गुमनामी के अंधेरों में खो गई है एक स्वतंत्रता संग्राम सेनानी की कहानी

Lucknow

                                   आर्य टीवी के सांस्कृतिक संवाददाता की एक विशेष रिपोर्ट

(www.arya-tv.com)बात 1914 की है फैजाबाद क्षेत्र के अकारी पुर गांव में गूजर सिंह के घर एक बेटा पैदा हुआ! जिस दिन उस बालक ने जन्म लिया वह दिन शिवरात्रि का था अतः बच्चे का नाम रखा गया शिवमूर्ति सिंह 1935  मैं शिवमूर्ति सिंह लखनऊ में अपने बड़े भाई शंभू सिंह के पास आ गए जो रेलवे में ट्राली मैन के पद पर कार्यरत थे  यही रह कर उन्होंने क्रिश्चियन कॉलेज में दाखिला ले लिया दिन बीतते गए और स्वतंत्रता का संग्राम आरंभ हो गया शिवमूर्ति सिंह भी इस स्वतंत्रता संग्राम में कूद पड़े और अंग्रेजों के विरुद्ध लड़ाई में अपनी अहम भूमिका निभाई  गांधी जी के नमक आंदोलन में शामिल हुए फिर जीवन भर नमक नहीं  खाया

                                              लखनऊ के फतेह अली तालाब कॉलोनी मैं  एक विशाल मैदान था जहां झोपड़ी डालकर  शिवमूर्ति सिंह ने बच्चों को पढ़ाना प्रारंभ किया  अंग्रेजों को जब यह बात पता चली तो वे उस स्कूल को तोड़ गए और   शिव मूर्ति सिंह को जेल में डाल दिया  अंग्रेज बार-बार यह स्कूल तोड़ते और शिव मूर्ति सिंह जेल से आकर पुनः चलाने लगते बाद में  अंग्रेजोंने  एक समझौता  किया कि यहां पर स्कूल तो रहेगा उसके आगे रेलवेज जोड़ना पड़ेगा यही रेलवे  जूनियर हाईस्कूल  बन गया जहां उन्होंने प्रधानाचार्य के पद पर कार्य करना आरंभ कर दिया  बाद में इस  रेलवे हायर सेकेंडरी स्कूल का नाम मिला और वही विद्यालय के पीछे बने क्वार्टर में परिवार के साथ रहने लगे वे रेलवे स्कूल के संस्थापक प्रबंधक थे साथ ही  उन्होंने गांधी विद्यालय की भी स्थापना की
स्वतंत्रता संग्राम खत्म होने के बाद जब पेंशन देने की बारी आई तो उन्होंने यह कहकर इंकार कर दिया की यह लड़ाई उन्होंने देश के लिए लड़ी   इसलिए वह कोई पेंशन नहीं लेंगे रेलवे स्कूल में नौकरी के दौरान बाबू शिवमूर्ति सिंह ने मैनेजमेंट के गलत कार्यों में साथ देने से साफ इनकार कर दिया क्योंकि रेलवे स्कूल के प्रबंधक अपने कार्यकाल में अन्य विद्यालयों का निर्माण करा रहे थे और रेलवे की सीमेंट तथा अन्य निर्माण सामग्री से ही उन विद्यालयों का निर्माण कराना चाहते थे किंतु इसके लिए प्रधानाचार्य के हस्ताक्षर की जरूरत थी बाबू शिवमूर्ति सिंह ने हस्ताक्षर करने से इंकार कर दिया जिस पर  क्रोधित होकर मैनेजमेंट ने उनके खिलाफ  पुलिस में शिकायत दर्ज करा दी और प्रताड़ित करने लगे उन्हें कई बार विद्यालय से निकाला भी गया परंतु  सत्य की राह पर अडिग रहने वाले बाबू शिवमूर्ति सिंह रेलवे स्कूल के बगल में लंबे समय तक   सत्याग्रहपर बैठे रहे

                                       न्याय में हो रही देरी को देखते हुए उन्होंने अन्न जल त्याग दिया और आमरण अनशन प्रारंभ कर दिया हालत बिगड़ने पर 15 दिन बाद  प्रशासन ने उन्हें जबरन बलरामपुर अस्पताल में भर्ती करा कर उनका अनशन  छुड़वा दिया अनशन के दौरान उनकी पत्नी का निधन हो गया किंतु वह अनशन छोड़कर नहीं गए
शिवमूर्ति सिंह  नोटिफाइड एरिया के चेयरमैन  भी थे आलमबाग स्थित काजी हाउस मैं उन दिनों हर 15 दिन पर जानवरों की नीलामी होती थी एक गाय जिसकी कीमत एक व्यक्ति ने बारा रुपए लगाई और एक कसाई ने उसी गाय की कीमत ₹15 लगाई फाइल चेयरमैन के पास हस्ताक्षर के लिए पहुंची तो उन्होंने ₹12 वाले को गाय देने का फैसला सुना दिया इस पर शिकायत हुई और मात्र ₹3 के लिए उन्होंने उक्त पद से अपना इस्तीफा दे दिया
 78 साल की उम्र में वर्ष 1992 मैं उनका देहांत हो गया बाबू शिवमूर्ति सिंह का नाम ना तो किसी स्वतंत्रता संग्राम सेनानी की लिस्ट में आया नाही उनके परिवार को किसी प्रकार की कोई सहायता ही मिली अक्सर शासन ऐसे व्यक्तियों की सुध नहीं लेता जिनकी कोई अप्रोच ना हो वही बाबू शिव मूर्ति सिंह के साथ हुआ उनके परिवारी जनों   तथा समस्त क्षेत्रवासियों ने सरकार से मांग की है की रेलवे स्कूल के सामने वाले चौराहे का नामकरण बाबू शिवमूर्ति सिंह चौराहे के नाम पर कर दिया जाए यही उन्हें  सच्ची   श्रद्धाअंजलि होगी