अखिलेश के मंदिर दौरों से BJP क्यों परेशान

UP

(www.arya-tv.com)उत्तर प्रदेश में 2022 में विधानसभा चुनाव होना है। बीते दिनों भारतीय जनता पार्टी (BJP) के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा ने दो दिवसीय दौरे पर UP आकर चुनावी बिगुल फूंक दिया है। चुनावी तैयारी में अन्य विपक्षी पार्टियां भी पीछे नहीं हैं। समाजवादी पार्टी (SP) के राष्ट्रीय अध्यक्ष अखिलेश यादव भी इस समय दौरे पर हैं। उन्होंने 8 जनवरी को अपने चुनावी अभियान की शुरुआत चित्रकूट से की। उन्होंने कामदगिरि पर्वत की परिक्रमा की। सिर्फ जनवरी माह में अखिलेश ने 4 प्रमुख मंदिरों का दौरा किया।

बता दें कि 8 साल पहले जब भाजपा केंद्र और UP की सत्ता से दूर थी। तब प्रदेश भाजपा ने भी चित्रकूट से ही चुनावी अभियान की शुरुआत की थी। अखिलेश के मंदिर-मंदिर दौरों से BJP में खलबली है। यही वजह है कि योगी सरकार में डिप्टी मुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य ने बांदा में कहा है कि “हम 1990 को नही भूल सकते हैं। अयोध्या में रामलला की भूमि पर रामभक्तों को ढूंढ-ढूंढकर गोली मारी गई थी। जो भगवान राम को काल्पनिक कहते थे वह सब जगह अब मंदिरों में घूम रहे हैं।”

अब सवाल यह है कि आखिर BJP अखिलेश यादव के मंदिरों में जाने से क्यों परेशान है? आखिर मंदिरों में जाने से अखिलेश यादव को क्या मिलेगा? क्या मंदिरों में जाने से SP का परंपरागत मुस्लिम वोट बैंक नहीं छिटक जाएगा? क्या अखिलेश यादव सॉफ्ट हिंदुत्व के लिए अपनी पार्टी के मुस्लिम चेहरा रामपुर सांसद आजम खान को नजरअंदाज कर रहे हैं? आखिर UP दौरा कर अखिलेश क्या करना चाह रहे हैं?

SP के राष्ट्रीय अध्यक्ष अखिलेश यादव पर हमेशा ही मुस्लिम तुष्टिकरण का आरोप लगता रहा है। लेकिन, बदली राजनीतिक परिस्थितियों में वह यह जान चुके हैं कि SP के परंपरागत M-Y (मुस्लिम यादव) समीकरण के सहारे BJP को नहीं हरा सकते हैं। यही नहीं वह पहले कांग्रेस और फिर बहुजन समाज पार्टी (BSP) से गठबंधन करके भी देख चुके हैं। समाजवादी पार्टी को नुकसान ही उठाना पड़ा है। जानकारों का मानना है कि 2014 के बाद से जिस तरह से हिंदू वोटर्स पर BJP की पकड़ मजबूत होती जा रही है। उससे अखिलेश यादव को मंदिर और प्रतीकों की राजनीति करने पर मजबूर कर दिया है। चूंकि, BJP हिंदू वोट बैंक को अपना मानकर चलती है तो वह जब विपक्ष चुनावों में मंदिर और प्रतीकों की राजनीति करती है, तो BJP ऐसे नेताओं का माखौल उड़ाने का काम करती है।

सीनियर जर्नलिस्ट रतनमणि लाल कहते हैं कि BJP शुरू से ही उन नेताओं पर सवाल खड़े करती है, जिन लोगों से उसे परेशानी होती है। BJP सिर्फ यह स्थापित करना चाहती है कि धर्म की इज्जत सिर्फ वही करती है, बाकी सभी राजनेता पाखंड करते हैं। BJP डर इसलिए भी नहीं रही है क्योंकि जब जब मंदिर और प्रतीकों की राजनीति विपक्ष की तरफ से की गई तब तब BJP को कोई नुकसान नहीं हुआ है। 2017 विधानसभा चुनाव में अखिलेश यादव ने भगवान कृष्ण की मूर्ति लगाने का ऐलान किया था, लेकिन क्या हुआ? BJP अपने फायदे और नुकसान के प्रति आश्वस्त है। ऐसी राजनीति पर BJP के लोग तुरंत सक्रिय हो जाते हैं और जनता को याद दिलाते है कि जब ये सत्ता में थे तब क्या किया था?