बिलकिस बानो की सुप्रीम कोर्ट में बड़ी जीत, सभी 11 दोषियों की रिहाई का आदेश निरस्त

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(www.arya-tv.com) बिलकिस बानो गैंगरेप मामले में दोषियों की जल्द रिहाई की अनुमति देने वाले गुजरात सरकार के फैसले के खिलाफ दायर याचिकाओं पर सुप्रीम कोर्ट ने बड़ा फैसला सुनाया है। अदालत ने दोषियों की रिहाई के आदेश को निरस्त कर दिया है।

सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में सजा को चुनौती देने वाली याचिकाओं को सुनवाई योग्य माना है। इस मामले में न्यायमूर्ति बी.वी. नागरत्‍ना और न्यायमूर्ति उज्ज्वल भुइयां की विशेष पीठ फैसला सुनाया।

अदालत ने अक्टूबर 2023 में 15 अगस्त, 2022 को राज्य की छूट नीति के तहत 11 दोषियों को रिहा करने की गुजरात सरकार की कार्रवाई की वैधता के सवाल पर सभी पक्षों को सुनने के बाद अपना फैसला सुरक्षित रख लिया।

बिलकिस बानो केस में सुप्रीम कोर्ट ने क्या-क्या कहा?

  • जस्टिस नागरत्ना ने फैसला सुनाते हुए कहा कि प्लेटो ने का कहा था कि सजा प्रतिशोध के लिए नहीं बल्कि सुधार के लिए है। क्यूरेटिव थ्योरी के में सजा की तुलना दवा से की जाती है, अगर किसी अपराधी का इलाज संभव है, तो उसे मुक्त कर दिया जाना चाहिए। यह सुधारात्मक सिद्धांत का आधार है। लेकिन पीड़ित के अधिकार भी महत्वपूर्ण हैं। नारी सम्मान की पात्र है। क्या महिलाओं के खिलाफ जघन्य अपराधों में छूट दी जा सकती है? ये वो मुद्दे हैं जो उठते हैं।
  • जस्टिस नागरत्ना ने कहा, हम योग्यता और स्थिरता दोनों के आधार पर रिट याचिकाओं पर विचार करने के लिए आगे बढ़ते हैं। इस मामले में दोनों पक्षों को सुनने के बाद ये बातें सामने आती हैं:1. क्या पीड़िता द्वारा धारा 32 के तहत दायर याचिका सुनवाई योग्य है?2. क्या छूट के आदेश पर सवाल उठाने वाली जनहित याचिकाएं मानने योग्य हैं।?3. क्या गुजरात सरकार छूट आदेश पारित करने में सक्षम थी?4. क्या दोषियों को छूट का आदेश कानून के अनुसार दिया गया?
  • सुप्रीम कोर्ट ने माना कि बिलकिस बानो केस में दोषियों की सजा में छूट को चुनौती देने याचिकाएं सुनवाई योग्य है। सुप्रीम कोर्ट ने जनहित याचिकाओं की विचारणीयता के संबंध में जवाब देने से इनकार कर दिया क्योंकि बिलकिस बानो की याचिका को पहले ही सुनवाई योग्य माना जा चुका है।
  • जस्टिस नागरत्ना ने जॉर्ज बर्नार्ड शॉ को कोट करते हुए कहा है, लोग ठोकर खाने से नहीं सुधरते। जस्टिस नागरत्ना ने कहा कि अपराध की घटना का स्थान और कारावास का स्थान प्रासंगिक विचार नहीं हैं। जहां अपराधी पर मुकदमा चलाया जाता है और सजा सुनाई जाती है वह सही सरकार है। अपराध किए जाने के स्थान की बजाय मुकदमे की सुनवाई के स्थान पर जोर दिया जाता है।
  • सुप्रीम कोर्ट का मानना है कि 13 मई, 2022 का फैसला (जिसने गुजरात सरकार को दोषी को माफ करने पर विचार करने का निर्देश दिया था) अदालत के साथ “धोखाधड़ी करके” और भौतिक तथ्यों को छिपाकर प्राप्त किया गया था।
  • बिलकिस बानो केस में सुप्रीम कोर्ट का मानना है कि राज्य, जहां किसी अपराधी पर मुकदमा चलाया जाता है और सजा सुनाई जाती है, वह दोषियों की माफी याचिका पर निर्णय लेने में सक्षम है। सुप्रीम कोर्ट का मानना है कि दोषियों की सजा माफी का आदेश पारित करने के लिए गुजरात राज्य सक्षम नहीं है, बल्कि महाराष्ट्र सरकार सक्षम है।
  • बिलकिस बानो केस में सु्प्रीम कोर्ट ने माना कि गुजरात राज्य सरकार दोषियों की सजा में छूट आदेश पारित करने में सक्षम नहीं थी। जस्टिस नागरत्ना ने कहा, केवल इस आधार पर (गुजरात सरकार में क्षमता की कमी है), रिट याचिकाओं को अनुमति दी जानी चाहिए और आदेशों को खारिज जाना चाहिए।

विपक्ष के नेताओं ने दायर की याचिका

सुनवाई के दौरान केंद्र, गुजरात सरकार और दोषियों ने सजा में छूट के आदेश के खिलाफ सीपीआई-एम नेता सुभाषिनी अली, तृणमूल कांग्रेस नेता महुआ मोइत्रा, नेशनल फेडरेशन ऑफ इंडियन वुमेन,

आसमां शफीक शेख और अन्य द्वारा दायर जनहित याचिकाओं का विरोध करते हुए कहा था कि जब पीड़िता ने स्वयं अदालत का दरवाजा खटखटाया है, तो दूसरों को इस मामले में हस्तक्षेप करने की अनुमति नहीं दी जा सकती।

दोषियों ने दी ये दलील

साथ ही, दोषियों ने दलील दी थी कि उन्हें शीघ्र रिहाई देने वाले माफी आदेशों में न्यायिक आदेश का सार है और इसे संविधान के अनुच्छेद 32 के तहत रिट याचिका दायर करके चुनौती नहीं दी जा सकती।

दूसरी ओर, एक जनहित याचिका वादी की ओर से पेश वरिष्ठ वकील इंदिरा जयसिंह ने दलील दी थी कि छूट के आदेश ‘कानून की दृष्टि से खराब’ हैं और 2002 के दंगों के दौरान बानो के खिलाफ किया गया अपराध धर्म के आधार पर किया गया “मानवता के खिलाफ अपराध” था।

जयसिंह ने कहा था कि शीर्ष अदालत के फैसले में देश की अंतरात्मा की आवाज झलकेगी।