(www.arya-tv.com) उत्तर प्रदेश के वाराणसी में विश्व की सबसे बड़ी रामलीला की शुरुआत हो गई है। 27 अक्टूबर तक चलने वाले इस आयोजन की शुरुआत भव्य तरीके से हुई। महाराजा काशी नरेश को सलामी देने के बाद कार्यक्रम का आगाज किया गया। रामनगर की रामलीला को यूनेस्को की विश्व धरोहर में स्थान मिला हुआ है।
इसी से भव्यता और प्राचीन विरासत का अंदाजा लगाया जा सकता है। काशी के लक्खा मेले में इस कार्यक्रम को शुमार किया गया है। रामनगर की रामलीला का आयोजन 8 किलोमीटर से अधिक के मुक्ताकाशीय मंच पर आयोजित किया जाता है। इस कारण इसे देश ही नहीं दुनिया की सबसे बड़ी रामलीला के रूप में मान्यता मिली हुई है।
आधुनिकता के दौर में प्राचीनता का अहसास
रामनगर की रामलीला आधुनिकता के इस दौर में भी अपनी प्राचीनता को समेटे हुए है। आज के समय में भी इस रामलीला का आयोजन मशाल और पंचलाइट की रोशनी में इस कार्यक्रम का आयोजन किया जाता है। आज के समय में भी इस रामलीला में माइक का उपयोग नहीं किया जाता। इस कार्यक्रम में भाग लेने वाले कलाकार अपने संवाद ऊंची आवाज में बोलते हैं। यहां आने वाले दर्शक भी अलग प्रकार के होते हैं।
संवाद और पाठ साथ-साथ
मंच पर कलाकार रामचरितमानस के प्रसंगों और रामलीला को जीवंत करते हैं। वहीं, दर्शकों के बीच रामचरितमानस का पाठ चलता रहा है। रामनगर की रामलीला की यही खासियत इसे अनूठा बनाती है। रामचरितमानस के पाठक से बिना लाउडस्पीकर का प्रयोग किए दर्शकों को मंच पर चलने वाले प्रसंगों और संवादों के बारे में आसानी से पता चलता रहता है। दुर्गापूजा के आयोजन के बाद तक इसका आयोजन चलता रहेगा।
हर की नगरी में हुआ हरि का आगमन
हर की नगरी में हरी के आगमन के दृश्य के साथ विश्व प्रसिद्ध रामलीला का आगाज हुआ। पहले दिन श्रीहरि विष्णु का अवतरण होता प्रदर्शित किया गया। कलाकारों के प्रदर्शन को देखकर दर्शकों में श्रद्धा का ज्वार उमर पड़ा। इस मौके पर श्रीहरि की अलौकिक छवि का प्रदर्शन हुआ। साधुओं के कंधे पर सवार होकर कलाकरों ने इस दृश्य को जीवंत किया।
काशी नरेश को दी गई सलामी
महाराजा काशी नरेश डॉ. अनंत नारायण सिंह जी को सलामी के साथ अनंत चतुर्दशी के शुभ मौके पर काशी नरेश को सलामी दी गई। इस सलामी दिए जाने के पीछे की मान्यता है कि पीएसी की ओर से यह सलामी सरकार और राजसत्ता के बीच हुए समझौते के तहत दी जाती है। दरअसल, इसके पीछे की एक कहान है। इसके तहत जब सभी राजशाही पैसे लेकर भारत गणराज्य में विलय कर रहे थे, उस समय तत्कालीन महाराजा बनारस ने भारत सरकार से किसी पैसे लेने से इनकार कर दिया। उन्होंने मांग रखी कि भगवान राम और मां सीता की लीला लगातार होती रही। इसकी व्यवस्था में किसी प्रकार की बाधा न आए।
तीन दिन महाराज को सलामी
बनारस महाराज की शर्त को मानते हुए तत्कालीन प्रधानमंत्री ने रामलीला की सभी व्यवस्था अनंत काल तक सरकार की ओर से किए जाने की बात मानी। साथ ही, महाराज बनारस को तीन दिन सलामी भी व्यवस्था को बनाया गया। इसके तहत रामलीला के पहले दिन, नाक कटैया और विजय दशमी के दिन काशी नरेश को सलामी दी जाती है। उसके बाद से परंपरा चली आ रही है कि काशी के लोग महाराज बनारस को शिव का अवतार मानते हुए हर-हर महादेव के जयघोष से उनका स्वागत करते हैं।