जाना ब्लैक फंगस फैलने की सबसे बड़ी वजह है। दरअसल इंडस्ट्रियल ऑक्सीजन के मुकाबले मेडिकल ऑक्सीजन बहुत ज्यादा शुद्ध होती है। करीब 99.5% तक शुद्ध। जिन सिलेंडर्स में ऑक्सीजन को रखा जाता है, उन्हें लगातार साफ किया जाता है। उन्हें इन्फेक्शन मुक्त किया जाता है।
- जब ये ऑक्सीजन मरीजों को हाई फ्लो पर दी जाती है तो नमी की जरूरत पड़ती है। इसके लिए इसे जीवाणुरहित पानी से भरे एक कंटेनर से गुजारा जाता है। यह पानी जीवाणुरहित होना चाहिए और इसे लगातार प्रोटोकॉल के लिहाज से बदला भी जाना चाहिए।
- अगर पानी जीवाणुरहित नहीं होगा और बदला नहीं जाएगा तो ये ब्लैक फंगस का जरिया बन सकता है। खासतौर पर तब जब लंबे समय तक हाईफ्लो ऑक्सीजन मरीजों को दी जा रही हो।
- अगर ऑक्सीजन बिना नमी के दी जाएगी तो ये जरूरी अंगों को बचाने वाली झिल्ली यानी mucous membrane को सुखा देगी और फेफड़ों की परत को नुकसान पहुंचाएगी। मल और लार को इतना गाढ़ा कर देगी कि इन्हें शरीर से बाहर निकलने में दिक्कत आएगी।
दूसरी गलती:
कोविड के इलाज के दौरान स्टेरॉयड का इस्तेमाल सही समय पर होना चाहिए। ये केवल कोविड से होने वाले प्रभावों से लड़ता है, सीधे वायरस से नहीं। जब वायरस बढ़ रहा हो यानी शुरुआती दौर में स्टेरॉयड्स दिया जाना खतरनाक होता है। ये शरीर की इम्युनिटी को कम कर देगा और वायरस को बढ़ने देगा। डायबिटिक पेशेंट को वक्त से पहले और बिना वजह स्टेरॉयड्स दिए जाने से उसका शुगर लेवल बढ़ेगा। इससे कोरोना संक्रमण की गंभीरता भी बढ़ सकती है और ब्लैक फंगस से होने वाले बुरे प्रभाव भी।
तीसरी गलती:
ब्लैक फंगस के इलाज के लिए एम्फोटेरेसिन बी के इस्तेमाल और इसके प्रोडक्शन को बढ़ाना अच्छी पहल है, लेकिन ये एम्फोटेरेसिन बी भी जहरीला ही होता है। ऐसे में ब्लैक फंगस का बचाव सही तरीके से ऑक्सीजन का दिया जाना, सफाई रखना, स्टोरेज और डिलिवरी के दौरान क्वालिटी कंट्रोल है।